काशी में वेदों का नया अध्याय: 19 वर्षीय देवव्रत महेश रेखे ने 50 दिनों में शुक्ल यजुर्वेद के 2,000 मंत्रों का दंडक्रम पारायण पूरा कर रचा इतिहास, वेदमूर्ति उपाधि प्राप्त। 

वाराणसी की पवित्र भूमि काशी में एक असाधारण उपलब्धि ने वेदों की प्राचीन परंपरा को नई जान फूंक दी है, जब महाराष्ट्र के 19 वर्षीय युवा विद्वान

Dec 3, 2025 - 11:55
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काशी में वेदों का नया अध्याय: 19 वर्षीय देवव्रत महेश रेखे ने 50 दिनों में शुक्ल यजुर्वेद के 2,000 मंत्रों का दंडक्रम पारायण पूरा कर रचा इतिहास, वेदमूर्ति उपाधि प्राप्त। 
काशी में वेदों का नया अध्याय: 19 वर्षीय देवव्रत महेश रेखे ने 50 दिनों में शुक्ल यजुर्वेद के 2,000 मंत्रों का दंडक्रम पारायण पूरा कर रचा इतिहास, वेदमूर्ति उपाधि प्राप्त। 

वाराणसी की पवित्र भूमि काशी में एक असाधारण उपलब्धि ने वेदों की प्राचीन परंपरा को नई जान फूंक दी है, जब महाराष्ट्र के 19 वर्षीय युवा विद्वान देवव्रत महेश रेखे ने शुक्ल यजुर्वेद के माध्यंदिन शाखा के लगभग 2,000 मंत्रों का दंडक्रम पारायण बिना किसी रुकावट के 50 दिनों में पूरा किया। यह उपलब्धि लगभग 200 वर्षों बाद भारत में हुई है, जो वेदों की मौखिक परंपरा को जीवंत रखने का प्रमाण है। देवव्रत को वेदमूर्ति की उपाधि प्रदान की गई, और इस ऐतिहासिक क्षण पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उन्हें सम्मानित किया। दंडक्रम पारायण, जो वेदपाठ की सबसे जटिल विधाओं में से एक है, में प्रत्येक मंत्र को 11 विभिन्न क्रमों में दोहराया जाता है, जिसमें स्वर, लय और उच्चारण की अखंडता अनिवार्य है। यह पारायण 2 अक्टूबर 2025 को वल्लभराम शालिग्राम संग्रह वेद विद्यालय, रामघाट, वाराणसी में प्रारंभ हुआ और 30 नवंबर 2025 को समाप्त हुआ, जहां देवव्रत ने प्रतिदिन सुबह 8 बजे से दोपहर 12 बजे तक लगभग 4-5 घंटे का समय समर्पित किया। यह उपलब्धि न केवल व्यक्तिगत अनुशासन का प्रतीक है बल्कि भारतीय संस्कृति की मौखिक परंपरा को संरक्षित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुई है।

देवव्रत महेश रेखे का जन्म महाराष्ट्र के अहिल्या नगर (औरंगाबाद) में हुआ, जहां वे एक वैदिक परिवार में पले-बढ़े। उनके पिता वेदब्रह्मश्री महेश चंद्रकांत रेखे शुक्ल यजुर्वेद माध्यंदिन शाखा के प्रमुख परीक्षक हैं तथा श्रींगेरी शारदा पीठम की वेद पोषक सभा से जुड़े हुए हैं। पिता ने ही देवव्रत को उनके गुरु के रूप में कठोर मौखिक प्रशिक्षण दिया, जो वर्षों से चली आ रही वैदिक परंपरा का हिस्सा है। देवव्रत ने बचपन से ही वेदों का अध्ययन प्रारंभ किया तथा उनकी स्मृति शक्ति और अनुशासन ने उन्हें इस जटिल पारायण के लिए तैयार किया। दंडक्रम विधा वेदों की आठ विकृत पाठ विधाओं में से एक है, जिसमें जटा, माला, शिक्षा, घन आदि के बाद दंड आता है। इसमें मंत्रों को क्रमबद्ध रूप से दोहराया जाता है, जैसे 1-2, 2-3, 3-2, 2-3-4 आदि, जो लगभग 25 लाख शब्द संयोजनों का निर्माण करता है। यह विधा स्मृति, उच्चारण सटीकता तथा श्वास नियंत्रण की मांग करती है, और इसे बिना पुस्तक के संदर्भ के पूरा करना दुर्लभ है। देवव्रत ने इस पारायण को शुद्धता के साथ समाप्त किया, जो इतिहास में तीसरी बार दर्ज हुआ है तथा भारत में दूसरे समय के रूप में, जहां से पहले नासिक के वेदमूर्ति नारायण शास्त्री देव ने लगभग 200 वर्ष पूर्व 100 दिनों में इसे संपन्न किया था।

