धांधली: स्वयं को डिप्टी सीएम का करीबी बताकर अधिकारियों पर धौंस जमाता था, सही जानकारी उजागर न करना भारी पड़ा
घोटाले की इस बड़ी करतूत से जुड़े दो फर्मों के प्रोपराईटर स्वयं को डिप्टी सीएम का करीबी बताता था। इसी हनक के सहारे उसने इन अभियंताओं की लगाम अपने हाथ मे ले रखी थी। प्रोपराईटर की पहुंच डिप्टी...
By INA News Hardoi.
जिले में मानकविहीन सड़क निर्माण घोटाले मामले में सभी तथ्यों की जानकारी होते हुए भी उसे उजागर न करना सफेदपोश अधिकारियों के लिए मुसीबत का सबब बन गया है। अब तक इस मामले को लेकर हुई कार्रवाई की जद में 16 अभियंता निलंबित किये जा चुके हैं लेकिन कार्रवाई अभी भी जारी है। सीएम योगी के आदेश पर शुरू की गई इस कार्रवाई के तूफान से उठने वाली मिट्टी अभी और अधिकारियों या जिम्मेदारों की सफेद कॉलर की मैला कर सकती है। इसी जांच के बीच एक चौंका देने वाला खुलासा हुआ है।
जानकारी मिली है कि घोटाले की इस बड़ी करतूत से जुड़े दो फर्मों के प्रोपराईटर स्वयं को डिप्टी सीएम का करीबी बताता था। इसी हनक के सहारे उसने इन अभियंताओं की लगाम अपने हाथ मे ले रखी थी। प्रोपराईटर की पहुंच डिप्टी सीएम तक होने की बात को सच मान बैठे अभियंता घटिया सड़क निर्माण में हर पहलू को जानते हुए खामोश रहे ताकि कहीं विरोध करना उन पर ही भारी न पड़ जाए। सनद हो कि लखनऊ-पलिया राष्ट्रीय राजमार्ग से सांडी शाहाबाद मार्ग को जोड़ने वाले रद्धेपुरवा सकतपुर मार्ग के चौड़ीकरण और सुदृढ़ीकरण का कार्य 58,97,38,000 रुपये की लागत से कराया जाना था।
यह भी पढ़ें: हरदोई: तेंदुए के पदचिन्ह मिलने की खबर से पूरे इलाके में सनसनी, घरों में दुबके लोग
सिंगल लेन की इस सड़क को सात मीटर चौड़ा किया जा रहा था। उक्त कार्य मेसर्स प्रोग्रेसिव कंस्ट्रक्शन कंपनी के पास था। कंपनी का प्रोपराइटर खुद को सूबे के एक डिप्टी सीएम का न सिर्फ घनिष्ट बल्कि रिश्तेदार तक बताकर पूरे विभाग पर रौब झाड़ता था। यह भी जान लीजिये कि चारों निर्माण कार्याें में बड़ी गड़बड़ियां मिली थीं, जिनकी पोल जांच में खुल गयी कि बिटूमिन कंक्रीट (बीसी) का घनत्व भी 95 से 100 फीसदी के बीच आना चाहिए था, लेकिन जांच में यह कम मिला।
सीमेंट एक फीसदी और इमलसन 3.5 फीसदी होना चाहिए था। इसे आईटीएस यानी इनडायरेक्ट टेन साइड स्ट्रेंथ कहते हैं। न्यूनतम 225 किला पास्कल एरिया होना चाहिए लेकिन जांच में यह भी कम निकला। बिटूमिन यानी डामर (तारकोल) 4.5 फीसदी होना चाहिए। जांच में यह भी कम निकला। डेंस ग्रेडेड विटूमिन मैकेडम (डीबीएम) का घनत्व (डेंसिटी) 95 से 100 फीसदी के बीच आना चाहिए था।
जांच में 95 से कम निकला लेकिन प्रोपराईटर के रसूख के आगे अधीक्षण अभियंता से लेकर लिपिक तक खामोश रहते थे। निर्माण कार्य देरी से शुरू करने के बाद भी विभाग के स्थानीय अभियंता कभी उसे एक नोटिस तक न दे पाए। जांच में निर्माण सामग्री का नमूना फेल हो गया, लेकिन स्थानीय अभियंता रसूखदार ठेकेदार के आगे नतमस्तक ही नजर आते थे। इसकी वजह न सिर्फ ठेकेदार का रसूख बल्कि कमीशन का खेल भी था। इसी फर्म के प्रोपराइटर के करीबी की फर्म मेसर्स सायरस इंफ्रा नाम से है। इस फर्म ने हरदोई-सांडी मार्ग के नवीनीकरण का काम किया था। इसमें लगभग तीन करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं।
What's Your Reaction?