सुप्रीम कोर्ट में CJI बीआर गवई पर जूता फेंकने का प्रयास- अधिवक्ता राकेश किशोर को बार काउंसिल ने तत्काल निलंबित किया

घटना के तुरंत बाद, बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने कड़ी कार्रवाई की। बीसीआई के चेयरमैन और वरिष्ठ अधिवक्ता मनन कुमार मिश्रा ने एडवोकेट्स एक्ट 1961 और बार

Oct 6, 2025 - 23:54
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सुप्रीम कोर्ट में CJI बीआर गवई पर जूता फेंकने का प्रयास- अधिवक्ता राकेश किशोर को बार काउंसिल ने तत्काल निलंबित किया
सुप्रीम कोर्ट में CJI बीआर गवई पर जूता फेंकने का प्रयास- अधिवक्ता राकेश किशोर को बार काउंसिल ने तत्काल निलंबित किया

सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में एक अभूतपूर्व घटना घटी है। सोमवार को दिल्ली के एक वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश किशोर ने मुख्य न्यायाधीश भारत रत्न बीआर गवई पर जूता फेंकने का प्रयास किया। यह घटना कोर्ट नंबर 1 में सुबह करीब 11 बजकर 35 मिनट पर हुई, जब CJI की अगुवाई वाली बेंच वकीलों के केसों की मेंशनिंग सुन रही थी। 71 वर्षीय किशोर ने अपने स्पोर्ट्स जूते उतारे और उन्हें CJI की ओर फेंकने की कोशिश की, लेकिन सुरक्षा कर्मियों ने तुरंत हस्तक्षेप किया और उन्हें रोक लिया। जूता CJI तक नहीं पहुंचा, लेकिन यह घटना न्यायिक गरिमा पर गंभीर सवाल खड़ी कर गई।

घटना के तुरंत बाद, बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने कड़ी कार्रवाई की। बीसीआई के चेयरमैन और वरिष्ठ अधिवक्ता मनन कुमार मिश्रा ने एडवोकेट्स एक्ट 1961 और बार काउंसिल ऑफ इंडिया रूल्स के तहत एक अंतरिम आदेश जारी किया। इस आदेश में राकेश किशोर को तत्काल प्रभाव से सभी अदालतों, ट्रिब्यूनल्स और प्राधिकरणों में प्रैक्टिस करने से निलंबित कर दिया गया। आदेश में स्पष्ट कहा गया है कि किशोर का यह व्यवहार कोर्ट की गरिमा के अनुरूप नहीं है और पेशेवर आचरण के नियमों का उल्लंघन है। बीसीआई ने बार काउंसिल ऑफ दिल्ली को निर्देश दिया है कि वह किशोर का नाम अपनी रजिस्टर से अपडेट करे और सभी संबंधित अदालतों को इसकी सूचना दे। किशोर को 48 घंटों के अंदर एक हलफनामा दाखिल करने का आदेश भी दिया गया है, जिसमें वे पुष्टि करें कि वे निलंबन अवधि में किसी भी केस में पेश नहीं होंगे। यह निलंबन अंतरिम है, लेकिन बीसीआई ने अनुशासनात्मक कार्रवाई की प्रक्रिया भी शुरू कर दी है।

राकेश किशोर दिल्ली बार काउंसिल में एनरोलमेंट नंबर डी/1647/2009 के साथ पंजीकृत हैं। वे मयूर विहार, दिल्ली के निवासी हैं और सुप्रीम कोर्ट में लंबे समय से प्रैक्टिस कर रहे हैं। उनके पास सुप्रीम कोर्ट का प्रॉक्सिमिटी कार्ड भी था, जो वकीलों और क्लर्कों को दिया जाता है। घटना के समय, किशोर डायस के पास पहुंचे, अपना जूता उतारा और उसे फेंकने लगे। सुरक्षा गार्डों ने उन्हें पकड़ लिया और कोर्ट रूम से बाहर ले गए। बाहर जाते हुए किशोर चिल्ला रहे थे, 'सनातन का अपमान नहीं सहेगें।' यह नारा सोशल मीडिया पर वायरल हो गया और कई लोगों ने इसे सनातन धर्म के समर्थन में देखा।

यह घटना CJI बीआर गवई के हालिया विवादास्पद टिप्पणी से जुड़ी बताई जा रही है। 16 सितंबर 2025 को, सुप्रीम कोर्ट में एक पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन पर सुनवाई हो रही थी। यह मामला मध्य प्रदेश के खजुराहो मंदिर परिसर में स्थित जावरी मंदिर का था। यहीं पर एक सात फुट ऊंची भगवान विष्णु की मूर्ति का सिर कटा हुआ मिला था। याचिकाकर्ता ने मूर्ति के पुनर्निर्माण और पुनर्स्थापन की मांग की थी। सुनवाई के दौरान CJI गवई ने टिप्पणी की, 'यह प्योरली पब्लिसिटी इंटरेस्ट लिटिगेशन है। जाकर खुद देवता से पूछ लो कि क्या करे।' यह बयान सोशल मीडिया पर वायरल हो गया और कई हिंदू संगठनों तथा नेताओं ने इसे सनातन धर्म का अपमान बताया। कुछ ने कहा कि यह टिप्पणी अपमानजनक और असंवेदनशील थी। इस विवाद ने पूरे देश में बहस छेड़ दी।

