कांग्रेस नेतृत्व की गलत नीतियों और तुष्टिकरण की राजनीति ने भारत के विभाजन को जन्म दिया- वीरेन्द्र तिवारी
Hardoi: नगर के जिलापंचायत सभागार में विभाजन विभीषिका दिवस पर प्रदर्शनी, संगोष्ठी एवम मौन पद यात्रा का आयोजन हुआ। जिलाध्यक्ष अजीत सिंह बब्बन ....
रिपोर्ट- अम्बरीष कुमार सक्सेना
Hardoi: नगर के जिलापंचायत सभागार में विभाजन विभीषिका दिवस पर प्रदर्शनी, संगोष्ठी एवम मौन पद यात्रा का आयोजन हुआ। जिलाध्यक्ष अजीत सिंह बब्बन की अध्यक्षता में संपन्न कार्यक्रम में मुख्य अतिथि पूर्व प्रदेश मंत्री वीरेंद्र तिवारी, जिला पंचायत अध्यक्ष प्रेमवती उपस्थित रही।
विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस पर भाजपा द्वारा आयोजित 3 दिवसीय प्रदर्शनी का उद्घाटन हुआ। इस अवसर पर जिला पंचायत अध्यक्ष पूर्व जिला अध्यक्ष राजीव रंजन, सौरभ मिश्र, डीसीबी अध्यक्ष अशोक सिंह की उपस्थिति में पूर्व प्रदेश मंत्री वीरेंद्र तिवारी ने प्रदर्शनी का उद्घाटन कर प्रदर्शनी का अवलोकन किया।
जिला पंचायत सभागार में आयोजित गोष्ठी में वीरेंद्र तिवारी ने कहा की भारत को 15 अगस्त, 1947 को ब्रिटिश शासन से आज़ादी मिली। स्वतंत्रता दिवस, जो हर साल 15 अगस्त को मनाया जाता है, किसी भी राष्ट्र के लिए एक खुशी और गर्व का अवसर होता है।हालाँकि, स्वतंत्रता की मिठास के साथ-साथ देश को विभाजन का आघात भी सहना पड़ा। नए स्वतंत्र भारतीय राष्ट्र का जन्म विभाजन के हिंसक दर्द के साथ हुआ, जिसने लाखों भारतीयों पर पीड़ा के स्थायी निशान छोड़े।
कहा कि विभाजन मानव इतिहास में सबसे बड़े विस्थापनों में से एक है, बंटवारे के दौरान भड़के दंगे और हिंसा में लाखों लोगों की जान चली गई। यह विचलित करने वाली घटना थी, ऐसी भीषण त्रासदी थी, जिसमें करीब बीस लाख लोग मारे गए और डेढ़ करोड़ लोगों का पलायन हुआ था। यह विभाजन मानव इतिहास में सबसे बड़े विस्थापनों में से एक है, जिससे लाखों परिवारों को अपने पैतृक गांवों एवं शहरों को छोड़ना पड़ा और शरणार्थी के रूप में एक नया जीवन जीने के लिए मजबूर होना पड़ा। अपनी आजादी का जश्न मनाते हुए एक कृतज्ञ राष्ट्र, मातृभूमि के उन बेटे-बेटियों को भी नमन करता है, जिन्हें हिंसा के उन्माद में अपने प्राणों की आहुति देनी पड़ी।
कहा कि इस विभाजन का सबसे अधिक दंश जिस राज्य ने झेला, वह पंजाब था। पंजाब एक ऐसा प्रांत जो हिंदू, मुस्लिम और सिखों सहित विभिन्न समुदायों की असंख्य और जीवंत आबादी का ठिकाना था। लेकिन विभाजनकारी षडयंत्र ने इसे दो भागों में विभाजित करके इसकी विरासत और विशिष्टता पर गहरा आघाता किया। भारत के हिस्से में आने वाले पंजाब को पूर्वी पंजाब या भारतीय पंजाब और पाकिस्तान में जाने वाले पंजाब को पश्चिमी पंजाब या पाकिस्तानी पंजाब के रूप में विभाजित किया गया। पांच नदियों की भूमि पुंज-आब ने भी अपने जल स्रोतों को विभाजित होते देखा है, जिनमें से तीन, सतलुज, रावी और ब्यास भारतीय पंजाब में और बाकी दो नदियां, चिनाब और झेलम पाकिस्तानी पंजाब में हैं।
इस विभाजन के दर्द को कई जगहों पर बयां किया गया है, जिनमें से एक हैं प्रसिद्ध पंजाबी गायक गुरदास मान का ‘की बनू दुनिया दा’, का मशहूर गीत है। जिसमें भारत के विभाजन कारण विस्थापन और विनाश का संगम का दर्द समझने को मिलता है। उन लोगों के संघर्ष और बलिदान की याद में प्रधानमंत्री मोदी ने 14 अगस्त को ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ के तौर पर मनाने का निर्णय लिया। यह दिन हमें भेदभाव, वैमनस्य और दुर्भावना के जहर को खत्म करने के लिए न केवल प्रेरित करेगा, बल्कि इससे एकता, सामाजिक सद्भाव और मानवीय संवेदनाएं भी मजबूत होंगी। देश के विभाजन के दर्द को कभी भुलाया नहीं जा सकता है।
