अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) द्वारा समाजवादी पार्टी का राजनीतिक दल से जातिगत गिरोह में परिवर्तन
सोचिए यदि योगी आदित्यनाथ एक बार भी इस देश के राष्ट्रीय सनातन योद्धा विदेशी मुगल आक्रांता बाबर से अपने अंतिम सांस तक लड़ते रहने वाले राणा सांगा के खिलाफ अभद्र टिप्पणी करने वाले रामजीलाल सुमन के विरोध में इन सनात...

By सौरभ सोमवंशी(वरिष्ठ पत्रकार)
2 जून 1995 को लखनऊ के गेस्ट हाउस में कुछ दिनों पहले तक मुख्यमंत्री रह चुकी मायावती की कपड़े फाड़े गए गाली गलौज किया गया और उनके साथ मारपीट की गई। क्या यदि मायावती दलित के अलावा किसी अन्य बिरादरी की रही होती तो उनकी साथ इस तरह की हरकत करने की हिम्मत मुलायम सिंह यादव के गिरोह की होती। वहीं दूसरी तरफ योगी आदित्यनाथ की सरकार में सनातन योद्धा राणा सांगा के ऊपर टिप्पणी करने वाले सांसद रामजीलाल सुमन के घर पर जब विरोध करने के लिए सनातन व हिन्दू समाज के लोग जाते हैं तो उनके ऊपर योगी आदित्यनाथ की पुलिस लाठी चलाती है।
यही अंतर है मुलायम सिंह यादव के समाजवाद और योगी आदित्यनाथ के राष्ट्रवाद में।
सोचिए यदि योगी आदित्यनाथ एक बार भी इस देश के राष्ट्रीय सनातन योद्धा विदेशी मुगल आक्रांता बाबर से अपने अंतिम सांस तक लड़ते रहने वाले राणा सांगा के खिलाफ अभद्र टिप्पणी करने वाले रामजीलाल सुमन के विरोध में इन सनातनी योद्धाओं के हाथ खुला छोड़ दे तो सनातन की रक्षा करने वाले यह लड़के रामजीलाल सुमन का क्या हाल करते लेकिन योगी आदित्यनाथ उस गुरु अवेद्यनाथ के शिष्य हैं जिसने बनारस में डोम राजा के घर बैठकर भोजन किया था, जिसने राम मंदिर शिलान्यास के दौरान बिहार के दलित नेता कामेश्वर चौपाल को शिलान्यास का मौका दिया था ताकि सामाजिक समरसता कायम हो सके।
उसके बावजूद अखिलेश यादव लगातार भारतीय जनता पार्टी के ऊपर ये आरोप लगा रहे हैं कि सरकार रामजीलाल सुमन के दलित होने के कारण उनके ऊपर हमला करवा रही हैं सोचिए अगर योगी आदित्यनाथ हमला करवाते तो रामजीलाल सुमन का क्या होता।
सनद रहे कि आजम खान से ज्यादा मजबूत नहीं है रामजीलाल सुमन, सच्चाई यही है कि भाजपा उन्हें दलित होने के कारण ही बचा रही है। वास्तविकता यह है कि कुंभ मे जिस तरह की भीड़ ने सनातन एकता का परिचय दिया उससे अखिलेश यादव अपना मानसिक संतुलन खो चुके हैं। अब वह हर कीमत पर सनातन और हिंदुत्व के इतर जातिवादी कार्ड खेलने के मूड में है।
राणा सांगा के लिए अपशब्दों का प्रयोग करवा कर अखिलेश यादव को लग रहा था कि अपनी आदत के अनुरूप योगी आदित्यनाथ इस पर कोई बयान देंगे और योगी आदित्यनाथ को दलित विरोधी घोषित किया जाएगा लेकिन योगी आदित्यनाथ ने एक मंझे हुए राजनीतिज्ञ की तरह बर्ताव किया रामजीलाल सुमन को टक्कर उत्तर प्रदेश का आम आदमी दे रहा है जो कानून के बाहर जा रहा है उसके ऊपर कारवाई भी हो रही है लेकिन योगी आदित्यनाथ ने स्पष्ट संदेश दे दिया है कि राणा सांगा एक सनातन योद्धा थे उन्हें किसी जाति के बंधन में नहीं बांधा जा सकता।इसके बावजूद इस मसले को राजपूत बनाम दलित बनने का असफल प्रयास करने वाले अखिलेश यादव को इस बात का जवाब अवश्य देना होगा कि उनके मुख्यमंत्रित्व काल में दलित नेता मायावती की मूर्ति को क्यों तोड़ी गयी। उनकी और उनके पिता के कार्यकाल में उत्तर प्रदेश में दलितों के ऊपर सबसे ज्यादा अत्याचार क्यों हुए।
वास्तविकता यह है कि अखिलेश यादव पूरी तरह से समाजवादी पार्टी का राजनीतिक दल से जातिगत गिरोह में परिवर्तन कर चुके हैं। 2024 के लोकसभा के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से नाराज राजपूत समाज ने अपनी ताकत दिखाने के लिए भाजपा से थोड़ी सी नाराजगी दिखाइ और समाजवादी पार्टी का मत प्रतिशत बढ़ा मीडिया के एक वर्ग ने क्षत्रियों को नजरअंदाज कर इसे अखिलेश यादव के पिछड़ा दलित और अल्पसंख्यक गठजोड़ का फायदा बताया उसके बाद से अखिलेश यादव फूले नहीं समा रहे हैं लेकिन वह यह नहीं समझ पा रहे हैं की जो इस देश के नायको का अपमान करेगा उसे यह देश कतई बर्दाश्त नहीं करेगा। राजनीति की एक लक्ष्मण रेखा होती है और उस सीमा रेखा को जो लांघेगा वह नेस्तनाबूद हो जाएगा। उत्तर प्रदेश मुगल आक्रांता बाबर के कंधे पर बंदूक रखकर राजपूत बनाम दलित नहीं होने देगा।
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