समाजवादी पार्टी ने तीन बागी विधायकों को निष्कासित किया, राज्यसभा चुनाव में क्रॉस वोटिंग और भाजपा समर्थन का मामला गरमाया। 

समाजवादी पार्टी (सपा) ने उत्तर प्रदेश की सियासत में बड़ा कदम उठाते हुए तीन विधायकों को पार्टी से निष्कासित कर दिया है। इन विधायकों...

Jun 24, 2025 - 14:53
Jun 24, 2025 - 15:15
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समाजवादी पार्टी ने तीन बागी विधायकों को निष्कासित किया, राज्यसभा चुनाव में क्रॉस वोटिंग और भाजपा समर्थन का मामला गरमाया। 

लखनऊ : समाजवादी पार्टी (सपा) ने उत्तर प्रदेश की सियासत में बड़ा कदम उठाते हुए तीन विधायकों को पार्टी से निष्कासित कर दिया है। इन विधायकों पर फरवरी 2024 के राज्यसभा चुनाव में पार्टी लाइन के खिलाफ जाकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के पक्ष में क्रॉस वोटिंग करने का आरोप है। निष्कासित विधायकों में रायबरेली के ऊंचाहार से विधायक मनोज कुमार पांडेय, अयोध्या के गोसाईगंज से विधायक अभय सिंह, और अमेठी के गौरीगंज से विधायक राकेश प्रताप सिंह शामिल हैं। इस कार्रवाई ने सपा की आंतरिक रणनीति और आगामी पंचायत चुनावों के लिए उसके राजनीतिक समीकरणों पर नए सवाल खड़े कर दिए हैं।

फरवरी 2024 में उत्तर प्रदेश की 10 राज्यसभा सीटों के लिए हुए चुनाव में सपा ने तीन उम्मीदवार उतारे थे—जया बच्चन, रामजीलाल सुमन, और आलोक रंजन। भाजपा ने आठ उम्मीदवार मैदान में उतारे थे। सपा के सात विधायकों ने क्रॉस वोटिंग कर भाजपा के आठवें उम्मीदवार संजय सेठ की जीत सुनिश्चित की, जिसके कारण सपा के तीसरे उम्मीदवार आलोक रंजन हार गए। इस घटना ने सपा नेतृत्व को झटका दिया और पार्टी के भीतर असंतोष के स्वर तेज हो गए।

निष्कासित तीनों विधायकों—मनोज कुमार पांडेय, अभय सिंह, और राकेश प्रताप सिंह—ने न केवल क्रॉस वोटिंग की, बल्कि इसके बाद खुलकर भाजपा के पक्ष में गतिविधियां शुरू कर दीं। खास तौर पर मनोज पांडेय ने सपा के मुख्य सचेतक पद से इस्तीफा देकर और लोकसभा चुनाव 2024 में रायबरेली में भाजपा प्रत्याशी के लिए प्रचार करके अपनी बगावत को स्पष्ट कर दिया था।

  • निष्कासन की घोषणा

23 जून 2025 को सपा ने अपने आधिकारिक X हैंडल पर तीनों विधायकों के निष्कासन की घोषणा की। पार्टी ने इसे “जनहित” में लिया गया फैसला बताया और आरोप लगाया कि ये विधायक “सांप्रदायिक और विभाजनकारी राजनीति” को बढ़ावा दे रहे थे, साथ ही “किसान, महिला, युवा, और कारोबारी विरोधी नीतियों” का समर्थन कर रहे थे। सपा ने यह भी कहा कि इन विधायकों को “हृदय परिवर्तन” के लिए समय दिया गया था, लेकिन वे अपनी गतिविधियों में सुधार लाने में असफल रहे।

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इस कार्रवाई को पार्टी की विचारधारा और सिद्धांतों की रक्षा के लिए जरूरी बताया। पार्टी सूत्रों के अनुसार, यह कदम आगामी पंचायत चुनावों की रणनीति का हिस्सा है, जिसमें सपा अपनी “PDA” (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) रणनीति को मजबूत करना चाहती है।

  • मनोज कुमार पांडेय: भाजपा से नजदीकी और मंत्री पद की अटकलें

तीनों विधायकों में मनोज कुमार पांडेय का मामला सबसे चर्चित रहा है। ऊंचाहार से विधायक पांडेय पहले सपा सरकार में मंत्री रह चुके हैं। राज्यसभा चुनाव के बाद उनकी भाजपा से बढ़ती नजदीकियों ने सुर्खियां बटोरीं। 12 मई 2024 को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह उनके रायबरेली स्थित आवास पर पहुंचे और उनके साथ लंच किया, जिसके बाद पांडेय ने रायबरेली लोकसभा सीट पर भाजपा प्रत्याशी दिनेश प्रताप सिंह के लिए खुलकर प्रचार किया।

लोकसभा चुनाव के दौरान यह अटकलें थीं कि पांडेय को भाजपा से टिकट मिल सकता है, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। अब उनके निष्कासन के बाद यह कयास लगाए जा रहे हैं कि वे औपचारिक रूप से भाजपा में शामिल हो सकते हैं और उन्हें योगी सरकार में मंत्री पद मिल सकता है। पांडेय ने निष्कासन पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “मैं कोई बागी नहीं हूं। राज्यसभा चुनाव में क्रॉस वोटिंग मेरा संवैधानिक अधिकार था, जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा है।” उन्होंने यह भी दावा किया कि सपा नेतृत्व ने 110 करोड़ सनातनियों की भावनाओं का अपमान किया है।

