DRDO का ऐतिहासिक सफल परीक्षण- चंडीगढ़ में 800 किमी/घंटा की रफ्तार पर फाइटर जेट एस्केप सिस्टम की मजबूती सिद्ध, पायलट सुरक्षा को मिला नया आयाम।
रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन ने चंडीगढ़ स्थित टर्मिनल बेलिस्टिक्स रिसर्च लेबोरेटरी के रेल ट्रैक रॉकेट स्लेड सुविधा पर फाइटर
रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन ने चंडीगढ़ स्थित टर्मिनल बेलिस्टिक्स रिसर्च लेबोरेटरी के रेल ट्रैक रॉकेट स्लेड सुविधा पर फाइटर एयरक्राफ्ट एस्केप सिस्टम का उच्च गति पर सफल परीक्षण किया है। यह परीक्षण 2 दिसंबर 2025 को संपन्न हुआ, जिसमें सिस्टम को 800 किलोमीटर प्रति घंटा की नियंत्रित गति पर परखा गया। परीक्षण के दौरान कैनोपी सेवरेंस, इजेक्शन सीक्वेंसिंग तथा पूर्ण एयरक्रू रिकवरी जैसे तीन महत्वपूर्ण घटकों की प्रभावकारिता को सत्यापित किया गया। यह परीक्षण एयरोनॉटिकल डेवलपमेंट एजेंसी तथा हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड के सहयोग से आयोजित किया गया, जो भारतीय वायुसेना के पायलटों की सुरक्षा को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। परीक्षण की सफलता ने स्वदेशी रक्षा प्रौद्योगिकी में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा दिया है तथा भारत को उन्नत एस्केप सिस्टम परीक्षण क्षमता वाले चुनिंदा देशों की श्रेणी में स्थापित किया है।
परीक्षण की प्रक्रिया रॉकेट स्लेड तकनीक पर आधारित थी, जिसमें एक विशेष रिग को रेल ट्रैक पर 800 किलोमीटर प्रति घंटा की गति तक तेज किया गया। यह गति फ्रंटलाइन फाइटर जेट्स द्वारा उड़ान के महत्वपूर्ण चरणों में अनुभव की जाने वाली चरम स्थितियों के समकक्ष थी। रॉकेट स्लेड सुविधा ने एरोडायनामिक भारों तथा उच्च गतियों का सटीक अनुकरण किया, जबकि सभी पैरामीटर्स को जमीन पर ही नियंत्रित तथा उपकरणों से निगरानी में रखा गया। परीक्षण में कैनोपी को अलग करने की प्रक्रिया, इजेक्शन सिस्टम के सक्रियण तथा पैराशूट आधारित रिकवरी का पूरा चक्र जांचा गया। यह डायनामिक इजेक्शन परीक्षण स्थिर परीक्षणों जैसे नेट टेस्ट या जीरो-जीरो टेस्ट से कहीं अधिक जटिल था, जो इजेक्शन सीट की प्रदर्शन क्षमता तथा कैनोपी सेवरेंस सिस्टम की वास्तविक प्रभावकारिता का सटीक मूल्यांकन करता है। परीक्षण के दौरान प्राप्त आंकड़ों ने साबित किया कि सिस्टम चरम स्थितियों में भी सुरक्षित तथा सटीक रूप से कार्य करता है।
