सावन के तीसरे सोमवार भी मां ताप्ती के जल से नहीं हो सका बारहलिंगों का अभिषेक।

MP News: जुलाई का महीना समाप्त होने पर है लेकिन अब तक जिले में सावन की झमाझम बारिश नहीं हुई है। जिससे धार्मिक और पौराणिक ....

Jul 29, 2025 - 20:24
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सावन के तीसरे सोमवार भी मां ताप्ती के जल से नहीं हो सका बारहलिंगों का अभिषेक।
सावन के तीसरे सोमवार भी मां ताप्ती के जल से नहीं हो सका बारहलिंगों का अभिषेक।

रिपोर्ट- शशांक सोनकपुरिया, बैतूल मध्यप्रदेश

बैतूल। जुलाई का महीना समाप्त होने पर है लेकिन अब तक जिले में सावन की झमाझम बारिश नहीं हुई है। जिससे धार्मिक और पौराणिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण शिवधाम बारहलिंग में ताप्ती नदी की जलधारा से बारह द्वादश ज्योतिर्लिंगों का जलाभिषेक नहीं हो सका है। जिलेभर के शिवभक्तों में इस बात को लेकर मायूसी देखी जा रही है।

बारहलिंग शिवधाम ताप्ती नदी के किनारे स्थित एक अद्वितीय तीर्थ स्थल है, जहां काली चट्टानों पर भगवान विश्वकर्मा द्वारा उकेरे गए बारह द्वादश ज्योतिर्लिंग स्थापित हैं। इन शिवलिंगों की प्राण प्रतिष्ठा त्रेतायुग में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम और माता सीता द्वारा की गई थी। ऐसी मान्यता है कि श्रीराम अपने वनवास के दौरान कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर यहां तीन दिन ठहरे थे और अपने पितरों का तर्पण कर इन ज्योतिर्लिंगों का ताप्ती जल से अभिषेक किया था।

  • ज्योतिर्लिंगों का होता है स्वतः अभिषेक 

यह पवित्र स्थल बैतूल जिले के खेड़ी-परतवाड़ा अंतरराज्यीय मार्ग पर स्थित है, जो बैतूल मुख्यालय से लगभग 25 किलोमीटर दूर है। यहां हर साल श्रावण मास में ताप्ती नदी की जलधारा से इन बारह तपेश्वर ज्योतिर्लिंगों का स्वतः अभिषेक होता है, जो अपने आप में चमत्कारी माना जाता है। लेकिन इस बार जिले में अब तक पर्याप्त बारिश नहीं होने से ताप्ती नदी का जलस्तर नहीं बढ़ पाया है और तीसरे सोमवार तक भी शिवलिंग जल से अर्पित नहीं हो सके हैं।

मध्य प्रदेश शासन से पंजीकृत मां सूर्यपुत्री ताप्ती जागृति समिति के प्रदेश सचिव सतीश पंवार के अनुसार ताप्ती नदी 750 किलोमीटर का लंबा सफर तय करती है, जिसमें से 250 किलोमीटर क्षेत्र बैतूल जिले में आता है। ताप्ती नदी का धार्मिक महत्व अत्यंत विशिष्ट है। मान्यता है कि इसका जल मृत आत्माओं को मोक्ष प्रदान करता है। यहां तक कि ताप्ती में विसर्जित अस्थियां मात्र तीन दिन में घुल जाती हैं। यही कारण है कि इसे गंगा से भी विशिष्ट धार्मिक धारा माना गया है। यह सूर्य की पुत्री, शनि देव की बहन और कुरुवंश की माता भी कही जाती है।

  • आज भी उस त्रेतायुगीन उपस्थिति का सजीव प्रमाण

बारहलिंग में हर वर्ष कार्तिक पूर्णिमा पर तीन दिवसीय आदिवासी जतरा (मेला) का आयोजन होता है, जिसमें हजारों श्रद्धालु जुटते हैं। यह मेला भगवान श्रीराम की इस स्थल पर उपस्थिति की स्मृति में आयोजित किया जाता है। यहां स्थित सीता स्नानागार और बारह ज्योतिर्लिंग आज भी उस त्रेतायुगीन उपस्थिति का सजीव प्रमाण हैं।
इतिहास बताता है कि शिवधाम बारहलिंग और मां ताप्ती के इस पवित्र स्थल पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और रानी विक्टोरिया जैसे विशिष्ट जन भी दर्शन हेतु आए थे। बताया जाता है कि रानी विक्टोरिया अपनी यात्रा के दौरान रानी पठार और हाथी खुर्र भ्रमण पर थीं और तब उन्होंने ताप्ती के दर्शन के लिए बैतूल का रुख किया था। उनके नाम पर यहां आज भी रानी विक्टोरिया फॉल और रानी पठार जैसे स्थल मौजूद हैं।

  • ताप्ती का जल स्तर सामान्य से काफी नीचे 

श्रावण मास में यहां शिवभक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। बैतूल, भैंसदेही और महाराष्ट्र के अमरावती जिले से सैकड़ों श्रद्धालु शिवधाम बारहलिंग पहुंचते हैं। सावन में जब ताप्ती नदी का जल स्तर बढ़ता है, तब यह मंदिर जलमग्न हो जाता है और जलधारा से स्वतः बारह ज्योतिर्लिंगों का अभिषेक होता है। किंतु इस वर्ष अब तक हुई बारिश इतनी कम है कि ताप्ती का जल स्तर सामान्य से काफी नीचे है, जिससे श्रद्धालु इस अद्वितीय दर्शन से वंचित रह गए हैं। बारिश की प्रतीक्षा में यह ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल आज भी आकाश की ओर टकटकी लगाए बैठा है, कि कब मेघ बरसेंगे और मां ताप्ती अपने निर्मल जल से बारह तपेश्वर शिवलिंगों का अभिषेक कर फिर से इस धाम को चमत्कारी बना देंगी।

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