  • अभय सिंह और राकेश प्रताप सिंह

गोसाईगंज से विधायक अभय सिंह और गौरीगंज से विधायक राकेश प्रताप सिंह भी क्रॉस वोटिंग के बाद से सपा से दूरी बनाए हुए थे। दोनों ने भाजपा के प्रति नरम रुख अपनाया और लोकसभा चुनाव में अप्रत्यक्ष रूप से भाजपा का समर्थन किया। निष्कासन के बाद इन दोनों विधायकों के भी भाजपा में शामिल होने की संभावना जताई जा रही है। हालांकि, अभी तक दोनों ने इस पर कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है।

  • सपा की चुनिंदा कार्रवाई पर सवाल

जबकि सपा ने तीन विधायकों को निष्कासित किया है, क्रॉस वोटिंग करने वाले अन्य चार विधायकों—विनोद चतुर्वेदी (कालपी), पूजा पाल (चायल), राकेश पांडेय (जलालाबाद), और आशुतोष मौर्य (बिसौली)—पर कोई कार्रवाई नहीं की गई है। सूत्रों का कहना है कि इन विधायकों ने लोकसभा चुनाव के बाद सपा नेतृत्व के साथ अपने रिश्ते सुधार लिए हैं। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि सपा की यह “चुनिंदा कार्रवाई” उसकी PDA रणनीति का हिस्सा है, जिसके तहत पार्टी ब्राह्मण और अन्य समुदायों को नाराज करने से बचना चाहती है।

  • राजनीतिक प्रतिक्रियाएं

सपा: अखिलेश यादव ने इस कार्रवाई को पार्टी की एकता और विचारधारा की रक्षा के लिए जरूरी बताया। सपा प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने कहा, “पार्टी विरोधी गतिविधियों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।”

भाजपा: प्रदेश भाजपा अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने तंज कसते हुए कहा, “सपा सरकार में ट्रांसफर-पोस्टिंग एक उद्योग बन गया था। अब उनकी आंतरिक कलह सबके सामने है।”

कांग्रेस: यूपी कांग्रेस ने इस मामले पर कोई आधिकारिक टिप्पणी नहीं की, लेकिन सूत्रों के अनुसार, सपा-कांग्रेस गठबंधन पर इस कार्रवाई का असर पड़ सकता है।

X पर इस निष्कासन को लेकर मिली-जुली प्रतिक्रियाएं देखने को मिलीं। कुछ यूजर्स ने सपा के इस कदम को “गद्दारों के खिलाफ सख्ती” बताकर सराहा, जबकि अन्य ने इसे “पार्टी की आंतरिक कमजोरी” और “PDA रणनीति की नाकामी” करार दिया। एक यूजर ने लिखा, “सपा ने तीन विधायकों को निकाला, लेकिन बाकी चार को क्यों छोड़ा? यह दोहरा रवैया अखिलेश की रणनीति पर सवाल उठाता है।”

निष्कासित विधायकों की विधायकी पर फिलहाल कोई खतरा नहीं है, क्योंकि दल-बदल विरोधी कानून के तहत राज्यसभा चुनाव में क्रॉस वोटिंग को व्हिप उल्लंघन नहीं माना जाता। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस संबंध में स्पष्ट किया है कि राज्यसभा चुनाव में विधायक अपनी मर्जी से वोट दे सकते हैं।

  • हालिया अपडेट्स (24 जून 2025 तक)

सपा ने 23 जून 2025 को तीनों विधायकों को निष्कासित करने की घोषणा की।

मनोज पांडेय ने निष्कासन पर प्रतिक्रिया देते हुए खुद को बागी मानने से इनकार किया और सपा पर सनातनियों की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का आरोप लगाया।

अभय सिंह और राकेश प्रताप सिंह ने अभी तक कोई बयान नहीं दिया है, लेकिन उनके भाजपा में शामिल होने की अटकलें तेज हैं।

सपा ने चार अन्य बागी विधायकों पर कार्रवाई नहीं की, जिसे पार्टी की PDA रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है।

पंचायत चुनावों को देखते हुए सपा ने अपनी रणनीति को और मजबूत करने के लिए यह कदम उठाया है।

यह निष्कासन सपा के लिए एक जोखिम भरा कदम माना जा रहा है। एक ओर, यह पार्टी कार्यकर्ताओं में अनुशासन का संदेश देता है, लेकिन दूसरी ओर, यह सपा के भीतर की गुटबाजी और नेतृत्व पर सवाल उठाता है। भाजपा के लिए यह एक अवसर हो सकता है, क्योंकि निष्कासित विधायक उसके पाले में जा सकते हैं, जिससे उसकी स्थिति और मजबूत हो सकती है। साथ ही, सपा-कांग्रेस गठबंधन पर भी इस कार्रवाई का असर पड़ सकता है, खासकर रायबरेली और अमेठी जैसे क्षेत्रों में। सपा का तीन विधायकों को निष्कासित करने का फैसला उत्तर प्रदेश की सियासत में एक महत्वपूर्ण मोड़ है।

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