वाशिम में 9 किलो सुपारी से बनी गणपति की पर्यावरण अनुकूल मूर्ति- किसानों ने 5,000 रुपये से कम में रची कला।
Maharashtra: महाराष्ट्र के वाशिम जिले के रिसोड तालुका में इस साल गणेश चतुर्थी के अवसर पर एक अनोखी और पर्यावरण अनुकूल पहल ने सभी का ध्यान खींचा। स्थानीय जय गणेश किसान
महाराष्ट्र के वाशिम जिले के रिसोड तालुका में इस साल गणेश चतुर्थी के अवसर पर एक अनोखी और पर्यावरण अनुकूल पहल ने सभी का ध्यान खींचा। स्थानीय जय गणेश किसान मंडल ने 9 किलो सुपारी का उपयोग करके भगवान गणेश की आकर्षक मूर्ति तैयार की, जिसकी लागत 5,000 रुपये से भी कम रही। इस मूर्ति की सुंदरता और पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता ने पूरे जिले में चर्चा बटोरी। यह आयोजन न केवल भक्ति का प्रतीक बना, बल्कि स्थानीय किसानों की रचनात्मकता और एकता को भी सामने लाया।
यह अनोखी मूर्ति वाशिम जिले के रिसोड तालुका के एक छोटे से गांव में जय गणेश किसान मंडल द्वारा बनाई गई। मंडल के सदस्यों में ज्यादातर किसान और उनके परिवार शामिल हैं, जिन्होंने पर्यावरण की रक्षा और गणेशोत्सव को अनोखे अंदाज में मनाने का संकल्प लिया। मूर्ति को बनाने की प्रक्रिया करीब 15 दिन पहले शुरू हुई थी। मूर्तिकार रमेश पाटील, जो मंडल के प्रमुख सदस्य हैं, ने बताया कि इस मूर्ति को तैयार करने में 9 किलो सुपारी का उपयोग किया गया। इसके अलावा, मूर्ति को सजाने के लिए प्राकृतिक रंग, लौंग, इलायची, और कुछ मात्रा में मिट्टी का भी इस्तेमाल हुआ।
मूर्ति की खासियत यह है कि इसे पूरी तरह पर्यावरण अनुकूल सामग्री से बनाया गया है। सुपारी को विशेष मिट्टी और प्राकृतिक गोंद से जोड़ा गया, जिससे यह मूर्ति न केवल मजबूत बनी, बल्कि विसर्जन के समय पानी में आसानी से घुलने वाली भी रही। मूर्ति की ऊंचाई करीब 4 फीट है, और इसे बनाने में कुल 4,800 रुपये का खर्च आया। इसमें 2,000 रुपये सुपारी की लागत, 1,500 रुपये मजदूरी, 800 रुपये प्राकृतिक रंग, और 500 रुपये अन्य सामग्री के लिए खर्च हुए। मंडल के सदस्यों ने बताया कि उन्होंने स्थानीय बाजार से सुपारी और अन्य सामग्री जुटाई, जिससे लागत को कम रखा गया।
जय गणेश किसान मंडल के अध्यक्ष विजय ठाकरे ने बताया कि इस मूर्ति को बनाने का विचार पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देने और स्थानीय संसाधनों का उपयोग करने से आया। उन्होंने कहा, “हम किसान हैं, और सुपारी हमारे इलाके में आसानी से मिल जाती है। हमने सोचा कि क्यों न इसे गणपति की मूर्ति बनाने में उपयोग किया जाए। यह पर्यावरण के लिए भी अच्छा है और हमारी परंपराओं को भी बढ़ावा देता है।” मंडल ने पिछले साल भी 7 किलो सोयाबीन के दानों से गणेश मूर्ति बनाई थी, जिसकी लागत केवल 1,000 रुपये थी और वह भी खूब चर्चा में रही थी।
इस मूर्ति को 27 अगस्त 2025 को रिसोड के मुख्य चौक में स्थापित किया गया। स्थापना के दिन सैकड़ों लोग इस अनोखी मूर्ति के दर्शन के लिए पहुंचे। मूर्ति को रंग-बिरंगे फूलों और प्राकृतिक सामग्री से सजाया गया था। गणपति की आंखों को रुद्राक्ष से बनाया गया, जबकि उनके गहनों में लौंग और इलायची का उपयोग हुआ। मूर्ति के पास एक छोटा सा बोर्ड भी लगाया गया, जिसमें लिखा था, “पर्यावरण बचाएं, गणपति बप्पा के साथ।” इस संदेश ने लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक करने में अहम भूमिका निभाई।
