मां-बाप ने बेटे के लिए मांगी इच्छामृत्यु, सुप्रीम कोर्ट ने याचिका ख़ारिज की

Aug 22, 2024 - 00:24
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मां-बाप ने बेटे के लिए मांगी इच्छामृत्यु, सुप्रीम कोर्ट ने याचिका ख़ारिज की

नई दिल्ली।
 क्या कोई मां-बाप अपने बेटे के लिए इच्छामृत्यु के लिए गुहार लगा सकते हैं, सोंचकर ही रोगटें खड़े हो जाते हैं जब कोई मां-बाप अपनी ही संतान के लिए मौत की गुहार लगाती है लेकिन पूरी कहानी जानकर आप विस्मित हो जायेगे कि आखिर उन्होंने ऐसा क्यों किया। दिल्ली के एक दंपत्ती ने ऐसी ही गुहार लगाई है। उन्होंने बड़े दर्द और भारी मन से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की और 30 साल के बेटे के लिए इच्छामृत्यु की गुहार लगाई। उन्होंने अपनी याचिका में बताया कि करीब 11 साल से ज्यादा हो गया, उनका बेटा वेजिटेटिव स्टेट पर है। वो मेडिकल सपोर्ट सिस्टम के जरिए किसी तरह जिंदा है। हालांकि, बेटे का इलाज महंगा है, इसमें उनकी पूरी जमापूंजी खत्म हो गई। डॉक्टरों ने भी उसके ठीक होने की कोई उम्मीद नहीं जताई है। उनका बेटा पिछले 11 साल से कोमा में अस्पताल की बेड पर है। बढ़ते खर्चे और डॉक्टरों द्वारा बेटे के ठीक होने की कम संभावना को देखते हुए माता-पिता ने सुप्रीम कोर्ट से अपने बेटे को इच्छामृत्य देने की मांग की है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट उनकी इस मांग को खारिज कर दिया है। वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से इस मामले में जवाब भी मांगा है। शीर्ष अदालत ने सरकार को निष्क्रिय इच्छामृत्यु (पैसिव यूथेंसिया) की अनुमति देने के बजाय मरीज के ट्रीटमेंट के लिए सरकारी अस्पताल में  शिफ्ट करने की संभावना को लेकर जवाब मांगा है। बुजुर्ग दंपत्ति का इकलौता बेटा हरीश राणा की मौत की मांग के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हैं।

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उनके मुताबिक, 2013 से उनका बेटा हरीष बिस्तर पर है। उसे नाक के रास्ते से दवाई और खाना प्रदान किया जाता है। इस अचेत अवस्था (वेजिटेटिव स्टेट) से हरीश के कभी वापस होश में आने की कोई संभावना नहीं है। आसान भाषा में समझें तो वह एक जिंदा लाश बनकर रह गया है। माता-पिता का कहना है कि बेटे के इलाज के लिए उन्हें अपना घर तक बेचना पड़ा। अब इलाज के लिए उनके पास कुछ नहीं बचा है। दंपत्ति ने हाईकोर्ट से मेडिकल बोर्ड का गठन कर उनके बेटे को इच्छा मृत्यु देने की संभावना पर रिपोर्ट मांगने की गुहार लगाई थी। जुलाई में हाईकोर्ट ने उनकी मांग को खारिज कर दिया था, जिसके बाद दंपत्ति ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच के सामने ये मामला पेश किया गया। पीठ में CJI के अलावा जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा भी थे। पीठ ने हाईकोर्ट के फैसले को सही ठहराया और कहा कि कोई भी डॉक्टर किसी ऐसे मरीज की मौत का कारण नहीं बनना चाहेगा, जो बिना किसी यांत्रिक सहायता के जीवित है। पीठ ने केंद्र को नोटिस जारी करते हुए जवाब मांगा है कि क्या मानवीय समाधान हो सकता है? क्या उसे कहीं और रखा जा सकता है, क्योंकि यह बेहद जटिल मामला है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह बहुत ही दुखद मामला है। माता-पिता 13 साल से संघर्ष कर रहे हैं और अब वो अपने बेटे का मेडिकल खर्च नहीं उठा सकते। कृपया पता करें कि क्या कोई संस्थान इस व्यक्ति की देखभाल कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा है कि, हम 'Passive Euthanasia' की अनुमति नहीं दे सकते क्योंकि वो जीवन रक्षक प्रणाली पर नहीं है, भले ही उसे राइल्स ट्यूब के जरिए खाना दिया जा रहा हो।

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सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने यह मामला तब उठाया जब पीड़ित के माता-पिता ने दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। दिल्ली हाईकोर्ट ने पीड़ित के माता-पिता की 'Passive Euthanasia' यानी इच्छामृत्यु की मांग को खारिज कर दिया था। माता-पिता ने सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में कहा कि उनके बेटे को 'Passive Euthanasia' की अनुमति दी जाए। माता-पिता ने सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई है कि उनके बेटे को नाक से पेट में भोजन पहुंचाने वाली 'राइल्स ट्यूब' हटाने की इजाजत दी जाए। उनका तर्क है कि इससे उनके बेटे को दर्द से मुक्ति मिल जाएगी। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने उनकी यह दलील खारिज कर दी है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कि राइल्स ट्यूब हटाना इच्छामृत्यु नहीं है। अगर राइल्स ट्यूब हटा दी जाती है तो मरीज भूख से मर जाएगा। 'Passive Euthanasia' अलग चीज है। राइल्स ट्यूब जीवन रक्षक प्रणाली नहीं है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में पूरी तरह से पल्ला नहीं झाड़ा है। कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा है कि क्या इस मरीज की देखभाल के लिए कोई संस्था है जो उसकी जिम्मेदारी उठा सके।

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