योगी की तारीफ करना सपा महिला विधायक पूजा पाल को पड़ा भारी, अखिलेश यादव ने पार्टी से किया बाहर।
Uttar Pradesh Politics : उत्तर प्रदेश की सियासत में एक बार फिर हलचल मच गई है, जब समाजवादी पार्टी (सपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने अपनी ही...
उत्तर प्रदेश की सियासत में एक बार फिर हलचल मच गई है, जब समाजवादी पार्टी (सपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने अपनी ही पार्टी की विधायक पूजा पाल को पार्टी से निष्कासित कर दिया। यह कार्रवाई तब हुई, जब पूजा पाल ने विधानसभा में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तारीफ की और उनके द्वारा माफिया अतीक अहमद के खिलाफ की गई कार्रवाई को सराहा। पूजा पाल ने सदन में कहा था, "मुख्यमंत्री योगी ने बेहतरीन कार्य किया, अतीक जैसे माफिया को मिट्टी में मिलाया... मुझे न्याय दिलाया।" इस बयान के अगले ही दिन अखिलेश यादव ने पूजा पाल को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया। यह घटना न केवल उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक नया मोड़ लाई है, बल्कि सपा के आंतरिक अनुशासन और विचारधारा को लेकर भी सवाल खड़े कर रही है।
- पूजा पाल का बयान और विवाद की शुरुआत
पूजा पाल, जो प्रयागराज की चायल विधानसभा सीट से सपा की विधायक हैं, ने विधानसभा में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की प्रशंसा की थी। उन्होंने अपने बयान में माफिया अतीक अहमद के खिलाफ योगी सरकार की सख्त कार्रवाई को सराहा और कहा कि इस कार्रवाई ने उन्हें व्यक्तिगत रूप से न्याय दिलाया। पूजा पाल का यह बयान उनके निजी अनुभवों से जुड़ा था, क्योंकि उनके पति राजू पाल, जो बसपा विधायक थे, की 2005 में अतीक अहमद के गुर्गों द्वारा हत्या कर दी गई थी। इस हत्याकांड में अतीक अहमद का नाम प्रमुखता से सामने आया था, और योगी सरकार द्वारा अतीक और उनके गिरोह के खिलाफ की गई कार्रवाई को पूजा पाल ने अपने लिए न्याय के रूप में देखा।
हालांकि, यह बयान सपा के लिए असहज करने वाला साबित हुआ। सपा, जो हमेशा से योगी सरकार और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की नीतियों की आलोचना करती रही है, के लिए एक विधायक का खुलेआम मुख्यमंत्री की तारीफ करना अस्वीकार्य था। पूजा पाल का यह बयान न केवल पार्टी लाइन के खिलाफ था, बल्कि सपा के नेतृत्व को यह संदेश भी दे रहा था कि पार्टी के भीतर कुछ लोग सरकार की कार्रवाइयों से सहमत हो सकते हैं। इस बयान ने सपा के आंतरिक अनुशासन और एकजुटता पर सवाल उठाए, जिसके परिणामस्वरूप अखिलेश यादव ने त्वरित कार्रवाई करते हुए पूजा पाल को पार्टी से निष्कासित कर दिया।
- अखिलेश यादव का फैसला
सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने पूजा पाल के बयान को पार्टी विरोधी गतिविधि माना और तत्काल प्रभाव से उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया। सपा के प्रवक्ता ने इस कार्रवाई को पार्टी अनुशासन का हिस्सा बताया और कहा कि समाजवादी पार्टी अपने सिद्धांतों और विचारधारा के साथ कोई समझौता नहीं करती। अखिलेश यादव का यह फैसला सपा के कट्टर समर्थकों के बीच तो स्वागत योग्य रहा, लेकिन इसने कई सवाल भी खड़े किए। क्या एक विधायक का अपने निजी अनुभव के आधार पर बयान देना पार्टी विरोधी गतिविधि माना जा सकता है? क्या यह कार्रवाई सपा के भीतर असहिष्णुता को दर्शाती है? ये सवाल अब उत्तर प्रदेश की सियासत में चर्चा का विषय बन गए हैं।
