Bollywood: मशहूर अभिनेता असरानी का निधन, 84 साल की उम्र में ली अंतिम सांस।

हिंदी सिनेमा के एक युग का अंत हो गया। दिग्गज अभिनेता गोवर्धन असरानी, जिन्हें दुनिया प्यार से असरानी कहकर पुकारती थी, सोमवार शाम करीब 4 बजे मुंबई के एक निजी अस्पताल

Oct 21, 2025 - 11:14
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Bollywood: मशहूर अभिनेता असरानी का निधन, 84 साल की उम्र में ली अंतिम सांस।
मशहूर अभिनेता असरानी का निधन, 84 साल की उम्र में ली अंतिम सांस।

हिंदी सिनेमा के एक युग का अंत हो गया। दिग्गज अभिनेता गोवर्धन असरानी, जिन्हें दुनिया प्यार से असरानी कहकर पुकारती थी, सोमवार शाम करीब 4 बजे मुंबई के एक निजी अस्पताल में चल बसे। 84 वर्षीय असरानी लंबे समय से बीमार थे और सांस लेने में तकलीफ के कारण अस्पताल में भर्ती थे। उनके परिवार ने एक संक्षिप्त बयान जारी कर कहा, "असरानी जी का निधन आज शाम हो गया। वे एक महान कलाकार थे, जिन्होंने लाखों दिलों को हंसाया।" उनके भतीजे ने इसकी पुष्टि की। असरानी का अंतिम संस्कार उसी शाम को निजी रूप से संपन्न कर दिया गया।

असरानी का जाना न केवल बॉलीवुड के लिए एक अपूरणीय क्षति है, बल्कि पूरे भारतीय सिनेमा जगत के लिए भी। वे एक ऐसे कलाकार थे जिन्होंने अपनी अद्वितीय कॉमिक टाइमिंग और बहुमुखी अभिनय से दर्शकों को हमेशा आकर्षित रखा। 'शोले' में जेलर की भूमिका हो या 'अंगूर' में डबल रोल, असरानी की हर परफॉर्मेंस यादगार रही। पांच दशकों से अधिक समय तक सक्रिय रहने वाले इस दिग्गज ने 350 से ज्यादा फिल्मों में काम किया। आज हम उनके जीवन, संघर्ष, उपलब्धियों और विरासत पर एक विस्तृत नजर डालेंगे।

असरानी का प्रारंभिक जीवन: जयपुर से मुंबई तक का सफर

गोवर्धन रामशर्मा असरानी का जन्म 1 जनवरी 1941 को राजस्थान के जयपुर में एक मध्यमवर्गीय जैन परिवार में हुआ था। बचपन से ही वे नाटकों और थिएटर में रुचि रखते थे। जयपुर के सेंट जेवियर्स स्कूल से शिक्षा पूरी करने के बाद, वे ऑल इंडिया रेडियो में वॉइस आर्टिस्ट के रूप में काम करने लगे। लेकिन उनका सपना बड़ा था – सिनेमा का। 1961 में वे मुंबई आ गए, जहां उन्होंने फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (FTII) से अभिनय का प्रशिक्षण लिया।

मुंबई पहुंचने पर असरानी को शुरुआती दिनों में काफी संघर्ष करना पड़ा। वे छोटे-मोटे रोल्स और बैकग्राउंड कामों से गुजारा चला रहे थे। लेकिन उनकी मेहनत रंग लाई। 1967 में उनकी पहली फिल्म 'हकीकत' रिलीज हुई, जिसमें वे एक छोटी सी भूमिका में नजर आए। हालांकि, असली पहचान उन्हें 1970 के दशक में मिली। उस दौर में हिंदी सिनेमा कॉमेडी के सुनहरे युग में था, और असरानी ने अपनी अनोखी स्टाइल से जगह बनाई।

असरानी की खासियत थी उनकी चेहरे की मिमिक्री। वे बिना डायलॉग के भी हंसा देते थे। जयपुर के अपने घर में वे अक्सर परिवार के सदस्यों को हंसाने के लिए मजाकिया हरकतें किया करते थे। एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया था, "मैंने कभी कॉमेडियन बनने का सोचा नहीं था। बस, जो आता था, वही किया।" उनकी पत्नी मंजू असरानी, जो स्वयं एक अभिनेत्री हैं, ने हमेशा उनका साथ दिया। दोनों की मुलाकात FTII में हुई थी, और 1976 में उनका विवाह हुआ। उनके दो बेटियां हैं – विनीता और मीता।

सिनेमा में प्रवेश: 1970 का दशक – कॉमेडी का राजा

1970 का दशक असरानी के लिए स्वर्णिम रहा। इस दशक में उन्होंने 101 फिल्मों में काम किया, जो एक रिकॉर्ड है। सबसे यादगार भूमिका थी 1975 की ब्लॉकबस्टर 'शोले' में। रमेश सिप्पी द्वारा निर्देशित इस फिल्म में असरानी ने जेलर की भूमिका निभाई, जो अमजद खान के गब्बर सिंह के सामने एक कायर लेकिन मजाकिया कैरेक्टर था। उनका डायलॉग "ये हाथ हमें दे दे ठाकुर" और जेलर की डरपोक अदा आज भी लोगों के जेहन में बसी है। इस रोल के लिए उन्हें फिल्मफेयर बेस्ट कॉमेडियन अवॉर्ड मिला।