टर्मिनल बेलिस्टिक्स रिसर्च लेबोरेटरी की रेल ट्रैक रॉकेट स्लेड सुविधा 2014 में स्थापित की गई थी, जो चार किलोमीटर लंबी पेंटा रेल सुपरसोनिक ट्रैक पर आधारित है। यह सुविधा उच्च गति परीक्षणों के लिए डिजाइन की गई है तथा रक्षा क्षेत्र में विभिन्न प्रणालियों की मजबूती जांचने में उपयोगी सिद्ध हो चुकी है। परीक्षण के संचालन में DRDO के वैज्ञानिकों ने सटीक नियंत्रण सुनिश्चित किया, जिसमें गति, भार तथा वायुगतिकीय प्रभावों का समन्वय शामिल था। सफलता के बाद संगठन ने वीडियो के माध्यम से परीक्षण के प्रमुख क्षणों को साझा किया, जिसमें रॉकेट स्लेड की तेज गति तथा एस्केप सिस्टम के सक्रियण को दर्शाया गया। यह वीडियो परीक्षण की पारदर्शिता तथा तकनीकी सटीकता को प्रदर्शित करता है।
एस्केप सिस्टम फाइटर जेट्स में पायलटों की आपातकालीन निकासी के लिए आवश्यक है, विशेषकर उच्च गति तथा चरम उड़ान स्थितियों में। पारंपरिक सिस्टम में कैनोपी को हाथ से या स्वचालित रूप से हटाना पड़ता है, लेकिन आधुनिक डिजाइन में विस्फोटक चार्ज के माध्यम से कैनोपी को तुरंत अलग किया जाता है, उसके बाद इजेक्शन सीट सक्रिय होती है। इस परीक्षण ने इन सभी चरणों की एकीकृत कार्यक्षमता को सत्यापित किया, जो पायलटों को सुरक्षित रूप से निकालने में सहायक है। परीक्षण का उद्देश्य स्वदेशी सिस्टम की विश्वसनीयता सुनिश्चित करना था, जो विदेशी प्रौद्योगिकी पर निर्भरता को कम करेगा। DRDO ने इस सिस्टम को तेजस जैसे स्वदेशी फाइटर जेट्स के लिए अनुकूलित किया है, जहां फोरबॉडी से पायलट सीट की निकासी की प्रक्रिया को विशेष रूप से परखा गया।
परीक्षण की सफलता ने रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की दिशा को मजबूत किया है। यह परीक्षण मई 2025 में आयोजित ऑपरेशन सिंदूर के बाद आया, जिसमें DRDO के स्वदेशी सैन्य सिस्टमों की बहु-क्षेत्रीय मिशन में प्रभावकारिता प्रदर्शित हुई थी। अगस्त 2025 में DRDO के अध्यक्ष ने इस ऑपरेशन का उल्लेख करते हुए स्वदेशी प्रौद्योगिकियों की भूमिका पर जोर दिया था। वर्तमान परीक्षण ने एयरोस्पेस विकास तथा पायलट सुरक्षा मानकों में प्रगति को रेखांकित किया। संगठन ने भविष्य में और अधिक परीक्षणों की योजना बनाई है, जो विभिन्न गति स्तरों तथा पर्यावरणीय स्थितियों पर सिस्टम की क्षमता को परखेंगे। यह प्रयास भारतीय वायुसेना की आधुनिकीकरण प्रक्रिया का हिस्सा है, जहां स्वदेशी उपकरणों का एकीकरण प्रमुख है।
रक्षा मंत्रालय ने परीक्षण को स्वदेशी रक्षा क्षमताओं के लिए महत्वपूर्ण मील का पत्थर बताया। इस उपलब्धि ने भारत को उन्नत इन-हाउस एस्केप सिस्टम परीक्षण क्षमता वाले देशों के साथ जोड़ा है। परीक्षण में शामिल टीमों ने जटिल डायनामिक परीक्षण की चुनौतियों का सामना किया, जिसमें उच्च गति पर नियंत्रण तथा डेटा संग्रह शामिल था। सफलता के बाद मंत्रालय ने सभी भागीदार संगठनों को बधाई दी, जो इस सहयोग को रक्षा क्षेत्र की एकजुटता का प्रतीक मानता है। DRDO के अध्यक्ष ने टीम को सफल प्रदर्शन के लिए धन्यवाद दिया, जो रणनीतिक एयरोस्पेस विकास में योगदान देगा।