जिला पंचायत अध्यक्ष ने भारत के विभाजन पर कहा कि देश करोड़ों लोग विभाजन के बाद ऐसी स्थिति में ढकेल दिए गए जिसके बारे में जान आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं। मीलों तक पैदल चलते हुए बाढ़, तेज धूप तथा दंगों को झेलते हुए लोग अपनी मंजिल तक पहुंचे। कुछ लोग रास्ते में ही दंगों, अत्यधिक थकावट तथा भोजन की कमी आदि से काल कवलित हो गए । विभाजन के बारे में पंजाबी, उर्दू, हिंदी सहित विभिन्न भारतीय भाषाओं तथा अंग्रेजी भाषा में लिखे साहित्य में अंत्यंत मार्मिक ढंग से उस दौर की मार्मिक अवस्था का चित्रण किया गया है। तत्कालीन अविभाजित भारत के विभिन्न हिस्सों में 1946 तथा 1947 के दौरान हुई हिंसा तथा दंगों की व्यापकता और क्रूरता ने मानवता पर जो प्रश्नचिन्ह लगाया है, उसका उत्तर आजतक नहीं मिला। विभाजन के दौरान हिंसा की सनक न केवल किसी का जीवन ले लेने की थी बल्कि दूसरे धर्म की सांस्कृतिक और भौतिक उपस्थिति को मिटा देने तक की भी थी। रेडक्लिफ के सीमा विभाजन के खतरनाक सिद्धांत ने जो जटिलताएं और विषमताएं भारत विभाजन से उत्पन्न की वह कभी भुलाई न जा सकेंगी।
जिला अध्यक्ष अजीत सिंह बब्बन ने कहा कि कांग्रेस के सेकुलर मुखौटे के पीछे एक बहुत बड़ा घोटाला छिपा था। जो अब सबके सामने निकल कर बाहर आ रहा है। कहा कि नेहरू-लियाकत पैक्ट को नहीं भुलाया जा सकता, जिसमें यही शर्त थी कि दोनों देश अपने-अपने अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और उनके कल्याण के लिए प्रतिबद्ध होंगे। वर्ष 1950 में हुए इस समझौते का भारत ने तो अक्षरश: पालन किया, लेकिन पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार बढ़ते गए। समझौते का उलटा ही असर हुआ। इसने पाकिस्तान के हिंदुओं का भारत आना रोक दिया। इस कारण हिंदू और सिखों को या तो इस्लाम स्वीकार करना पड़ा या फिर वे मौत के घाट उतार दिए गए। वहां जो आज बचे-खुचे हिंदू हैं, वे विश्व के सबसे प्रताड़ित समाजों में से एक हैं।
मोदी सरकार ने उपमहाद्वीप में प्रताड़ित अल्पसंख्यकों की इसी पीड़ा को समझते हुए ही उन्हें देश में शरण देने के लिए नागरिकता संशोधन अधिनियम यानी सीएए बनाया। अफसोस यही कि देश के तमाम इलाकों में उसका विरोध-प्रदर्शन शुरू हो गया। उसमें शाहीन बाग जैसे प्रतीक स्थल बन गए। ऐसा प्रायोजित विरोध यही दर्शाता है कि 75 वर्षों में भारत का सांप्रदायिक परिदृश्य असंतुलन का शिकार बना हुआ है। याद रहनी चाहिए विभाजन की विभीषिका, देश के मानस पटल पर खींच दी सांप्रदायिक विभाजन की एक स्थायी लकीर थी। यह भारतीय राजनीति में सांप्रदायिक तुष्टीकरण का पहला प्रयोग था जो इतिहास के पड़ावों से गुजरता हुआ अंतत: विभाजन की ओर चला गया। देश में सांप्रदायिक दंगों का जो सिलसिला खिलाफत आंदोलन की असफलता की प्रतिक्रिया में 1921 के मोपला सांप्रदायिक नरसंहार से प्रारंभ हुआ था, वह लगातार होते दंगों से गुजरते हुए विभाजन की विभीषिका तक लाखों देशवासियों की बलि लेता गया। अहिंसक आंदोलनों की उर्वर भूमि ने दंगाइयों का काम आसान बना दिया था। भारत विभाजन के बाद भी वोट बैंक की राजनीति ने सांप्रदायिकता के माहौल को जिंदा बनाए रखा। विभाजन ने हमारी सीमाओं पर रेखाएं ही नहीं खींची, बल्कि देश के मानस पटल पर भी सांप्रदायिक विभाजन की एक स्थायी लकीर खींच दी है।
गोष्ठी में प्रवासी समाज के बलकार सिंह, दिलीप सिंह, रूपेंद्र सिंह, बलवीर सिंह, विवेक भसीन ने अपना संबोधन दिया। कार्यक्रम का संचालन सौरभ सिंह गौर ने किया। कार्यक्रम में उपाध्यक्ष कर्मवीर सिंह, संजय सिंह, एसपी मौर्य, प्रीतेश दीक्षित, महामंत्री अनुराग मिश्र, ओम वर्मा , सत्येंद्र राजपूत, मंत्री अविनाश पांडे, अजय शुक्ला, मीना वर्मा, मीडिया प्रभारी गांगेश पाठक, प्रचार मंत्री संदीप सिंह, सत्यम शुक्ला, कार्यालय मंत्री अतुल सिंह, प्रद्युम्न मिश्र, महिला मोर्चा अलका गुप्ता, पिछड़ा मोर्चा वेदराम राजपूत, विपिन सिंह, कि मो विश्वराज सिंह, अविनाश मिश्र, मुकुल सिंह, अनुराधा मिश्र, शोभना सिंह, सुहाना जैन, मुदित बाजपाई, अनुराग श्रीवास्तव, कपिल मोहन गुप्ता, आशीष सिंह सहित मंडल अध्यक्षगण मौजूद रहे।
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