Agriculture News: कृषिगत महिलाओं के सशक्तिकरण हेतु रोजगारोन्मुखी परिकल्पनाएं।
मछलीपालन, पशुपालन, खाद्य परिरक्षण, हथकरघा और दस्तकारी जैसे कामों में ग्रामीण महिलाएं पीछे नहीं हैं...
लेखक परिचय
अरविन्द सुथार पमाना ♦वरिष्ठ कृषि एवं पर्यावरण पत्रकार, अनार एवं बागवानी विशेषज्ञ, कृषि सलाहकार, मोटिवेटर एवं किसानों के मार्गदर्शक।
वर्तमान में ग्रामीण विकास में महिलाएं अपना सक्रिय योगदान देकर महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। एशिया के अनेक देश जो विकास की ओर अग्रसर हैं उन देशों में कृषि कार्य में महिलाओं का अनुपात अधिक है। ग्रामीण व शहरी कोई भी क्षेत्र हो, महिलाएं आबादी का लगभग आधा अंश होती हैं। वे परिवार, समाज व समुदाय का एक बड़ा ही सार्थक अंग हैं। जो समाज के स्वरूप को सशक्त रूप से प्रभावित करती हैं। ग्रामीण महिलाएं गृह कार्य तथा बच्चों को संभालने के साथ-साथ खेती-किसानी को भी प्राथमिकता से समय देती हैं।
महिलाओं के प्रत्यक्ष योगदान एवं सक्रिय भागीदारी के परिणामस्वरूप भारत अनेक प्रकार के फल, सब्जी और अनाज के मामले में महत्वपूर्ण उत्पादक के रूप में विश्व में अपना स्थान बनाए हुए हैं। मछलीपालन, पशुपालन, खाद्य परिरक्षण, हथकरघा और दस्तकारी जैसे कामों में ग्रामीण महिलाएं पीछे नहीं हैं। वह खेतों में कार्य करने के अलावा कृषि संबंधी मामलों में महत्वपूर्ण निर्णय भी लेती हैं। मुख्यतः फसलों के उत्पादन, प्रबंधन व पशुपालन कार्य में महिलाओं की सहभागिता आधे से अधिक है तथा इनकी विपणन प्रक्रिया में भी भूमिका पाई जाती है। अतः कृषि में महिलाओं की भूमिका केंद्रीय है। इसके अलावा कृषि संसाधनों के प्रबंधन व फार्म उत्पादों का विपणन इनके द्वारा ही सफलतापूर्वक हो रहा है।
खेत पर काम करने के अलावा उसके पास घर और पारिवारिक जिम्मेदारियां भी है। महिलाएं ऐसी अदृश्य श्रमिक हैं जिनके बिना कृषि अर्थव्यवस्था में वृद्धि की संकल्पना निरर्थक है। इतना होते हुए भी इस श्रमशील महिला शक्ति ने भारतीय कृषि को अथक प्रयासों से मजबूत किया है। भारतीय कृषि में महिलाओं का योगदान 32% से भी अधिक है। खाद्य उत्पादन के लिए 60 से 80% तथा डेयरी उत्पादन के लिए लगभग 90% महिलाएं जिम्मेदार हैं। राजस्थान में फसल उत्पादन, पशुपालन, संसाधनों का प्रबंधन, विपणन आदि कार्यों में महिलाओं का योगदान सराहनीय है। कृषि के अंतर्गत फसल उत्पादन में एकमात्र कार्य जुताई को छोड़कर अन्य सभी कार्य जैसे झाड़ियों की सफाई, निराई-गुड़ाई, सिंचाई, फसल कटाई आदि में प्रत्यक्ष रूप से महिलाओं का योगदान रहा है। इनमें से फसल कटाई व निराई गुड़ाई में महिलाएं 70 से 80% जिम्मेदारी लिए हुए हैं। पशुपालन में महिलाओं की सहभागिता 60% से अधिक पाई जाती है। जिसमें पशुओं को चराना, देखभाल करना, दूध निकालना, दूध का विपणन करना, प्रजनन संबंधित कार्य