फाइटर एयरक्राफ्ट एस्केप सिस्टम का विकास लंबे समय से चल रहा है, जिसमें DRDO ने कैनोपी सेवरेंस सिस्टम पर विशेष ध्यान दिया है। यह सिस्टम उड़ान तथा जमीनी आपातकालों दोनों में उपयोगी है। परीक्षण ने इन-फ्लाइट तथा ग्राउंड इमरजेंसी के लिए डिजाइन की गई प्रणाली की मजबूती सिद्ध की। रॉकेट स्लेड तकनीक ने वास्तविक उड़ान स्थितियों का सुरक्षित अनुकरण किया, जो मानव संसाधनों को जोखिम में डाले बिना परीक्षण संभव बनाती है। सुविधा की स्थापना के बाद से यह कई महत्वपूर्ण परीक्षणों का केंद्र रही है, जो रक्षा प्रौद्योगिकी में नवाचार को बढ़ावा देती है।
यह परीक्षण तेजस जेट के फोरबॉडी से पायलट सीट की निकासी पर केंद्रित था, जो स्वदेशी विमान विकास का हिस्सा है। तेजस कार्यक्रम में एस्केप सिस्टम का एकीकरण महत्वपूर्ण है, जो विमान की समग्र सुरक्षा को सुनिश्चित करता है। परीक्षण के आंकड़ों से पता चला कि सिस्टम उच्च गति पर भी सटीक समयबद्धता के साथ कार्य करता है, जो पायलटों की जीवित रहने की संभावना को बढ़ाता है। DRDO ने इस प्रौद्योगिकी को अन्य स्वदेशी प्लेटफॉर्म्स के लिए विस्तारित करने की योजना बनाई है, जो रक्षा निर्यात क्षमता को भी मजबूत करेगा।
परीक्षण की प्रक्रिया में सुरक्षा प्रोटोकॉल का कड़ाई से पालन किया गया, जिसमें सभी चरणों की पूर्व-जांच तथा वास्तविक समय निगरानी शामिल थी। रॉकेट स्लेड को सटीक गति तक पहुंचाने के लिए उन्नत प्रणोदन प्रणाली का उपयोग किया गया, जो परीक्षण की विश्वसनीयता सुनिश्चित करती है। प्राप्त परिणामों का विश्लेषण भविष्य के डिजाइन सुधारों के लिए आधार प्रदान करेगा। यह परीक्षण DRDO की बहु-विषयक अनुसंधान क्षमता को दर्शाता है, जहां इंजीनियरिंग, बैलिस्टिक्स तथा एयरोडायनामिक्स का समन्वय आवश्यक है।
स्वदेशी रक्षा प्रौद्योगिकी के संदर्भ में यह परीक्षण एक कदम आगे है, जो आयातित सिस्टमों पर निर्भरता को कम करता है। परीक्षण ने पुष्टि की कि भारतीय डिजाइन वैश्विक मानकों पर खरा उतरता है, जो सैन्य तैयारियों को मजबूत बनाता है। संगठन ने परीक्षण के बाद डेटा का गहन मूल्यांकन शुरू किया है, जो आगे के प्रमाणीकरण परीक्षणों को निर्देशित करेगा। यह प्रयास रक्षा क्षेत्र में नवाचार को प्रोत्साहित करता है तथा युवा वैज्ञानिकों के लिए प्रेरणा स्रोत है।
परीक्षण की सफलता ने रक्षा मंत्रालय को आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत प्रगति पर जोर देने का अवसर प्रदान किया। यह उपलब्धि पायलट सुरक्षा को प्राथमिकता देने वाली नीतियों का परिणाम है, जो सैन्य संचालन की प्रभावकारिता बढ़ाती है। DRDO ने सहयोगी संगठनों के साथ मिलकर इस प्रोजेक्ट को समयबद्ध रूप से पूरा किया, जो संस्थागत साझेदारी की ताकत दर्शाता है। भविष्य में इसी सुविधा पर अन्य प्रणालियों के परीक्षण आयोजित किए जाएंगे, जो समग्र रक्षा क्षमता को सशक्त बनाएंगे।
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