Sambhal News: ताज़िए की ऊंचाई कम होने से कारोबार पर पड़ा असर।
इस बार मुहर्रम का महीना 27 जून से शुरू हो गया है। मुहर्रम इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना है जिसे शोक और गम के रूप में मनाया जाता है। इस महीने में ....

उवैस दानिश, सम्भल
इस बार मुहर्रम का महीना 27 जून से शुरू हो गया है। मुहर्रम इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना है जिसे शोक और गम के रूप में मनाया जाता है। इस महीने में मुस्लिम समुदाय के लोग शादी या कोई भी शुभ आयोजन नहीं मनाते हैं, सिर्फ और सिर्फ मातम मनाते हैं। मुहर्रम के महीने का खास दिन अशुरा होता है जो कि 10वें दिन होता है। इस बार अशुरा 6 जुलाई को है। दरअसल, इस दिन लोग पैगंबर मोहम्मद के नाती इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हैं जो 680 ई. में कर्बला की जंग में अपने परिवार के साथ शहीद हुए थे। उनकी याद में निकलने वाले मुहर्रम जुलूस को बड़ी अकीदत के साथ निकला जाता है।
सम्भल एक ऐतिहासिक शहर है जहां सैकड़ों वर्षों से गगनचुंबी ताज़िए बनाए जाते थे और दूर दराज से लोग इसे देखने आते थे। उत्तर प्रदेश में भाजपा सरकार बनने के बाद बीते वर्ष सरकार द्वारा ताजियों की ऊंचाई को घटाकर 12 फीट कर दिया गया। जिस कारण ताजियों पर उत्पन्न होने वाली लाइट की समस्या से निजात मिली मगर वहीं दूर दराज से आने वालों लोगो की संख्या में भी कमी आई है।
सम्भल में ताजिया बनाने की प्रक्रिया दशकों पुरानी है। आज भी यहां के परिवार पांच दशकों से ताज़िए बना रहे हैं ये परिवार ईद उल फितर के बाद 12 कारीगरों के साथ ताज़िए बनाने में लग जाते है। एक ताजिया बनाने में 10 दिन का समय लगत है। सरकार की छोटे ताजियों की गाइडलाइन से पहले 50 ताज़िए 30 से 40 फीट के बनते थे गाइडलाइन आने के 30 ताज़िए 10 फीट तक के बनाए जा रहे है। सरकार की ओर ताजियों की लंबाई छोटी होने के इनके कारोबार पर काफी असर पड़ा है। ये ताज़िए आस पास के जिले के लोग इनसे खरीदकर ले जाते है। पहले एक ताजिया एक ताजिया 12 हजार रूपए तक का बिकता था अब ताजिया 4 हजार रूपए तक का बिकता है।
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