पारायण की समाप्ति पर वाराणसी में एक भव्य शोभायात्रा निकाली गई, जिसमें स्थानीय विद्वान, संत तथा भक्त शामिल हुए। देवव्रत को श्रींगेरी शारदा पीठम के जगद्गुरु शंकराचार्यों द्वारा आशीर्वाद प्रदान किया गया तथा 5 लाख रुपये मूल्य की सोने की चूड़ी और 1,11,116 रुपये नकद भेंट के रूप में दिए गए। यह सम्मान दक्षिणाम्नाय श्रींगेरी शारदा पीठम की ओर से था, जिसने इस उपलब्धि को वैदिक परंपरा के पुनरुद्धार का प्रतीक बताया। पीठम के आधिकारिक संदेश में कहा गया कि दंडक्रम पारायण वेदपाठ का मुकुट है, जिसमें स्वर-भेद और ध्वन्यात्मक सटीकता की आवश्यकता होती है। देवव्रत की यह उपलब्धि सबसे कम अवधि में पूरी हुई है, जो उनकी असाधारण स्मृति और एकाग्रता को दर्शाती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि यह उपलब्धि आने वाली पीढ़ियों द्वारा याद रखी जाएगी तथा भारतीय संस्कृति के प्रति समर्पित हर व्यक्ति को गौरवान्वित करेगी। उन्होंने शुक्ल यजुर्वेद माध्यंदिन शाखा के 2,000 मंत्रों का बिना रुकावट 50 दिनों में पारायण पूरा करने को वैदिक पदों और पवित्र शब्दों की अचूक पाठ का उदाहरण बताया।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने काशी तमिल संगमम 4.0 कार्यक्रम के दौरान देवव्रत महेश रेखे को सम्मानित किया। यह आयोजन उत्तर और दक्षिण भारत की सांस्कृतिक एकता का प्रतीक था, जहां योगी ने देवव्रत को वैदिक जगत के लिए नई प्रेरणा का स्रोत बताया। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र के इस 19 वर्षीय युवा ने 2,000 वैदिक मंत्रों को असाधारण अभ्यास और स्मृति शक्ति से संग्रहित कर दंडकर्मा पारायण को शुद्ध और पूर्ण अनुशासन के साथ 50 दिनों में समाप्त किया, जो प्राचीन गुरु परंपरा की महिमा का पुनरुद्धार है। योगी ने इस उपलब्धि को आध्यात्मिक जगत के लिए प्रेरणादायी बताया तथा कहा कि यह भारतीय संस्कृति की अमर परंपरा को मजबूत करने का प्रमाण है। सम्मान समारोह में देवव्रत को शॉल, श्रीफल तथा सम्मान पत्र प्रदान किया गया, जो काशी विश्वनाथ धाम के संदर्भ में वैदिक विद्या के संरक्षण को जोड़ता है। योगी ने अपने संदेश में जोर दिया कि ऐसी उपलब्धियां युवाओं को वैदिक अध्ययन की ओर प्रेरित करेंगी तथा सनातन संस्कृति की जड़ों को मजबूत करेंगी।

दंडक्रम पारायण की जटिलता को समझने के लिए इसकी संरचना पर नजर डालनी आवश्यक है। शुक्ल यजुर्वेद की माध्यंदिन शाखा में वाजसनेयी संहिता के मंत्र शामिल हैं, जो यज्ञ और कर्मकांडों से जुड़े हैं। दंडक्रम में प्रत्येक मंत्र को क्रमिक रूप से दोहराया जाता है, जो स्मृति परीक्षण का माध्यम है। यह विधा वेदों को संरक्षित रखने के लिए विकसित हुई, क्योंकि लिखित रूप से पहले मौखिक परंपरा ही एकमात्र माध्यम थी। देवव्रत ने इस पारायण को वल्लभराम शालिग्राम संग्रह वेद विद्यालय में संपन्न किया, जो वाराणसी के रामघाट पर स्थित है तथा वैदिक शिक्षा का प्रमुख केंद्र है। यहां प्रतिदिन सुबह से दोपहर तक चलने वाले इस पारायण में अन्य विद्वान भी उपस्थित रहते थे, जो देवव्रत की पाठ की निगरानी करते थे। समापन पर विद्वानों ने इसकी शुद्धता की पुष्टि की तथा कहा कि यह लगभग विलुप्त हो चुकी परंपरा का पुनरावलोकन है। इतिहास में इसकी तीन दर्ज उपलब्धियां हैं, जिनमें से एक अयोध्य में सामूहिक रूप से ऋग्वेद का 300 दिनों में पारायण था।