'शोले' की सफलता के बाद असरानी को एक के बाद एक ऑफर आने लगे। 1973 की 'अभिमान' में अमिताभ बच्चन के साथ उनका छोटा सा रोल भी चर्चित हुआ। फिर आई 'मासूम' (1983), 'कभी कभी' (1976) और 'नमक हलाल' (1982) जैसी फिल्में। लेकिन असरानी की असली मास्टरपीस थी 1982 की 'अंगूर', जो शेक्सपियर के 'द कॉमेडी ऑफ एरर्स' पर आधारित थी। इसमें असरानी ने डबल रोल किया – दो जुड़वां भाई, जो एक-दूसरे से मिलते ही हंगामा मचा देते हैं। उनकी टाइमिंग इतनी परफेक्ट थी कि फिल्म आज भी कॉमेडी का बेंचमार्क मानी जाती है। इस फिल्म के लिए उन्हें फिर से फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला। कुल मिलाकर, असरानी को तीन फिल्मफेयर अवॉर्ड्स मिले – सभी कॉमेडी कैटेगरी में।

1980 के दशक में उन्होंने दक्षिण भारतीय फिल्मों में भी काम किया, जैसे 'लवर' (1999) और 'हेरा फेरी' (2000)। लेकिन उनकी ताकत हमेशा हिंदी सिनेमा रही। 1990 के दशक में रोल्स कम हो गए, क्योंकि नई पीढ़ी के कॉमेडियंस उभर रहे थे। फिर भी, उन्होंने 73 फिल्में कीं। 1988 से 1993 तक वे पुणे के फिल्म इंस्टीट्यूट में डायरेक्टर भी रहे, जहां उन्होंने कई नई प्रतिभाओं को ट्रेनिंग दी।

बहुमुखी प्रतिभा: डायरेक्टर, राइटर और सोशल एक्टिविस्ट

असरानी केवल अभिनेता ही नहीं थे, बल्कि एक कुशल डायरेक्टर भी। उन्होंने 'छुपा रुस्तम' (2001) जैसी फिल्में डायरेक्ट कीं। उनकी लेखन क्षमता भी कमाल की थी। वे अक्सर अपने स्क्रिप्ट्स खुद लिखते थे। एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा, "कॉमेडी आसान लगती है, लेकिन टाइमिंग के बिना यह फेल हो जाती है।"

सोशल वर्क में भी सक्रिय रहे असरानी। वे एनजीओ से जुड़े थे और शिक्षा के क्षेत्र में काम करते थे। जयपुर में उन्होंने एक स्कूल भी स्थापित किया। उनकी पत्नी मंजू के साथ मिलकर उन्होंने कई चैरिटी शोज किए। लंबे समय से किडनी की समस्या से जूझ रहे असरानी ने कभी हार नहीं मानी। पिछले साल एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था, "जीवन हंसने के लिए है, बीमारी के लिए नहीं।"

निधन की खबर: उद्योग जगत में शोक की लहर

आज दोपहर जब असरानी को सांस लेने में तकलीफ हुई, तो उन्हें तुरंत अस्पताल ले जाया गया। डॉक्टरों ने बताया कि प्रोलॉन्ग्ड इलनेस और रेस्पिरेटरी प्रॉब्लम्स के कारण उनका निधन हुआ। उनके मैनेजर ने बताया, "वे अंतिम समय तक हंसते रहे। अस्पताल में भी मजाक किया।" अंतिम संस्कार में परिवार के अलावा कुछ करीबी दोस्त ही शामिल हुए।

समाचार फैलते ही बॉलीवुड के सितारों ने शोक व्यक्त किया। अमिताभ बच्चन ने ट्वीट किया, "असरानी जी, आपकी कमी हमेशा खलेगी। शोले के जेलर ने हमें सिखाया कि हास्य में भी गहराई होती है।" अनुपम खेर ने कहा, "एक युग समाप्त हो गया।" शाहरुख खान ने लिखा, "आपकी कॉमिक टाइमिंग अमर रहेगी।" दक्षिण के सितारे भी श्रद्धांजलि दे रहे हैं।

विरासत: असरानी का योगदान हिंदी सिनेमा को

असरानी की विरासत अपार है। उन्होंने कॉमेडी को एक नया आयाम दिया। 1970 के दशक में जब सिनेमा में एक्शन और रोमांस का बोलबाला था, असरानी ने हास्य को मुख्यधारा में लाया। उनकी फिल्में आज भी टीवी पर चलती हैं और नई पीढ़ी को हंसाती हैं। 'अंगूर' को रीमेक करने की चर्चा कई बार हुई, लेकिन मूल की बराबरी कोई नहीं कर सका।

वे एक प्रेरणा थे युवा कलाकारों के लिए। FTII में उनके छात्र आज बड़े डायरेक्टर्स हैं। असरानी ने कभी स्टारडम की होड़ नहीं की। वे हमेशा सपोर्टिंग रोल्स में चमके। उनकी जीवनी पढ़कर लगता है कि संघर्ष ही सफलता की कुंजी है। जयपुर के एक साधारण लड़के ने मुंबई में इतिहास रचा।

आज जब हम असरानी को याद करते हैं, तो उनके चेहरे पर मुस्कान याद आती है। वे कहते थे, "हंसना जीवन का सबसे बड़ा इलाज है।" उनका जाना दुखद है, लेकिन उनकी हंसी अमर रहेगी। हिंदी सिनेमा कभी उन्हें भूल नहीं पाएगा।

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