मध्यप्रदेश न्यूज़: जून की चिलचिलाती धूप मे पानी के लिये भटकते केरपानी कोरकू और गोंडी ढानावासी।
आज भी नही बदली जिले के कई गांवों की तस्वीर और तकदीर बाल्टी के सहारे कुएं में बच्चों को* उतारकर पानी भरने मजबूर है आदिवासी महिलाएं।
मध्यप्रदेश के बैतूल जिले के कई आदिवासी गावों की तकदीर और तस्वीर आज भी बदल नही पाई,नतीजा ये है कि वे आज भी पेयजल जैसी मूलभूत आवश्यकता के लिए तपती धूप से भिड़ने पर मजबूर है ।एक ओर तो सरकार का प्रयास है की प्रत्येक घरों तक नल से शुद्ध पानी पहुंचे। लेकिन पी एच ई विभाग की तानाशाह व्यवस्था प्रधानमंत्री की महत्वकांक्षी योजना को इस तरह ढेंगा दिखा रही है।
ताजा मामला भैसदेही विकासखंड की बड़ी ग्राम पंचायत केरपानी के कोरकूढाना एवं गोंडीढाना जो कि पहाड़ी पर बसे है दोनों ढाने की लगभग एक हजार की आबादी बूंद बूंद पानी के लिए संघर्ष कर रही है। गांव के आदिवासी बीते 2 माह से पीने के पानी की समस्या से जद्दोजहद कर रहे है।
मार्च से बंद है नलजल योजना का बोर, हैंडपंप भी सूखे।
गांव में पीने के पानी के लिए हेडपंप लगे है जो सभी बंद पड़े है। ग्रामीणों ने बताया कि नलजल योजना का बोरवेल मार्च के बाद वाटर लेवल कम हो जाता है, जिससे नल जल का पानी सिर्फ नीचे की बसाहट को ही मिल पाता है। इसकी जानकारी पी एच ई विभाग के अधिकारी अखिलेश बड़ोले को एक वर्ष पूर्व से दे दी थी फिर भी विभाग के जिम्मेदार समस्या को लेकर गंभीर नही नजर आए।
ग्राम पंचायत केरपानी के द्वारा नये बोर खनन के लिये दो दो बार प्रस्ताव भेजा गया । लेकिन उनके द्वारा इस जल समस्या का निवारण के लिए स्थाई व्यवस्था की दृष्टि से कोई उचित कार्य नहीं किया गया। सिर्फ ग्रामीणों को भ्रमित करने का कार्य किया गया।
बच्चो को कुओं में उतारकर फिर डिब्बे और लोटे से भरते है पानी
पानी के लिए ग्रामीणों को खासी मशक्कत करनी पड़ रही है। गांव से 1 – 2 किमी दूरी पैदल तय करने के बाद जिन कुओं तक महिलाए पहुंचती है उनमें भी पानी कम होने की वजह से छोटे बच्चो को बाल्टी और रस्सी के सहारे कुएं में उतारा जाता है।
फिर ये बच्चे लोटे और डिब्बे से पानी बाल्टी में भरते है जिसे महिलाएं ऊपर खींचती है।गांव में हर बार मार्च के बाद पानी के लिये 3 माह भटकना पड़ता है। इस समस्या से पी एच ई विभाग एवं ग्राम पंचायत अनभिज्ञ नही है।
अब कलेक्टर से ग्रामीणों को उम्मीद
इस गांव में कोई भी जिम्मेदार अधिकारी पहुंचकर पीने के पानी की स्थाई व्यस्था आजादी के 75 वर्ष बाद भी नही कर पाए। ग्रामीणों का भरोसा अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों से उठ चुका है। परंतु पिछले दिनों जब कलेक्टर नरेंद्र कुमार सूर्यवंशी ने पेयजल संकट से जूझ रहे ग्रामीणों के लिए तत्परता से पेयजल की स्थाई व्यवस्था करवाई एक बार फिर उनकी उम्मीद जागी है।
केरपानी के कोरकू ढाना एवं गोंडीढाना के रहवासियो ने पेयजल के लिए कोई स्थायी व्यवस्था कर पानी जैसे मुलभुत सुविधा प्रदान करने का अनुरोध किया है।
प्वाइंट चिन्हित कर नए बोर के लिए राह तकते रह गए आदिवासी
इस वर्ष भी जब पानी की समस्या हुई तो ग्रामीणों के द्वारा पी एच ई के जिम्मेदार अधिकारी से संपर्क किया। उनके द्वारा ग्रामीणों को कहा गया कि पाइंट देख लीजिये बोर करवा देंगे, लेकिन पाइंट दिखाने के बाद आज आएगी मशीन कल आयेगी मशीन लेकिन लास्ट में जब उनसे ग्रामीणों द्वारा सही जवाब मांगे जाने पर कहा गया की 600 फिट बोर कर देते है।
पी एच ई के अधिकारी को पता है कि केरपानी पहाड़ी पर बसा है, यहां वाटर लेवल या पानी की संभावना 600 के बाद ही है और उनके द्वारा शासन की योजना को पलीता लगाने के लिए फार्मलेटी निभाने की बात की गई। उनके द्वारा कहा गया कि ग्राम केरपानी के खाते में पैसा नहीं है यहां बोर नही हो सकता।
गांव में घरों के सामने लगे नल ग्रामीणों के लिए सिर्फ शोपीस साबित हो रहे है। ग्राम पंचायत भी इस समस्या से अनजान नही है फिर भी लोग इस अव्यस्था से पानी जैसी मूलभूत सुविधा से वंचित है ।
ग्रामीण सल्क्या बारस्कर , गोविन्द चड़ोकार रामकली बाई ठाकरे ठुमाय बाई कानेकर मंगला बाई चड़ोकार एवं ग्रामीण जन वे गांव से प्रतिदिन एक किलोमीटर दूर पंचायती और निजी कुओं से पानी भरा जा रहा है।
रिपोर्ट- शशांक सोनकपुरिया, बैतूल मध्यप्रदेश
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