2 सितंबर 1994 को पहाड़ों की रानी मसूरी गोलियों की आवाज से गूंज उठी थी, 6 लोगो हुए शहीद वह एक पुलिस अधिकारी भी हुई थी मौत

Sep 2, 2024 - 01:01
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2 सितंबर 1994 को पहाड़ों की रानी मसूरी गोलियों की आवाज से गूंज उठी थी, 6 लोगो हुए शहीद वह एक पुलिस अधिकारी भी हुई थी मौत

  • 30 साल मसूरी गोलीगांड और 24 साल प्रदेश का निर्माण होने बाद भी नही बन पाया शहीदों के सपनो का उत्तराखंड
    प्रदेश में क्षेतिज आरक्षण लागू होने पर मुख्यमंत्री का जताया आभार

    मसूरी।
    दो सितंबर का दिन मसूरी के इतिहास का काला दिन माना जाता है। जब 2 सितंबर 1994 को शांत वातावरण के लिए मशहूर पहाड़ों की रानी मसूरी गोलियों की आवाज से गूंज उठी थी। दो सितंबर 1994 को राज्य आंदोलनकारियों पर पुलिस ने गोलियां चला दीं थी। मसूरी गोलीकांड की 30वीं बरसी है, लेकिन राज्य आंदोलनकारी पहाड़ का पानी, जवानी और पलायन रोकने की मांग लगातार कर रहे हैं। खटीमा गोलीकांड के विरोध में दो सितंबर 1994 को आंदोलनकारी मसूरी में जुलूस निकालते हुए मसूरी झूलाघर पहुंचे जहां पर वर्तमान शहीद स्थल पर संयुक्त संघर्ष समिति कार्यालय में सभी प्रदर्शनकारी एकत्रित हुए कि अचानक से उत्तर प्रदेश की पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलाना शुरू कर दी जिसमें 2 महिला और 4 पुरुष शहीद हो गए व उत्तर प्रदेश का के पुलिस अधिकारी भी इसमें मारे गये।

30 साल मसूरी गोलीकांड के पूरे होने के बाद भी राज्य आंदोलनकारी अपने आप को ढंग से महसूस कर रहे है उन्होंने कहा कि प्रदेश में पहाड़ के विकास के साथ प्रदेश की जन जंगल जमीन को बचाने की मांग को लेकर उत्तराखंड बनाया गया परन्तु प्रदेश का विकास शहीदों और आंदोलनकारियों के सपनो के अनुरूप नही बन पाया प्रदेश में भूमाफिया, शराब और खनन माफियाओं का कब्जा हो गया। 24 साल में भी कई राज्य आंदोलनकारियों का चिन्हीकरण का काम भी पूरा नही हो पाया है व राज्य आंदोलकारियों को सामान पेषन मिलने के कारण वृद्व पेषन का लाभ नही मिल पा रहा है।


राज्य आंदोलनकारी पहाड़ का पानी, जवानी और पलायन रोकने की मांग लगातार कर रहे हैं। राज्य आंदोलनकारी पूरण जुयाल ने बताया कि खटीमा गोलीकांड के विरोध में दो सितंबर 1994 को आंदोलनकारी मसूरी में जुलूस लेकर उत्तराखंड संयुक्त संघर्ष समिति के कार्यालय झूलाघर जा रहे थे।इस दौरान गनहिल की पहाड़ी से किसी ने पथराव कर दिया, जिससे बचने के लिए आंदोलनकारी कार्यालय में जाने लगे। इसी बीच पुलिस ने आंदोलनकारियों पर गोलियां चला दीं। गोलीकांड में राज्य आंदोलनकारी मदन मोहन मंमगाई, हंसा धनाई, बेलमती चौहान, बलवीर नेगी, धनपत सिंह, राय सिंह बंगारी शहीद हो गए थे।  साथ ही सैंट मैरी अस्पताल के बाहर पुलिस के सीओ उमाकांत त्रिपाठी की भी मौत हो गई थी। वही पुलिस द्वारा कई आदोलकारियों को जेल में डाल दिया कई के साथ बबरता की गई।

जोत सिंह गुंसोला पूर्व विधायक मसूरी और राज्य आंदोलनकारी मसूरी

इसके बाद पुलिस ने आंदोलनकारियों की धरपकड़ शुरू की. क्रमिक अनशन पर बैठे पांच आंदोलनकारियों को पुलिस ने एक सितंबर की शाम को ही गिरफ्तार कर लिया था, जिनको अन्य गिरफ्तार आंदोलनकारियों के साथ में पुलिस लाइन देहरादून भेजा गया. वहां से उन्हें बरेली सेंट्रल जेल भेज दिया गया था. वर्षों तक कई आंदोलनकारियों को सीबीआई के मुकदमे भी झेलने पड़े थे.उन्होंने कहा कि मसूरी में पुलिस ने जुल्म की सारी हदें पार कर दी थीं। उन्होने कहा कि जिन सपनों के लिए राज्य की लड़ाई लड़ी गई, वो अब तक पूरे नहीं हुए हैं। राज्य आंदोलनकारी देवी गोदियाल, नरेन्द्र पडियार ने कहा पहाड़ से पलायन रोकने में सरकारें असफल रही हैं, भू-कानुन को लेकर कोई ठोस नीति नहीं बन सकी है। उन्होने कहा कि राज्य बनने के 24 साल के बाद मुख्यमंत्री पुश्कर सिंह धामी के द्वारा राज्य आंदोलनाकारियों की क्षेजित आरक्षण की मांग को पूरा किया गया जिसके लिये सभी आंदोलनकारी मुख्यमंत्री और राजपाल का आभार जताते है।राज्य आंदोलनकारी आरपी बडोनी कहते हैं कि दो सितंबर की घटना को कभी भुलाया नहीं जा सकता।

देवी गोदियाल राज्य आंदोलनकारी मसूरी

उन्होंने कहा कि पुलिस के सीओ को भी शहीद का दर्जा मिलना चाहिए। कहा कि उत्तराखंड की सत्ता पर काबिज रही पार्टियों ने पहाड़ को छलने और ठगने का काम किया है। पहाड़ का विकास आज भी एक सपना बना हुआ है। उन्होने कहा कि हर साल 2 सिंतबर को सभी पार्टी के नेता और सत्ता में बैठे जनप्रितिनिधि मसूरी पहुंचकर शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं. उत्तराखंड के विकास को लेकर और उनके द्वारा प्रदेश को विकसित किए जाने को लेकर चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं का बखान करते हैं, लेकिन दुर्भाग्य से जिस सपनों का उत्तराखंड शहीदों और आंदोलनकारियों ने देखा था. वह उत्तराखंड नहीं बन पाया है. पहाड़ों से पलायन जारी है गांव-गांव खाली हो गए है। उन्होने कहा कि सरकार द्वारा प्रदेश के विकास के लेकर विभन्नि योजनाओं के तहत कार्यो तो किये जा रहे है परन्तु पहाड के विकास को लेकर सरकारके पास कोई ठोस नीति नही है पहाड खाली हो गए है युवा पालायन कर चुके है।

रिपोर्ट: सुनील सोनकर

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