पूजा पाल का राजनीतिक सफर बेहद संघर्षपूर्ण रहा है। उनके पति राजू पाल की हत्या के बाद उन्होंने राजनीति में प्रवेश किया और बसपा के टिकट पर चायल विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा। 2007 में वह पहली बार विधायक बनीं। बाद में, 2012 में वह सपा में शामिल हो गईं और 2017 और 2022 में सपा के टिकट पर चायल से विधायक चुनी गईं। पूजा पाल ने अपने क्षेत्र में सामाजिक कार्यों और जनसंपर्क के जरिए अपनी मजबूत पहचान बनाई थी। उनके पति की हत्या के बाद अतीक अहमद के खिलाफ उनकी लड़ाई ने उन्हें एक मजबूत और निडर नेता के रूप में स्थापित किया था। हालांकि, सपा से निष्कासन के बाद उनके राजनीतिक भविष्य पर सवाल उठने लगे हैं। क्या वह किसी अन्य पार्टी में शामिल होंगी, या स्वतंत्र रूप से अपनी राजनीति को आगे बढ़ाएंगी? कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि पूजा पाल की योगी सरकार के प्रति सकारात्मक टिप्पणी और उनके निष्कासन के बाद भाजपा उन्हें अपने पाले में लाने की कोशिश कर सकती है। हालांकि, इस बारे में अभी कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है।
अखिलेश यादव का यह फैसला सपा की रणनीति और आंतरिक अनुशासन को दर्शाता है। सपा लंबे समय से उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के खिलाफ विपक्ष की भूमिका निभा रही है। योगी सरकार की माफिया विरोधी कार्रवाइयों पर सपा ने कई बार सवाल उठाए हैं और इसे अल्पसंख्यकों के खिलाफ लक्षित कार्रवाई करार दिया है। ऐसे में, पूजा पाल का बयान सपा की इस रणनीति के लिए एक झटका था। अखिलेश यादव ने त्वरित कार्रवाई करके यह संदेश देने की कोशिश की है कि पार्टी में अनुशासन सर्वोपरि है और कोई भी नेता पार्टी लाइन से हटकर बयानबाजी नहीं कर सकता। हालांकि, इस कार्रवाई ने सपा के भीतर असंतोष को भी हवा दी है। कुछ नेताओं का मानना है कि पूजा पाल का बयान उनके निजी अनुभवों से प्रेरित था और इसे पार्टी विरोधी गतिविधि के रूप में देखना उचित नहीं है। यह कार्रवाई सपा के भीतर विचारों की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की कमी को भी उजागर करती है। कुछ विश्लेषकों का कहना है कि अखिलेश यादव का यह कदम 2027 के विधानसभा चुनावों से पहले पार्टी की छवि को मजबूत करने की कोशिश है, लेकिन यह सपा के कुछ समर्थकों को नाराज भी कर सकता है।
पूजा पाल के निष्कासन पर राजनीतिक दलों और जनता की मिली-जुली प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है। सपा समर्थकों का एक वर्ग इस कार्रवाई को सही ठहरा रहा है, जबकि कुछ लोग इसे अखिलेश यादव की असहिष्णुता के रूप में देख रहे हैं। भाजपा ने इस मुद्दे पर चुप्पी साध रखी है, लेकिन सूत्रों के अनुसार, पार्टी पूजा पाल को अपने साथ जोड़ने की संभावना तलाश रही है। बसपा और कांग्रेस जैसे अन्य विपक्षी दलों ने इस मुद्दे पर कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है, लेकिन यह घटना उत्तर प्रदेश की सियासत में चर्चा का विषय बनी हुई है। जनता के बीच भी इस कार्रवाई को लेकर अलग-अलग राय है। कुछ लोग पूजा पाल के बयान को उनके निजी दुख और संघर्ष से जोड़कर देख रहे हैं, जबकि कुछ का मानना है कि एक विधायक को पार्टी लाइन का पालन करना चाहिए। सोशल मीडिया पर भी इस मुद्दे पर बहस छिड़ी हुई है, जहां कुछ लोग अखिलेश यादव के फैसले का समर्थन कर रहे हैं, तो कुछ इसे तानाशाही रवैया बता रहे हैं। पूजा पाल के निष्कासन के बाद उत्तर प्रदेश की सियासत में कई संभावनाएं उभर रही हैं। यदि पूजा पाल भाजपा में शामिल होती हैं, तो यह सपा के लिए एक बड़ा झटका होगा, क्योंकि चायल विधानसभा सीट सपा का गढ़ रही है। इसके अलावा, यह कार्रवाई सपा के भीतर अन्य नेताओं के लिए एक चेतावनी भी है कि पार्टी लाइन से हटने की कीमत चुकानी पड़ सकती है। दूसरी ओर, पूजा पाल के समर्थक और उनके क्षेत्र की जनता इस कार्रवाई से नाराज हो सकती है, जिसका असर सपा की लोकप्रियता पर पड़ सकता है।
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