Agriculture News: सोशल मीडिया के माध्यम से कृषि उत्पादों की ऑनलाइन मार्केटिंग।
निजी कम्पनियों के मेहंगे बीज, कीटनाशकों व उर्वरकों की महंगाई और कृषिगत मजदूरों की उपलब्धता में कमी होने से कृषि में लागत बढ़ गई है....
लेखक परिचय
अरविन्द सुथार पमाना ♦वरिष्ठ कृषि एवं पर्यावरण पत्रकार, अनार एवं बागवानी विशेषज्ञ, कृषि सलाहकार, मोटिवेटर एवं किसानों के मार्गदर्शक।
[सबसे बड़ी समस्या है किसानों का पढ़ा लिखा ना होना, ऐसी स्थिति में सामूहिक कृषि विपणन को अपनाना चाहिए। इसमें किसानों का आपसी तालमेल अपेक्षित है। जहां एक दूसरे के सहयोग से मंडीकरण का दायरा बढ़ा सकते है। इसकी शुरुआत व्हाट्सएप समूह बनाकर करनी चाहिए। कई सारे किसान व्हाट्सएप समूह बनाकर अपने उत्पादों को वांछित ग्राहकों तक पहुंचा सकते हैं। इस विपणन कार्य में कौशल विकास की आवश्यकता है, जिसे कृषि विभाग, विपणन बोर्ड, कृषि विश्वविद्यालय व अन्य संस्थाओं द्वारा प्रशिक्षण आयोजित करके सिखाया जा सकता है।]
निजी कम्पनियों के मेहंगे बीज, कीटनाशकों व उर्वरकों की महंगाई और कृषिगत मजदूरों की उपलब्धता में कमी होने से कृषि में लागत बढ़ गई है और आमदनी कम हो गई है, इसलिए कृषि असफल है। इसका मुख्य कारण यही है कि व्यापार और उत्पादन दोनों अलग-अलग हाथों में हैं। किसानों की यह मानसिकता रही है कि हम भूमि के मालिक हैं और हमारा कार्य केवल उत्पादन करना ही है। ये ही नैतिक मूल्य आने वाली पीढ़ी में भी उत्तरोत्तर प्रवेश कर रहे हैं। ऐसे में उत्पादन की लागत व्यापार की आमदनी से कहीं पीछे रह जाती है। यही अंतर खेती में असफलता प्रदर्शित करता है। वर्तमान समय की मांग है कि उत्पादन और व्यापार दोनों एक ही हाथ में हो, ताकि उत्पादक भी बाजार की नब्ज पहचान कर खेती करे। मौजूदा दौर में व्यापार को कामयाब करने के लिए उचित मंडीकरण के हुनर की आवश्यकता है। किसान असफल इसलिए है क्योंकि व्यापार को उचित ढंग से समझने की कोशिश नहीं करता है। आज का किसान असमंजस में है कि उत्पादन करें या व्यापार। जबकि सच्चाई यह है कि उत्पादक को व्यापारी व व्यापारी को उत्पादक बनने की आवश्यकता है।
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ऑनलाइन मंडीकरण
किसी व्यवसाय की सफलता उसके उचित मंडीकरण पर निर्भर करती है। मौजूदा युग व्यापार और सूचना का युग है, जिसमें किसी उत्पाद को उपभोक्ताओं तक पहुंचाने हेतु सूचनाओं को माध्यम बनाया जाए तो वह बहुत ही निचले स्तर तक पहुंच सकता है। इसी अवधारणा का दूसरा नाम है ऑनलाइन मंडीकरण। वर्तमान में ऑनलाइन उत्पादों की खरीद का दायरा बढ़ता जा रहा है। इसे ऑनलाइन कृषि मंडीकरण से जोड़ने की आवश्यकता है।
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वॉट्सअप ग्रुप से व्यापार
कृषि व्यापार की भारत में सबसे बड़ी समस्या किसानों का पढ़ा लिखा ना होना है। ऐसी स्थिति में सामूहिक कृषि विपणन को अपनाना चाहिए। इसमें किसानों का आपसी तालमेल अपेक्षित है। जहां एक दूसरे के सहयोग से मंडीकरण का दायरा बढ़ा सकते है। इसकी शुरुआत व्हाट्सएप समूह बनाकर करनी चाहिए। कई सारे किसान व्हाट्सएप समूह बनाकर अपने उत्पादों को वांछित ग्राहकों तक पहुंचा सकते हैं। इस विपणन कार्य में कौशल विकास की आवश्यकता है, जिसे कृषि विभाग, विपणन