रामानंद सागर के बेटे और मशहूर निर्माता प्रेम सागर का 84 वर्ष की उम्र में निधन
प्रेम सागर ने न केवल अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ाया, बल्कि अपने दम पर भी कई उल्लेखनीय कार्य किए। उन्होंने लोकप्रिय धारावाहिक ‘अलिफ लैला’ का
भारतीय टेलीविजन और सिनेमा जगत के लिए 31 अगस्त 2025 का दिन दुखद रहा, जब मशहूर निर्माता, निर्देशक और सिनेमैटोग्राफर प्रेम सागर का निधन हो गया। प्रेम सागर, जिन्हें ‘रामायण’ जैसे ऐतिहासिक धारावाहिक के निर्माण में उनके योगदान के लिए जाना जाता है, ने 84 वर्ष की उम्र में मुंबई में अंतिम सांस ली। वह लंबे समय से बीमार थे और मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था। रविवार सुबह डॉक्टरों की सलाह पर उन्हें घर लाया गया, जहां सुबह 10 बजे उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। उनके निधन से फिल्म और टेलीविजन इंडस्ट्री में शोक की लहर दौड़ गई है। प्रेम सागर के अंतिम संस्कार का आयोजन दोपहर 3 बजे मुंबई के जुहू स्थित पवन हंस श्मशान घाट पर किया गया।
प्रेम सागर मशहूर फिल्म निर्माता रामानंद सागर के बेटे और निर्माता शिव सागर के पिता थे। उन्होंने अपने पिता की स्थापित सागर आर्ट्स प्रोडक्शन हाउस के तहत कई महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट्स में योगदान दिया। रामानंद सागर को 1987 में दूरदर्शन पर प्रसारित हुए धारावाहिक ‘रामायण’ के लिए जाना जाता है, जिसने भारतीय टेलीविजन के इतिहास में एक नया अध्याय लिखा। इस धारावाहिक ने न केवल मनोरंजन के क्षेत्र में क्रांति लाई, बल्कि भारतीय संस्कृति और मूल्यों को घर-घर तक पहुंचाया। प्रेम सागर ने इस धारावाहिक में सिनेमैटोग्राफर और फोटोग्राफर के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे इसकी दृश्यात्मक सुंदरता और प्रभाव को और बढ़ाने में मदद मिली।
प्रेम सागर ने अपनी शिक्षा पुणे के फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (FTII) से 1968 के बैच में पूरी की थी। यहां से उन्होंने फोटोग्राफी और सिनेमैटोग्राफी में प्रशिक्षण लिया, जिसने उनकी तकनीकी समझ को और मजबूत किया। FTII से मिली शिक्षा ने उन्हें कैमरे के पीछे की कला में निपुण बनाया, और उन्होंने इस कौशल का उपयोग अपने पिता के प्रोडक्शन हाउस सागर आर्ट्स के तहत कई प्रोजेक्ट्स में किया। उनकी सिनेमैटोग्राफी ने ‘रामायण’ के दृश्यों को जीवंत और यादगार बनाया, जिसके कारण यह धारावाहिक आज भी दर्शकों के दिलों में बसा हुआ है।
प्रेम सागर ने न केवल अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ाया, बल्कि अपने दम पर भी कई उल्लेखनीय कार्य किए। उन्होंने लोकप्रिय धारावाहिक ‘अलिफ लैला’ का निर्देशन किया, जो 1990 के दशक में दर्शकों के बीच खूब पसंद किया गया। इसके अलावा, उन्होंने ‘विक्रम और बेताल’, ‘लव कुश’, और ‘श्रीकृष्ण’ जैसे धारावाहिकों में भी सिनेमैटोग्राफी और निर्माण के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया। हाल के वर्षों में, उन्होंने धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों को बढ़ावा देने वाले प्रोजेक्ट्स जैसे ‘काकभुशुंडी रामायण’ (2024) और ‘कामधेनु गौमाता’ (2025) का निर्माण किया। ये प्रोजेक्ट्स भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता को दर्शाने में महत्वपूर्ण रहे।
