अजमेर शरीफ दरगाह सर्वे: पूर्व नौकरशाहों और राजनयिकों के एक समूह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा
पत्र में पीएम मोदी से उन सभी ‘अवैध और हानिकारक’ गतिविधियों को रोकने लगाने के लिए हस्तक्षेप की मांग की गई है, जो भारत की सभ्यतागत विरासत पर ‘वैचारिक हमला’ हैं और एक समावेशी देश के विचार को विकृत करती हैं। दिल्ली के पूर्व लेफ्टिनेंट गवर्नर नजीब जंग, ...
By INA News New Delhi.
राजस्थान की अजमेर शरीफ दरगाह के सर्वे के आदेश के कुछ दिनों बाद, पूर्व नौकरशाहों और राजनयिकों के एक समूह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर उनसे सभी अवैध और हानिकारक गतिविधियों को रोकने के लिए हस्तक्षेप करने की मांग की है। राजस्थान में एक स्थानीय अदालत की ओर से अजमेर शरीफ दरगाह के सर्वे का आदेश देने के कुछ दिनों बाद पूर्व नौकरशाहों और राजनयिकों के एक समूह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है।
पत्र में पीएम मोदी से उन सभी ‘अवैध और हानिकारक’ गतिविधियों को रोकने लगाने के लिए हस्तक्षेप की मांग की गई है, जो भारत की सभ्यतागत विरासत पर ‘वैचारिक हमला’ हैं और एक समावेशी देश के विचार को विकृत करती हैं। दिल्ली के पूर्व लेफ्टिनेंट गवर्नर नजीब जंग, यूनाइटेड किंगडम में भारत के पूर्व उच्चायुक्त शिव मुखर्जी, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी, पूर्व उप-सेना प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल ज़मीरुद्दीन शाह और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के पूर्व डिप्टी गवर्नर रवि वीर गुप्ता सहित लगभग आधा दर्जन पूर्व नौकरशाहों और राजनयिकों के समूह ने 29 नवंबर को प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर हिंदू हितों का प्रतिनिधित्व करने का दावा करने वाले अज्ञात समूहों के बारे में बताया और इन स्थलों पर मंदिरों के पूर्व अस्तित्व को साबित करने के लिए मध्ययुगीन मस्जिदों और दरगाहों का पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने की मांग की।
यह भी पढ़ें: बड़ा फैसला: नायडू सरकार ने वक्फ बोर्ड को किया भंग, विपक्ष ने सरकार को घेरा
पूर्व नौकरशाहों और राजनयिकों के ग्रुप ने दावा किया कि सिर्फ प्रधानमंत्री ‘सभी अवैध, हानिकारक गतिविधियों’ को रोक सकते हैं। उन्होंने पीएम मोदी को याद दिलाया कि उन्होंने खुद 12वीं शताब्दी के संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के वार्षिक उर्स के अवसर पर शांति और सद्भाव के उनके संदेश को सम्मान देते हुए ‘चादर’ भेजी थी।
चिट्ठी में लिखा है कि प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट के स्पष्ट प्रावधानों के बावजूद, अदालतें भी ऐसी मांगों पर गैरजरूरी तत्परता और जल्दबाजी से प्रतिक्रिया करती दिखती हैं। उदाहरण के लिए, एक स्थानीय अदालत ने 12वीं शताब्दी के सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर सर्वेक्षण का आदेश दे दिया। यह दरगाह एशिया में न केवल मुसलमानों के लिए बल्कि उन सभी भारतीयों के लिए सबसे पवित्र सूफी स्थलों में से एक है, जिन्हें हमारी समन्वयकारी और बहुलवादी परंपराओं पर गर्व है। उन्होंने 29 नवंबर को प्रधानमंत्री को भेजे पत्र में कहा कि कुछ अज्ञात समूह हिंदू हितों का प्रतिनिधित्व करने का दावा कर रहे हैं और यह साबित करने के लिए मध्ययुगीन मस्जिदों तथा दरगाहों के पुरातात्विक सर्वेक्षण की मांग कर रहे हैं कि इन स्थलों पर पहले मंदिर हुआ करते थे।
यह भी पढ़ें: हरदोई: उधारी के 10 रु. न देने पर पुलिस बुलाई, मामला जानकर सब हैरान
समूह ने कहा कि पूजा स्थल अधिनियम के स्पष्ट प्रावधानों के बावजूद अदालतें भी ऐसी मांगों पर अनुचित तत्परता और जल्दबाजी के साथ प्रतिक्रिया देती नजर आती हैं। चिट्ठी में लिखा है कि यह सोचना ही हास्यास्पद है कि एक संत, एक फकीर, जो भारतीय उपमहाद्वीप में अद्वितीय सूफी आंदोलन का अभिन्न अंग थे उन्होंने अपनी सत्ता कायम रखने के लिए किसी मंदिर को नष्ट कर सकता है।
हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता द्वारा यह दावा करने के बाद कि दरगाह मूल रूप से एक शिव मंदिर था, अजमेर की एक सिविल अदालत ने 27 नवंबर को अजमेर दरगाह समिति, केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) को नोटिस जारी किया था। समूह ने कहा, ‘उदाहरण के लिए, एक स्थानीय अदालत का सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की 12वीं सदी की दरगाह के सर्वेक्षण का आदेश देना अकल्पनीय लगता है, जो एशिया में न केवल मुसलमानों के लिए, बल्कि उन सभी भारतीयों के लिए सबसे पवित्र सूफी स्थलों में से एक है, जिन्हें हमारी समन्वयवादी और बहुलवादी परंपराओं पर गर्व है।’
What's Your Reaction?