मदरसे में आजादी का जश्न, किताबों की जगह देशभक्ति की कसमें।

Sambhal: जब आजादी का जश्न मनाने की बारी आई तो सम्भल के मोहल्ला ठेर स्थित मरकजी मदरसा अहले सुन्नत अजमल उलूम ने इस बार पढ़ाई ...

Aug 15, 2025 - 12:10
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मदरसे में आजादी का जश्न, किताबों की जगह देशभक्ति की कसमें।
मदरसे में आजादी का जश्न, किताबों की जगह देशभक्ति की कसमें।

उवैस दानिश, सम्भल

जब आजादी का जश्न मनाने की बारी आई तो सम्भल के मोहल्ला ठेर स्थित मरकजी मदरसा अहले सुन्नत अजमल उलूम ने इस बार पढ़ाई की पंक्तियों को देशभक्ति की आवाज़ में बदल दिया। आम दिनों में जहाँ बच्चे किताबों और कक्षाओं में डूबे रहते हैं, वहीं स्वतंत्रता दिवस पर उनके हाथों में तिरंगा था और दिलों में वतन से मोहब्बत का जज़्बा।

सुबह-सुबह मदरसे में तिरंगा फहराया गया। तीन रंगों की शान जैसे ही आसमान में लहराई, बच्चों की आवाज़ों में "जन गण मन" गूंज उठा। इसके बाद जब "सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा" का तराना सुरों में बहा तो माहौल पूरी तरह आजादी के रंग में रंग गया। मदरसे की दीवारें, कमरे और आंगन जगह-जगह तिरंगा पतंगों से सजे थे। ऐसा लग रहा था मानो पूरा मदरसा एक छोटा हिंदुस्तान बन गया हो। इस मौके पर बच्चों ने भाषण भी दिए। खास बात यह रही कि कोई केवल हिंदी तक सीमित नहीं रहा। किसी ने इंग्लिश में आजादी की अहमियत बताई, तो किसी ने उर्दू में शहीदों के किस्से सुनाए। वहीं अरबी में भाषण ने माहौल को और खास बना दिया। बच्चों के हर लफ़्ज़ में एक ही पैगाम था— हम हिंदुस्तानी हैं और वतन पर मर मिटना हमारी सबसे बड़ी जिम्मेदारी है। रंग-बिरंगी टोपी पहने छोटे-छोटे छात्र जब हाथों में तिरंगा लेकर "हिंदुस्तान जिंदाबाद" के नारे लगाते दिखे, तो हर चेहरा देशभक्ति से चमक रहा था। उनकी आँखों में सपनों का भारत था और दिल में कुर्बानी का जज्बा। कार्यक्रम में शामिल मुफ्ती आलम राजा नूरी ने बच्चों को संबोधित करते हुए कहा कि इतिहास गवाह है, मदरसों ने आजादी की लड़ाई में अहम भूमिका निभाई है।

उलेमा और विद्वानों ने अपने खून से इस मिट्टी को सींचा है। उन्होंने कहा कि आज का दिन सिर्फ उत्सव का दिन नहीं, बल्कि यह बच्चों को यह एहसास दिलाने का दिन है कि वे सिर्फ किताबों के लिए नहीं, बल्कि देश की सेवा के लिए भी पैदा हुए हैं। आखिर में मदरसे की फिज़ा में दुआएं गूंज उठीं। बच्चों और शिक्षकों ने मिलकर वतन की तरक्की, अमन-चैन और भाईचारे की दुआ मांगी। सम्भल का यह नज़ारा एक अनोखा संदेश देता है कि जब दिलों में देशभक्ति की लौ जलती है तो न उम्र मायने रखती है, न जगह। चाहे मदरसा हो या कोई और संस्था, आजादी का जश्न हर दिल में बराबर धड़कता है।

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