बोर्ड, कृषि विश्वविद्यालय व अन्य संस्थाओं द्वारा प्रशिक्षण आयोजित करके सिखाया जा सकता है। साथ ही ग्राम्य स्तर के व्हाट्सएप समूह को सीधा विपणन बोर्ड व व्यापार मंडल से जोड़ देना चाहिए, यह एक ऐसा प्लेटफॉर्म बनकर उभर सकता है जिसमें कृषि जिंसों की एडवांस मांग भी बुक की जा सकती है। ऑनलाइन व्यापार का दायरा धीरे-धीरे बढ़ाकर, वेबसाइट बनाकर या अन्य कंपनी के साथ मार्केटिंग अनुबंध करके एक टिकाऊ कृषि विपणन चैन बनाई जा सकती है। ऑनलाइन व्यापार करने हेतु कृषि विभिन्नताएं होनी आवश्यक हैं और ग्राहकों की हर मांग की पूर्ति अनिवार्य हो जाती है। इसके लिए अन्य गांवों के किसान समूहों से भी तालमेल बनाए रखना होता है। इसके अभाव में उत्पादक किसान के मस्तिष्क में व्यापार की समझ उत्पन्न नहीं होगी।
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स्वतः मंडीकरण
एक किसान को कैसे कॉरपोरेट बना सकते हैं इस विषय पर कृषि दिग्गजों द्वारा गहरे मंथन व कृषि अनुसंधान की आवश्यकता है। भारत सरकार की एफपीओ बनाकर किसानों की आय बढ़ाने की परिकल्पना से कहीं अगला कदम स्वतः मंडीकरण है। जिसमें किसान समूह किसी पर निर्भर नहीं रहकर सीधे ग्राहकों तक पहुंच सकेगा। यहीं से प्रारंभ होगा शहरों का गांवों की ओर पलायन।
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एफपीओ की अवधारणा समझें
किसानों की उपज का सीधे ग्राहक तक मंडीकरण तभी सफल होगा जब किसानों के पास अपनी उपज की प्रोसेसिंग के पुख्ता प्रबंध होंगे। यहीं पर एफपीओ की अवधारणा सुदृढ कार्य करेगी। किसान समूह मिलकर फूड प्रोसेसिंग यूनिट लगा सकते हैं, इसमें कृषि विश्वविद्यालयों के फूड प्रोसेसिंग विभागों की भूमिका अपेक्षित रहेगी। क्योंकि किसान को प्रोसेसिंग संबंधित प्रशिक्षण देकर निपुण करना होगा। इसके अंतर्गत किसानों के एफपीओ, स्वयं सहायता समूहों आदि के द्वारा किसान हाट खोलकर या सप्ताहिक मंडियों का आयोजन करके अपने उत्पाद सीधे ग्राहकों को बेचे जा सकेंगे।
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सोशल मीडिया को बनाएं माध्यम
कुछ अग्रसर किसान एवं सेल्फ हेल्प ग्रुप निजी संपर्कों एवं सोशल मीडिया के माध्यम से अपने उत्पादों को सीधा घरों में पहुंचा सकते हैं। निजी प्रयास सबसे आसान तरीका है। मंडीकरण का यह मॉडल सप्ताहिक मंडियों के अलावा अन्य दुकानों से भी जोड़कर सफल बनाया जा सकता है। अपनी दुकान नामक अवधारणा से भी ग्राहकों को आकर्षित कर सकते हैं इसके लिए अधिक प्रचार-प्रसार की आवश्यकता होगी।
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बढाएं विपणन कौशल
किसी भी प्रयास को समझ बढ़ाकर निखारा जा सकता है। मंडीकरण के ऐसे प्रयासों को एकत्र कर उन्हें सार्थक बनाने की आवश्यकता है। किसानों ने अपने खेतों में हर तकनीक को सफल करके दिखाया है। किसानों में विपणन कौशल को विकसित करके, एक टिकाऊ श्रंखला बनाकर रोजगार का नव सृजन कर सकते हैं। उपरोक्त सभी बातें जब एक उत्पादक किसान समझेगा तब उसे व्यापार में रुचि उत्पन्न होगी और इसी से सार्थक होगा किसान का व्यापारी बनना। अंततः उत्पादन व विपणन दोनों एक ही हाथ में आएंगे, कृषि लागत व आमदनी का तालमेल स्वत: ही बनने लगेगा।
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