देवव्रत के पिता महेश चंद्रकांत रेखे ने इस उपलब्धि को परिवार की साझा यात्रा बताया। उन्होंने कहा कि देवव्रत का यह कार्य केवल शुरुआत है तथा वे आगे अन्य वैदिक विधाओं पर कार्य करेंगे। महेश रेखे स्वयं श्रींगेरी पीठम की वेद पोषक सभा के अंतर्गत शुक्ल यजुर्वेद माध्यंदिन शाखा के परीक्षक हैं तथा उन्होंने पुत्र को वर्षों के कठोर प्रशिक्षण से तैयार किया। इस पारायण में देवव्रत ने कोई ग्रंथ संदर्भ नहीं लिया तथा सब कुछ स्मृति से किया, जो वैदिक परंपरा का मूल सिद्धांत है। समापन समारोह में काशी के संतों और विद्वानों ने भाग लिया तथा कहा कि यह उपलब्धि वैदिक ज्ञान के संरक्षण के लिए प्रेरणा बनेगी। प्रधानमंत्री मोदी ने सोशल मीडिया पर फोटो साझा करते हुए कहा कि यह 2,000 मंत्रों का अचूक पाठ है, जिसमें वैदिक पदों की शुद्धता बरकरार रही। वित्त मंत्री निर्मला सीतारामन ने भी इस पर प्रतिक्रिया दी तथा वैदिक परंपरा के पुनरुद्धार को महत्वपूर्ण बताया।

यह उपलब्धि भारतीय वैदिक परंपरा के वैज्ञानिक और गणितीय पक्ष को भी उजागर करती है। वेदों में ज्यामितीय निर्माण, प्रमेय तथा वास्तुशास्त्र के सूत्र संरक्षित हैं, जो मौखिक परंपरा से ही बचे हैं। दंडक्रम जैसी विधाएं इनकी सटीकता सुनिश्चित करती हैं, और देवव्रत की यह उपलब्धि आधुनिक संदर्भ में वैदिक शिक्षा के महत्व को रेखांकित करती है। काशी, जो वैदिक विद्या का केंद्र रही है, में इस पारायण का होना विशेष महत्व रखता है। वल्लभराम शालिग्राम संग्रह वेद विद्यालय में ऐसे प्रयास नियमित होते हैं, लेकिन दंडक्रम का पूर्ण पारायण दुर्लभ है। समापन पर निकाली गई शोभायात्रा में स्थानीय निवासी शामिल हुए तथा वैदिक मंत्रों का सामूहिक जाप हुआ। देवव्रत ने कहा कि यह उनके गुरु पिता की कृपा और परंपरा के प्रति समर्पण का फल है।

श्रींगेरी पीठम ने इस उपलब्धि को वैश्विक स्तर पर साझा किया तथा कहा कि देवव्रत की यह पाठ शुद्ध और सबसे कम अवधि वाली है। जगद्गुरु शंकराचार्यों ने आशीर्वाद देते हुए कहा कि यह युवा विद्वान आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा स्रोत बनेगा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सम्मान के दौरान कहा कि यह कार्य प्राचीन गुरु-शिष्य परंपरा की महिमा का पुनरुद्धार है तथा वैदिक जगत के लिए नई दिशा प्रदान करेगा। काशी तमिल संगमम 4.0 में यह सम्मान सांस्कृतिक एकता का प्रतीक बना, जहां उत्तर और दक्षिण भारत की वैदिक परंपराओं का संगम हुआ। देवव्रत की यह उपलब्धि न केवल धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक महत्व की है, जो वेदों को जीवंत रखने का प्रयास दर्शाती है। भविष्य में ऐसे और पारायण आयोजित करने की योजना है, जो युवाओं को वैदिक अध्ययन की ओर आकर्षित करेंगे।

दंडक्रम पारायण की संरचना में मंत्रों को क्रमिक रूप से दोहराना पड़ता है, जो स्मृति को मजबूत बनाता है। शुक्ल यजुर्वेद में यज्ञ संबंधी मंत्र प्रमुख हैं, और माध्यंदिन शाखा में वाजसनेयी संहिता शामिल है। देवव्रत ने 50 दिनों में इसे बिना किसी भूल के समाप्त किया, जो उनकी स्मृति शक्ति का प्रमाण है। पिता महेश रेखे ने प्रशिक्षण में वर्षों लगाए, जिसमें मौखिक अनुशासन पर जोर दिया गया। यह उपलब्धि वैदिक परंपरा के संकट को भी दर्शाती है, क्योंकि आधुनिक युग में मौखिक पाठ कम हो रहा है। काशी में इसकी समाप्ति ने स्थानीय वैदिक विद्यालयों को प्रोत्साहित किया। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि यह कार्य भारतीय संस्कृति के प्रेमियों को गौरवान्वित करेगा। सम्मान समारोह में उपस्थित संतों ने वैदिक ज्ञान के संरक्षण पर चर्चा की।

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