शामिल है। इसके अलावा महिलाएं खेत में खाद डालने, खाद एकत्रीकरण, हरे चारे की कटाई व एकत्रीकरण आदि कई कार्यो को बखूबी से पूरा कर रही है। बागवानी में अधिकांश कार्य महिलाओं द्वारा ही किया जाता है। फल सब्जियों की तुड़ाई, उनका श्रेणीकरण, पैकिंग और विपणन महिलाएं ही कर रही है। खाद्य परिरक्षण के अधिकांश कार्य महिलाओं की सहभागिता के बिना संभव ही नहीं हैं। फसल उत्पादन व उनका चयन, विपणन आदि में महिलाएं सार्थक निर्णय लेकर परिवार को मुखिया के रूप में चला रही हैं। इतना ही नहीं कृषि क्षेत्र में कुछ ऐसी महिलाएं भी है जो अपनी खेती-किसानी व कृषि से जुड़े व्यवसायों में नाम कमा रही हैं। ऐसे कई उदाहरण हैं जिन्होंने कृषि अर्थव्यवस्था को रीढ़ की हड्डी बन कर मजबूत किया है।
-
महिलाओं के सशक्तिकरण हेतु कुछ राहें-
राजस्थान में महिलाएं और बकरीपालन- पश्चिमी राजस्थान का अधिकांश हिस्सा सूखाग्रस्त व हमेशा अकाल की चपेट में रहता है। इसके बावजूद भी बाड़मेर जैसे जिलों में राजस्थान का सर्वाधिक बकरीपालन होता है। यहां के पशुपालन में पुरूषों की अपेक्षा ग्रामीण महिलाओं का योगदान काफी अधिक है। कम पूंजी विनियोजन के नाते आर्थिक रूप से पिछडी एवं भूमि विहिन वर्ग की महिलाओं के लिए बकरी पालन एक वरदान बन सकता है। बड़े पशुओं की तुलना में बकरी को आसानी से पाला जा सकता है।
एक महिला अपने घर पर आठ दस बकरियों की देखभाल आसानी कर सकती है। बकरी पालन से आर्थिक लाभ के साथ-साथ घर में उपलब्ध अतिरिक्त श्रम का भी उपयोग होता है तथा साथ ही बकरी के दुध एवं मांस से ग्रामीण महिलाओं के पोषण स्तर में भी अपेक्षित सुधार होगा। प्रतिवर्ष बकरे व बकरियां बेचकर धनार्जन करके घर के छोटे बड़े खर्चों को आसानी से निकाला जा सकता है। इसके दूध में कई लाभदायक पोषक तत्व होने से ग्रामीण महिलाओं व बच्चों में कुपोषण की समस्या नहीं रहेगी।
ग्रामीण क्षेत्रों में सबसे बड़ी स्वास्थ्य समस्या कुपोषण ही है। सूखा एवं अकालग्रस्त क्षेत्रों में महिलाएं इन्हे बूरे दिनों का बीमा मानती है। अपने परिवार को पालने में, बच्चों की देखभाल में और शादी-ब्याह का खर्च निकालने में महिलाएं बकरी पालन से हुई आमदनी का उपयोग करती है। ग्रामीण महिलाएं बकरी पालन व्यवसाय के लिए सरकार द्वारा प्रदत कम ब्याज पर ऋण प्राप्त कर सकती है, जो कि मरानरेगा व आत्मा योजनान्तर्गत अच्छी नस्ल की बकरियां खरीदकर व गोटशेड आदि बनाकर अच्छा बकरीपालन किया जा सकता है और वर्तमान में राजस्थान के दूरस्थ गांवों में बकरीपालन के सफल उदाहरण देखे जा सकते हैं। कुल मिलाकर गरीबी से लड़ने के लिए बकरी पालन एक अच्छा साधन बनाया जा सकता है।
Also Read- Agriculture News: जैविक खेती पर्यावरण संरक्षण हेतु आज की आवश्यकता।