CJI गवई ने सोमवार को ही कोर्ट में अपनी सफाई दी। उन्होंने कहा, 'मेरी टिप्पणियां गलत तरीके से पेश की गई हैं। मैं सभी धर्मों का सम्मान करता हूं। ये चीजें मुझे प्रभावित नहीं करतीं।' घटना के बाद वे शांत रहे और सुनवाई जारी रखी। उन्होंने वकीलों से कहा, 'इससे विचलित न हों। हम विचलित नहीं हो रहे।' दोपहर के लंच ब्रेक के दौरान, CJI ने सुप्रीम कोर्ट के सेक्रेटरी जनरल, सिक्योरिटी इंचार्ज और अन्य अधिकारियों के साथ बैठक की। इस बैठक में भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए सिक्योरिटी प्रोटोकॉल को मजबूत करने पर चर्चा हुई। सुप्रीम कोर्ट के सीनियर सोर्सेज के अनुसार, किशोर ने बाद में जस्टिस चंद्रन को माफी मांगी, क्योंकि जूता उनके करीब गिरा था। लेकिन उनका इरादा CJI पर ही था।

इस घटना की निंदा पूरे देश से हो रही है। सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने एक बयान जारी कर कहा कि यह व्यवहार अदालत के अधिकारी के पद की गरिमा के अनुरूप नहीं है। एससीबीए ने इसे 'कायरतापूर्ण और अपमानजनक' बताते हुए बेंच और बार के बीच आपसी सम्मान की नींव को कमजोर करने वाला कहा। उन्होंने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ संयम बरतना जरूरी है, खासकर वकीलों के लिए। कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी) और ऑल इंडिया लॉयर्स यूनियन ने भी घटना की निंदा की। सीपीआई(एम) ने कहा कि यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर हमला है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी टिप्पणी की कि यह सोशल मीडिया पर गलत सूचना का नतीजा है। कई राजनीतिक दलों और हिंदू संगठनों ने किशोर के नारे का समर्थन किया, लेकिन ज्यादातर ने हिंसक व्यवहार की आलोचना की।

बार काउंसिल ऑफ इंडिया का यह कदम वकीलों के पेशेवर आचरण को मजबूत करने वाला है। एडवोकेट्स एक्ट के सेक्शन 35 के तहत, बीसीआई को अनुशासन बनाए रखने का अधिकार है। निलंबन के दौरान किशोर किसी भी कोर्ट में पेश नहीं हो सकेंगे। उनके सभी आईडी कार्ड अमान्य हो जाएंगे। बीसीआई ने सभी बार एसोसिएशंस को सूचित करने का आदेश दिया है। यह मामला अब आगे की जांच के अधीन है, जिसमें किशोर को अपना पक्ष रखने का मौका मिलेगा। लेकिन अंतरिम निलंबन से उनकी प्रैक्टिस पूरी तरह रुक गई है।

यह घटना न्यायपालिका की सुरक्षा और गरिमा पर सवाल उठाती है। सुप्रीम कोर्ट जैसे संवेदनशील स्थान पर सिक्योरिटी चेक होते हैं, फिर भी यह घटना हो गई। विशेषज्ञों का कहना है कि सोशल मीडिया की अफवाहें वकीलों को उकसा सकती हैं, इसलिए जागरूकता जरूरी है। CJI गवई का शांतिपूर्ण व्यवहार सराहनीय रहा। उन्होंने कोर्ट को संभाला और काम जारी रखा। यह घटना पूरे कानूनी समुदाय के लिए चेतावनी है कि भावनाओं को काबू में रखना चाहिए।

राकेश किशोर का बैकग्राउंड सामान्य वकील का ही है। वे सुप्रीम कोर्ट में कई सालों से प्रैक्टिस कर रहे थे। लेकिन इस घटना ने उनकी छवि को गहरा धक्का दिया। पुलिस ने उन्हें हिरासत में ले लिया था, लेकिन बाद में छोड़ दिया गया। अब बीसीआई की कार्रवाई से उनका करियर खतरे में है। यह मामला सनातन धर्म के विवाद से जुड़ा होने से राजनीतिक रंग ले सकता है, लेकिन कानूनी रूप से यह कोर्ट की अवमानना का केस बनेगा।

कुल मिलाकर, यह घटना भारतीय न्याय व्यवस्था के लिए एक काला अध्याय है। बार काउंसिल का त्वरित निर्णय प्रशंसनीय है, जो भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने में मदद करेगा। CJI गवई की गरिमा और संयम ने सभी को प्रभावित किया। अब उम्मीद है कि जांच पूरी होने के बाद न्याय होगा।

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