स्थानीय निवासी अनिता देशमुख ने कहा, “यह मूर्ति देखकर बहुत अच्छा लगा। सुपारी से इतनी सुंदर मूर्ति बनाना आसान नहीं है। यह हमारी संस्कृति और पर्यावरण दोनों का सम्मान करता है।” एक अन्य निवासी रवि जाधव ने बताया, “मंडल के किसानों ने कम लागत में इतना शानदार काम किया। यह पूरे वाशिम के लिए गर्व की बात है।” इस आयोजन का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, जिसमें मूर्ति की स्थापना और पूजा का दृश्य दिखाई दे रहा था। एक एक्स पोस्ट में लिखा गया, “वाशिम के किसानों ने सुपारी से गणपति बनाकर पर्यावरण का संदेश दिया। यह अनोखी पहल काबिले-तारीफ है।”
वाशिम जिला अपनी कृषि और सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए जाना जाता है। गणेश चतुर्थी यहां बड़े उत्साह के साथ मनाई जाती है। जय गणेश किसान मंडल ने पिछले कुछ वर्षों में पर्यावरण अनुकूल मूर्तियों पर जोर दिया है। 2023 में मंडल ने कागज और मिट्टी से बनी गणेश मूर्ति बनाई थी, जिसकी लागत 1,100 रुपये थी। इस साल सुपारी से मूर्ति बनाने का निर्णय स्थानीय संसाधनों को बढ़ावा देने और प्लास्टर ऑफ पेरिस (पीओपी) की मूर्तियों से होने वाले प्रदूषण को कम करने के लिए लिया गया।
महाराष्ट्र में पर्यावरण अनुकूल गणेश मूर्तियों का चलन तेजी से बढ़ रहा है। उदाहरण के लिए, वाशिम के ही कमरगांव में जय भवानी गणेश मंडल ने 60 किलो प्याज से गणेश मूर्ति बनाई थी, जो पर्यावरण संरक्षण का संदेश दे रही थी। इसी तरह, रायपुर में मूर्तिकार रवि यादव ने 18 किलो सुपारी और पूजन सामग्री से गणेश मूर्ति बनाई, जो डंगनिया बाजार चौक में स्थापित की गई। इन सभी प्रयासों से साफ है कि लोग अब पारंपरिक मूर्तियों की जगह पर्यावरण के अनुकूल विकल्प चुन रहे हैं।
मूर्ति की स्थापना के बाद मंडल ने 10 दिनों तक गणेशोत्सव का आयोजन किया। इस दौरान भक्ति गीत, आरती, और सांस्कृतिक कार्यक्रम हुए। स्थानीय स्कूलों के बच्चों ने भी नृत्य और नाटक प्रस्तुत किए। मूर्ति का विसर्जन 8 सितंबर 2025 को एक स्थानीय तालाब में किया गया। विसर्जन के समय मूर्ति को पानी में डुबोया गया, और यह कुछ ही घंटों में पूरी तरह घुल गई, जिससे पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं हुआ। मंडल के सदस्यों ने बताया कि विसर्जन के बाद सुपारी को स्थानीय किसानों को खाद के रूप में उपयोग करने के लिए दे दिया गया।
इस पहल ने न केवल गणेशोत्सव को खास बनाया, बल्कि स्थानीय समुदाय में पर्यावरण जागरूकता भी फैलाई। जय गणेश किसान मंडल के सचिव संजय राठौड़ ने कहा, “हमारा लक्ष्य है कि गणपति की पूजा के साथ-साथ हम अपनी धरती को भी बचाएं। अगले साल हम और अनोखी सामग्री से मूर्ति बनाएंगे।” मंडल ने भविष्य में गन्ने के रेशे या अन्य प्राकृतिक सामग्री से मूर्ति बनाने की योजना बनाई है।
वाशिम के उपायुक्त संदीप पाटील ने इस पहल की सराहना की। उन्होंने कहा, “जय गणेश किसान मंडल ने कम लागत में इतना सुंदर कार्य किया है। यह अन्य मंडलों के लिए प्रेरणा है।” प्रशासन ने भी पर्यावरण अनुकूल मूर्तियों को बढ़ावा देने के लिए मंडल को पुरस्कार देने की घोषणा की।
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