दिल्ली की लव कुश रामलीला में पूनम पांडे को मंदोदरी का रोल, साधु-संतों, भाजपा और विश्व हिंदू परिषद का विरोध, आयोजकों ने फैसला जस का तस रखा
लव कुश रामलीला दिल्ली के लाल किले के पास आयोजित होने वाली देश की सबसे पुरानी और लोकप्रिय रामलीलाओं में से एक है। यह 1527 से चली आ रही परंपरा का हिस्सा

दिल्ली की ऐतिहासिक लव कुश रामलीला, जो यूनेस्को द्वारा मान्यता प्राप्त सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है, इस वर्ष एक बड़े विवाद में फंस गई है। 22 सितंबर से शुरू हो रही दस दिवसीय रामलीला में बॉलीवुड अभिनेत्री पूनम पांडे को रावण की पत्नी मंदोदरी का किरदार निभाने का फैसला किया गया है। इस चयन पर विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी), भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और अयोध्या के साधु-संतों ने कड़ी आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि पूनम पांडे की छवि और अतीत की विवादास्पद घटनाएं रामलीला की पवित्रता और शालीनता को ठेस पहुंचा सकती हैं। आयोजकों ने हालांकि फैसले को जस का तस रखने का ऐलान किया है और कहा है कि वे किसी भी कलाकार को दूसरा मौका देने के हकदार हैं। द हिंदू, द प्रिंट और इंडियन एक्सप्रेस जैसी संस्थाओं ने इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाया है, जहां वीएचपी ने चिट्ठी लिखकर कलाकार बदलने की मांग की, लेकिन कमिटी ने इनकार कर दिया। यह विवाद न केवल सांस्कृतिक मूल्यों पर बहस छेड़ रहा है, बल्कि महिलाओं के सशक्तिकरण और दूसरा मौका देने की अवधारणा को भी नई दिशा दे रहा है।
लव कुश रामलीला दिल्ली के लाल किले के पास आयोजित होने वाली देश की सबसे पुरानी और लोकप्रिय रामलीलाओं में से एक है। यह 1527 से चली आ रही परंपरा का हिस्सा है, जहां रामायण की कथा को जीवंत रूप से प्रस्तुत किया जाता है। इस वर्ष रामलीला में राम का किरदार किंशुक वैद्य निभाएंगे, सीता का रोल रीनी आर्या करेंगी, रावण की भूमिका आर्य बब्बर को मिली है और भाजपा सांसद मनोज तिवारी परशुराम बनेंगे। पूनम पांडे को मंदोदरी का रोल देने का ऐलान 19 सितंबर को प्रेस कॉन्फ्रेंस में किया गया। आयोजकों ने इसे एक 'विशेष रामलीला' बताते हुए कहा कि वे युवाओं को आकर्षित करने के लिए आधुनिक चेहरों को शामिल कर रहे हैं। पूनम ने सोशल मीडिया पर अपनी खुशी जाहिर की और कहा कि यह उनके लिए सम्मान की बात है। लेकिन यह फैसला आते ही विवादों का शिकार हो गया। वीएचपी के दिल्ली प्रांत सचिव सुरेंद्र गुप्ता ने 19 सितंबर को कमिटी को चिट्ठी लिखी, जिसमें कहा कि मंदोदरी का किरदार सदाचार, गरिमा, संयम और पतिव्रता का प्रतीक है। पूनम पांडे की सार्वजनिक छवि और सोशल मीडिया पर उनकी विवादास्पद तस्वीरें वीडियो भक्तों की भावनाओं को आहत कर सकती हैं।
पूनम पांडे का फिल्मी सफर विवादों से भरा रहा है। 2011 में उन्होंने 2011 क्रिकेट वर्ल्ड कप जीतने पर कपड़े उतारने का वादा किया था, जो एक बड़ा स्टंट बन गया। इसके बाद वे बोल्ड फोटोशूट और सोशल मीडिया पोस्ट के लिए जानी गईं। 2024 में कैंसर का झूठा दावा कर सुर्खियां बटोरीं, जिसके बाद उनकी छवि और खराब हो गई। द वीक और फ्री प्रेस जर्नल की रिपोर्ट्स में बताया गया कि वीएचपी ने कहा कि रामलीला कोई साधारण नाटक नहीं, बल्कि भारतीय समाज के मूल्यों का जीवंत प्रतीक है। उन्होंने सुझाव दिया कि मंदोदरी के रोल के लिए पारंपरिक थिएटर बैकग्राउंड वाली या सांस्कृतिक रूप से उपयुक्त अभिनेत्री चुनी जाए। भाजपा की ओर से दिल्ली इकाई के मीडिया प्रमुख और कमिटी के वरिष्ठ उपाध्यक्ष प्रवीण शंकर कपूर ने 20 सितंबर को आयोजकों को पत्र लिखा। उन्होंने कहा कि पूनम वर्षों से स्क्रीन से दूर हैं और उनकी पहचान विवादों से है। यह फैसला रामलीला की गरिमा के विपरीत है और लाखों भक्तों की भावनाओं को ठेस पहुंचाएगा। कपूर ने मांग की कि कलाकार को तुरंत बदला जाए।
