Deoband : अफ़ग़ानिस्तान के विदेश मंत्री ने किया दारुल उलूम देवबंद का दौरा दी गई सम्मानित “इजाज़त” और “क़ासमी” उपाधि

प्रसिद्ध आलिम-ए-दीन मौलाना क़ारी इसहाक़ गोरा ने बताया कि अफ़ग़ान विदेश मंत्री पहले से ही एक आलिम (इस्लामी विद्वान) हैं। इसी कारण दारुल उलूम देवबंद ने उन्हें

Oct 11, 2025 - 22:06
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Deoband : अफ़ग़ानिस्तान के विदेश मंत्री ने किया दारुल उलूम देवबंद का दौरा दी गई सम्मानित “इजाज़त” और “क़ासमी” उपाधि
Deoband : अफ़ग़ानिस्तान के विदेश मंत्री ने किया दारुल उलूम देवबंद का दौरा दी गई सम्मानित “इजाज़त” और “क़ासमी” उपाधि

  • अफ़ग़ान विदेश मंत्री पहले से ही एक आलिम (इस्लामी विद्वान) हैं।
  • इसी कारण दारुल उलूम देवबंद ने उन्हें एक सम्मान के रूप में हदीस की इजाज़त दी

देवबंद : विश्व-प्रसिद्ध इस्लामी शिक्षण संस्थान दारुल उलूम देवबंद में एक ऐतिहासिक और गरिमामय अवसर देखने को मिला।
अफ़ग़ानिस्तान के विदेश मंत्री ने संस्थान का दौरा किया, जहाँ उन्होंने दारुल उलूम के वरिष्ठ उलेमाओं, शिक्षकों और छात्रों से मुलाक़ात की।
इस मौक़े पर उन्हें सहीह अल-बुख़ारी का आख़िरी पाठ पढ़ाया गया, उसके बाद दस्तारबंदी की गई और उन्हें एक सम्मानित इजाज़तनामा (Authorization Certificate) प्रदान किया गया।

  • मौलाना क़ारी इसहाक़ गोरा का बयान

प्रसिद्ध आलिम-ए-दीन मौलाना क़ारी इसहाक़ गोरा ने बताया कि अफ़ग़ान विदेश मंत्री पहले से ही एक आलिम (इस्लामी विद्वान) हैं। इसी कारण दारुल उलूम देवबंद ने उन्हें एक सम्मान के रूप में हदीस की इजाज़त दी यानी यह कोई विद्यार्थी की डिग्री नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और अक़ीदी (धार्मिक) संबंध की निशानी है।

मौलाना क़ारी इसहाक़ गोरा ने कहा कि “दारुल उलूम ने उन्हें यह इजाज़त इसलिए दी ताकि उनके और देवबंद के बीच वह रूहानी रिश्ता कायम हो सके, जो इल्म और इख़लास की पहचान है। चूँकि वे पहले से एक आलिम हैं, इसलिए यह इजाज़तनामा एक प्रतीकात्मक सम्मान के तौर पर दिया गया है।”

  • इजाज़तनामा (Ijazat) क्या होता है?

गोरा बताते हैं कि “इजाज़ा” एक अरबी शब्द है, जिसका अर्थ होता है अनुमति या अधिकार प्रदान करना।
इस्लामी परंपरा में, ख़ास तौर पर हदीस शरीफ़ (हज़रत मुहम्मद सा॰ की रिवायतों) की शिक्षा में, इजाज़ा उस विद्यार्थी को दी जाती है जो पूरा कोर्स मुकम्मल करने के बाद शिक्षण और बयान करने का अधिकार प्राप्त करता है। यह सिर्फ़ एक प्रमाणपत्र नहीं बल्कि रूहानी सिलसिला (Isnad) होता है, जो एक आलिम को सिलसिलेवार तौर पर सीधे रसूलुल्लाह सा॰ तक जोड़ता है। दारुल उलूम देवबंद में यह इजाज़ा आमतौर पर सहीह बुख़ारी के आख़िरी सबक़ के वक़्त दी जाती है, और उसके बाद दस्तारबंदी होती है जो वर्षों की तालीम और रूहानी सफ़र का मुकम्मल इज़हार है।

  • क्या हर मदरसा इजाज़तनामा दे सकता है?

मौलाना इसहाक़ गोरा ने बताया कि तकनीकी रूप से, हर वो आलिम या संस्थान जिसके पास सही सिलसिला-ए-रिवायत (Chain of Transmission) हो, इजाज जीटी दे सकता है लेकिन दारुल उलूम देवबंद को इस मामले में एक ख़ास और आलमी मक़ाम हासिल है। इसकी शैक्षणिक और रूहानी ज़ंजीर सीधे हरमैन शरीफ़ैन (मक्का और मदीना) के बड़े उलेमाओं से जुड़ी हुई है। इसी वजह से देवबंद की इजाज़ात को पूरी दुनिया में एक असली और भरोसेमंद शैक्षणिक पहचान माना जाता है

  • “क़ासमी” उपाधि क्यों दी जाती है?

मौलाना इसहाक़ गोरा बताते हैं “क़ासमी” शब्द दारुल उलूम देवबंद के संस्थापक मौलाना मुहम्मद क़ासिम नानौतवी (रा॰) के नाम से लिया गया है। दारुल उलूम से फ़ारिग़ (Graduates) होने वाले सभी विद्यार्थी अपने नाम के साथ “अल-क़ासमी”लगाते हैं यह उनकी वैचारिक और रूहानी पहचान होती है इसलिए जो व्यक्ति दारुल उलूम से डिग्री या सम्मानित इजाज़ा प्राप्त करता है, वह अपने नाम के साथ “क़ासमी” लगाने का हकदार होता है। इसी सिलसिले में अफ़ग़ानिस्तान के विदेश मंत्री अब दारुल उलूम से इजाज़तनामा प्राप्त करने के बाद अपने नाम के साथ “अल-क़ासमी” जोड़ सकते हैं।

  • दारुल उलूम सीमाओं से परे इल्म और रूहानियत का प्रतीक

यह सिर्फ़ एक रस्म नहीं, बल्कि एक पैग़ाम है कि इल्म, अक़्ल और रूहानियत की कोई सीमाएँ नहीं होतीं। अफ़ग़ानिस्तान हो या अफ़्रीका, देवबंद हर उस व्यक्ति के लिए अपने दरवाज़े खुले रखता है जो इस्लाम की तालीम और इल्म की रोशनी को आगे बढ़ाना चाहता है।

दारुल उलूम देवबंद ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि वह सिर्फ़ एक मदरसा नहीं, बल्कि एक वैश्विक तहरीक (Global Movement) है जिसकी इल्मी ख़ुशबू आज भी पूरी उम्मत को रौशन कर रही है।

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