प्रेम सागर ने फिल्मों में भी अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया। उन्होंने 1976 में आई फिल्म ‘चरस’ में सिनेमैटोग्राफर के रूप में काम किया और 1968 में आई फिल्म ‘आंखें’ में इलेक्ट्रिकल डिपार्टमेंट में योगदान दिया। इसके अलावा, उन्होंने ‘हम तेरे आशिक हैं’ (1979), ‘बसेरा’ (2009), और ‘जय जय शिव शंकर’ (2010) जैसे प्रोजेक्ट्स में भी निर्माण और निर्देशन की जिम्मेदारी संभाली। उनके काम ने सागर आर्ट्स को भारतीय मनोरंजन उद्योग में एक सम्मानित नाम बनाने में मदद की।
प्रेम सागर के निधन की खबर ने फिल्म और टेलीविजन इंडस्ट्री को गहरे सदमे में डाल दिया। ‘रामायण’ में श्रीराम का किरदार निभाने वाले अभिनेता अरुण गोविल ने सोशल मीडिया पर अपनी संवेदनाएं व्यक्त करते हुए लिखा, “रामायण टीवी सीरियल के जरिए भगवान श्रीराम की मर्यादा, आदर्श और शिक्षाओं को जन-जन तक पहुंचाने वाले स्व. श्री रामानंद सागर जी के सुपुत्र और मशहूर फिल्म निर्माता प्रेम सागर जी के निधन का समाचार अत्यंत दुखद है। प्रभु श्रीराम से प्रार्थना है कि उनकी आत्मा को अपने चरणों में स्थान दें और शोक संतप्त परिवार को यह दुख सहन करने की शक्ति प्रदान करें। ओम शांति।”
इसी तरह, ‘रामायण’ में लक्ष्मण का किरदार निभाने वाले अभिनेता सुनील लहरी ने भी अपनी भावनाएं साझा कीं। उन्होंने इंस्टाग्राम पर लिखा, “यह दुखद समाचार शेयर करते हुए बहुत दुख हो रहा है कि रामानंद सागर जी के पुत्र प्रेम सागर जी परलोक सिधार गए हैं। भगवान उनकी आत्मा को शांति दे और उनके परिवार को इस दुख की घड़ी को सहने की शक्ति दे।”
सागर वर्ल्ड ने भी अपनी इंस्टाग्राम स्टोरी पर इस दुखद खबर को साझा करते हुए लिखा, “बड़े दुख के साथ सूचित किया जाता है कि श्री प्रेम सागर जी अब हमारे बीच नहीं रहे। उनकी अंतिम यात्रा पवन हंस, जुहू में दोपहर 2:30 बजे शुरू हुई। उनकी आत्मा को शांति मिले। ओम शांति।”
प्रेम सागर का योगदान केवल तकनीकी क्षेत्र तक सीमित नहीं था। उन्होंने अपने काम के जरिए भारतीय संस्कृति और धार्मिक मूल्यों को दर्शकों तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके धारावाहिकों ने न केवल मनोरंजन किया, बल्कि लोगों को नैतिकता और आदर्शों की शिक्षा भी दी। उनकी सिनेमैटोग्राफी ने कहानियों को जीवंत करने में मदद की, जिसके कारण सागर आर्ट्स के प्रोजेक्ट्स को दर्शकों ने हमेशा सराहा।
प्रेम सागर भले ही सुर्खियों में कम रहे हों, लेकिन उनके काम ने भारतीय टेलीविजन और सिनेमा को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। उनकी मेहनत, समर्पण और कला के प्रति जुनून ने उन्हें इंडस्ट्री में एक सम्मानित व्यक्तित्व बनाया। उनके निधन से न केवल सागर परिवार, बल्कि पूरा मनोरंजन उद्योग एक ऐसी शख्सियत को खो चुका है, जिसने अपनी प्रतिभा से लाखों दिलों को छुआ। उनकी विरासत उनके द्वारा बनाए गए प्रोजेक्ट्स और उनमें निहित सांस्कृतिक मूल्यों के रूप में हमेशा जीवित रहेगी।
प्रेम सागर के निधन से भारतीय सिनेमा और टेलीविजन उद्योग को एक ऐसी कमी महसूस होगी, जिसे भर पाना मुश्किल है। उनके प्रशंसक और सहकर्मी उन्हें एक शांत, मेहनती और समर्पित इंसान के रूप में याद कर रहे हैं। उनकी स्मृति में उनके द्वारा बनाए गए धारावाहिक और फिल्में हमेशा दर्शकों के बीच उनकी उपस्थिति को जीवंत रखेंगी।
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