अयोध्या के साधु-संतों ने भी विरोध जताया। राम जन्मभूमि ट्रस्ट से जुड़े संतों ने कहा कि रामलीला रामायण की पवित्र कथा है, जहां किरदारों का चयन साफ-सुथरी छवि वाला होना चाहिए। एबीपी न्यूज के अनुसार, संतों ने चेतावनी दी कि अगर फैसला नहीं बदला गया तो वे रामलीला का बहिष्कार करेंगे। वीएचपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता विनोद बंसल ने कहा कि रामलीला धार्मिक, सामाजिक और आध्यात्मिक ऊर्जा का बड़ा प्रदर्शन है। कलाकारों की शुद्धता ही दर्शकों को आकर्षित करती है। उन्होंने कहा कि हम किसी कलाकार का विरोध व्यक्तिगत रूप से नहीं कर रहे, लेकिन पवित्र आयोजनों की मर्यादा बनाए रखनी चाहिए। यह विरोध सोशल मीडिया पर तेजी से फैला। #PoonamPandeyRamlila जैसे ट्रेंड चले, जहां हजारों लोग कमेंट्स में अपनी राय दे रहे हैं। एक यूजर ने लिखा कि रामलीला आधुनिक हो, लेकिन मूल्यों से समझौता न हो। दूसरा बोला कि पूनम को दूसरा मौका दो, महिलाओं को सशक्त बनाओ।
आयोजकों ने विरोध के बावजूद पीछे हटने से इनकार कर दिया। कमिटी के अध्यक्ष अर्जुन कुमार ने इंडियन एक्सप्रेस को दिए इंटरव्यू में कहा कि हम बुराई को समाप्त करने की बात करते हैं। अगर आर्य बब्बर रावण का रोल कर सकते हैं, जो विवादास्पद बैकग्राउंड वाले हैं, तो पूनम मंदोदरी क्यों नहीं? उन्होंने कहा कि समाज पुरुषों को दूसरा मौका देता है, तो महिलाओं को क्यों नहीं? हम महिलाओं के सशक्तिकरण की बात करते हैं, सम्मान देते हैं। अगर डाकू सांसद बन सकता है, तो पूनम रामलीला में क्यों नहीं? कुमार ने कहा कि वे चर्चा के लिए तैयार हैं, लेकिन फैसला नहीं बदलेंगे। सचिव सुभाष गोयल ने भी कहा कि रामलीला युवाओं को जोड़ने का माध्यम है। पूनम का चयन उनके अभिनय कौशल के आधार पर हुआ। हमने 500 से ज्यादा कलाकार चुने हैं, सभी की छवि पर विचार किया। यह विवाद रामलीला को और चर्चित बना रहा है। आयोजकों का मानना है कि इससे दर्शकों की संख्या बढ़ेगी।
यह विवाद सांस्कृतिक और राजनीतिक दोनों स्तरों पर बहस छेड़ रहा है। भाजपा और वीएचपी इसे हिंदू भावनाओं का अपमान बता रहे हैं, जबकि आयोजक इसे प्रगतिशील कदम कह रहे हैं। द प्रिंट की रिपोर्ट में विशेषज्ञों ने कहा कि रामलीला समय के साथ बदल रही है। पहले पारंपरिक कलाकार होते थे, अब बॉलीवुड चेहरे आ रहे हैं। लेकिन मंदोदरी जैसे किरदारों के लिए संवेदनशीलता जरूरी है। पूनम ने खुद ट्वीट किया कि वे सम्मान करेंगी और किरदार को न्याय देंगी। उन्होंने कहा कि विवाद दुखद है, लेकिन वे रामायण के संदेश को फैलाने के लिए तैयार हैं। सोशल मीडिया पर समर्थन भी मिल रहा है। कई युवा कह रहे हैं कि छवि से ज्यादा अभिनय मायने रखता है। लेकिन संतों का गुस्सा शांत नहीं हो रहा। अयोध्या से एक संत ने कहा कि रामलीला का मंच पवित्र है, विवादास्पद लोग यहां नहीं आ सकते।
रामलीला 22 सितंबर से लाल किले के मैदान पर शुरू होगी। दस दिनों तक चलेगी, जिसमें राम-रावण युद्ध का चरम होगा। हर वर्ष लाखों लोग आते हैं। इस बार विवाद से पहले ही टिकटें बिक रही हैं। आयोजकों ने सुरक्षा बढ़ा दी है। पुलिस ने कहा कि शांति बनाए रखें। यह घटना हमें सोचने पर मजबूर करती है कि परंपरा और आधुनिकता का संतुलन कैसे बने। क्या पूनम का रोल विवाद खत्म होने के बाद सफल होगा? समय बताएगा। लेकिन यह बहस रामायण के मूल संदेश को याद दिला रही है कि बुराई पर अच्छाई जीतती है। उम्मीद है कि विवाद शांत हो और रामलीला शांति से हो। पूनम पांडे का यह कदम उनके करियर को नई दिशा दे सकता है।
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