महिला एवं मधुमक्खी पालन- मधुमक्खी पालन वर्तमान समय में बहुत ही आकर्षित करने वाला व्यवसाय बनकर उभर रहाहै।जहां तक राजस्थान की बात करें तो राजस्थान की शुष्क जलवायु होने के बावजूद भी यहां कई जलवायवीय विभिन्नताएं है।दक्षिण पूर्वी राजस्थान इस व्यवसाय का अच्छा विकल्प दे सकता है। जालौर जैसे अद्धशुष्क जिलों में जहां सिंचाई की व्यवस्था है वहां यह व्यवसाय फलता फूलता नजर आ रहा है। महिलाएं इस व्यवसाय को आसानी से कर सकती हैं। उन्हें सामान्य प्रशिक्षण के द्वारा मधुपेटिकाएं स्थापित करवाने के बाद महिलाएं एक दूसरे से आसानी से सिखती जाती हैं। वर्तमान समय में बाजार में शहद की बहुत मांग है। दो मधुमक्खी बॉक्स से मासिक 20 किलो से अधिक शहद उत्पादन हो सकता है। जिसे बेचकर महिलाएं अपने घर का खर्चा आसानी से चला सकती हैं।
ग्रामीण महिलाएं व सिलाई कढाई- कृषि क्षेत्र से जुड़ी महिलाओं का परम्परागत व सबसे रूचिकर व्यवसाय रहा है सिलाई-कढाई। यदि प्रत्येक घर में इसका सूक्ष्म सर्वेक्षण किया जाए तो हर तीन घरों में से दो घरों में सिलाई मशीन मिलेगी। यह महिलाओं का स्वप्रेरण कार्य है या एक दूसरे से सिखा गया व्यवसाय है। अपवादस्वरूप कुछ महिलाएं ही प्रशिक्षण प्राप्त होंगी अधिकांशत: अपने आप या दूसरी महिलाओं को देखकर सिखी गयी महिलाएं होंगी। इसके लिए यदि बड़े स्तर पर संस्थागत प्रशिक्षण दिए जाएं तो यह कौशल विकास के साथ साथ आजीविका का एक सफल विकल्प हो सकता है। इसके अलावा कई महिलाएं कढाई-कशीदाकारी करके भी अपने परिवार को सम्भाल रही हैं।
महिलाएं व डेयरी-डेयरी क्षेत्र में महिलाओं का योगदान सक्रिय भूमिका के रूप में रहा है, इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं है। पशुपालन का अधिकांश काम यही करती हैं। पहले भी बताया जा चुका है कि चारा काटना, पशुओं की चराई, देखरेख दूध निकालना, उसे डेयरी तक बेचने जाना, पशुओं की खरीद बिक्री करना आदि अधिकांश कार्य महिलाओं के द्वारा विशेष रूप से किया जाता रहा है । लेकिन उनकी इस क्षेत्र में कार्यशैली व निर्णय लेने के सामर्थ्य में अभी तक काफी अंतर है। महिलाओं को इस हेतु स्वतंत्र निर्णय लेने के योग्य एवं काबिल बनाना होगा। डेयरी क्षेत्र में महिलाएं और भी अच्छा कार्य कर सकती है।
Also Read- Agriculture News: किसान को आत्मनिर्भर बनने हेतु करना होगा जल संरक्षण।
महिला सशक्तिकरण पर ग्रामीण स्तर पर व समाज की प्राथमिक इकाई परिवार स्तर के प्रशिक्षण देकर और भी इनमें जागरूकता लाने की जरूरत है। स्वयं सहायता समूहों के स्वच्छ संचालन की जरूरत है। ग्रामीण स्तर पर महिलाओं को प्रेरित करके उनमें एक दूसरे के लिए वॉलेन्टियरी भाव पैदा करने की जरूरत है। ऐसी कई संस्थाएं हैं जो महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में कार्य कर रही हैं लेकिन यह कार्य कुछेक महिलाओं तक सीमित रह जाता है। अधिकांश महिलाएँ सशक्तिकरण की हवा के बीच में से झांकती हुई दिख जाती हैं।
What's Your Reaction?