Special article: वर्तमान के परिपेक्ष को देखकर जिस गुण की आवश्यकता है उसके परोधा थे भगवान परशुराम
भगवान परशुराम की मान्यता थी कि स्वस्थ समाज की संरचना के लिए ब्रह्मशक्ति और शस्त्र शक्ति दोनों का समन्वय आवश्यक मानते है...

मीनाक्षी ऋषि
(लेखिका विचारक वक्ता) आगरा
Special article: भगवान परशुराम की मान्यता थी कि स्वस्थ समाज की संरचना के लिए ब्रह्मशक्ति और शस्त्र शक्ति दोनों का समन्वय आवश्यक मानते है शस्त्र और शास्त्र दोनों का सिद्धांत वर्तमान समाज विशेष आवश्यकता रखते हैंपुरानी कथाओं के अनुसार भगवान परशुराम आठ अमर अवतारों में से माना गयाक्योंकि ब्राह्मण कुल में जन्मे पिता ऋषि जमदग्नि व क्षत्रिय कुल की राजकन्या माता रेणुका दोनों ही विलक्षण गुणों से सम्पन्न थे। जहां जमदग्नि जी को आग पर नियंत्रण पाने का वरदान प्राप्त था, वहीं माता रेणुका को पानी पर नियंत्रण पाने का।
माँ व पिता दोनों के इन दैवीय गुणों के साथ ऋषि दम्पति की पांचवी संतान के रूप में बैसाख माह की पावन अक्षय तृतीया तिथि को परशुराम जी का जन्म हुआ। इन्हें श्रेष्ठ मानवीय मूल्यों का प्रतिष्ठाता माना गया है। उनकी मान्यता थी कि राजा का धर्म वैदिक जीवन का प्रसार करना है न कि अपनी प्रजा से आज्ञापालन करवाना। अन्याय के विरुद्ध आवेशपूर्ण आक्रामकता के विशिष्ट गुण के कारण उन्हें भगवान विष्णु के ‘आवेशावतार’ की संज्ञा दी गयी है।
हिमालय को काटकर ब्रह्मपुत्र जैसे उग्र महानद को धरती पर लाने का श्रेय परशुराम जी को ही जाता है। वे गंगा की सहयोगी नदी रामगंगा को धरती पर लाये थे। पौराणिक उद्धरणों के अनुसार केरल, कन्याकुमारी व रामेश्वरम की संस्थापना भगवान परशुराम ने ही की थी। जिस स्थान पर उन्होंने तपस्या की थी, वह स्थान आज तिरुवनंतपुरम के नाम से प्रसिद्ध है। केरल में आज भी पुरोहित वर्ग संकल्प मंत्र में परशुराम क्षेत्र का उच्चारण कर उक्त समूचे क्षेत्र को परशुराम की धरती की मान्यता देता है।
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गोमांतक (गोवा) को भी परशुराम जी का कार्य क्षेत्र कहा जाता है। ब्राह्मण की परंपरा के अनुसार परशुराम जी बिहार के तिरहुत से दस परिवारों को लेकर आए और उन्हें आधुनिक गोवा के नाम से मशहूर गोकर्ण में बसाया था।यही नहीं, हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र और शुभ मानी जाने वाली कांवड़ यात्रा का शुभारंभ परशुराम जी ने सबसे पहले शिवजी को कांवड़ से जल चढ़ाकर किया था। गौरतलब हो कि “अंत्योदय” की बुनियाद भी परशुराम जी ने ही डाली थी। समाज सुधार और समाज के शोषित-पीड़ित वर्ग को कृषिकर्म से जोड़कर उन्हें स्वावलंबन का पाठ पढ़ाने में भी परशुराम जी की महती भूमिका रही है। अपने पितामह महर्षि ऋचीक के कहने पर उन्होंने केरल, कोंकण मालाबार और कच्छ क्षेत्र में समुद्र में डूबी ऐसी भूमि को बाहर निकाला जो खेती योग्य थी।
- विशेष और ध्यान देने योग्य
अगर हम भगवान परशुराम जन्म उत्सव बना रहे हैं उनके सिद्धांत पर हमें चलना होगा, क्योंकि हिंदू समाज और संस्कृति एवं संस्कारों के संवर्धन एवं संरक्षण हेतु आवश्यक है हर हिंदू शास्त्र और शस्त्र साथ लेकर अपने आने वाली पीढ़ी का निर्माण करे।
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