Hardoi News: बेरुआ स्टेट के प्राचीन राम मंदिर का आधिपत्य करेगा पुरातत्व विभाग, अधिसूचना जारी
मंदिर के गर्भ गृह के आस पास रंगीन भित्ति चित्र एवं नक्काशी आज भी सुरक्षित है। हालांकि देखरेख के अभाव में मंदिर का बाहरी हिस्सा जीर्णशीर्ण हो गया है। तत्कालीन बेरुआ स्टेट का यह ...
By INA News Hardoi.
प्रदेश सरकार के संस्कृति अनुभाग की ओर से संयुक्त सचिव उमा द्विवेदी ने 0.1640 हेक्टेयर क्षेत्र फल में निर्मित सौ वर्ष से अधिक पुराने राम मंदिर को पुरातत्व विभाग के संरक्षण में लेने के लिए अधिसूचना जारी कर आपत्तियां आमंत्रित की हैं। आजादी पूर्व अस्तित्तव में रही बेरुआ स्टेट के प्राचीन राम मंदिर को पुरातत्व विभाग अपने संरक्षण में लेगा। राज्यपाल ने इस संबंध में अधिसूचना जारी कर दी है।
मंदिर के पुरातत्व विभाग की संपत्ति घोषित होने के साथ ही इसके संरक्षण के लिए इसका पुनरोद्धार किया जाएगा। यहां परिसर में राम दरबार के साथ अन्य देवी देवताओं की मूर्तियों के साथ शिवलिंग स्थापित है। मंदिर के चारो कोनो के साथ ही गर्भ गृह के ऊपर विशाल गुंबद से मंदिर की भव्यता दिखती है।
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मंदिर के गर्भ गृह के आस पास रंगीन भित्ति चित्र एवं नक्काशी आज भी सुरक्षित है। हालांकि देखरेख के अभाव में मंदिर का बाहरी हिस्सा जीर्णशीर्ण हो गया है। तत्कालीन बेरुआ स्टेट का यह मंदिर संडीला तहसील क्षेत्र में आता है, यह विशालकाय मंदिर अपनी भव्यता के लिए अभी भी जाना जाता है।
1859 में जब गदर की आग धधक रही थी, उस दौर में देश की खातिर अंग्रेजी सेना से लोहा लेने वालों मे बेरुआ राज घराना भी शामिल रहा। तत्कालीन बेरुआ स्टेट के राजा गुलाब सिंह ने लखनऊ के आलमबाग तक अंग्रेजी सेना को कई बार खदेड़ा।
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सन् 1920 में महात्मा गांधी के संपर्क में आने के बाद बेरुआ की महारानी विद्या सिंह के कारण बेरुआ दोबारा सुर्खियों में आया। सन् 1929 में महात्मा गांधी के जिले में आगमन के बाद रानी विद्या सिंह अपनी देवरानी लक्ष्मी सिंह के साथ उनके चरखा आंदोलन से जुड़ गईं। उन्होंने अपना कार्य क्षेत्र संडीला को बनाया। विद्या सिंह के पति जंग बहादुर सिंह ने भी अपनी पत्नी और बेटी के साथ आजादी की लड़ाई में योगदान दिया।
उनके प्रभाव से बालामऊ, मल्लावां और संडीला के आसपास उस जमाने में 10 लाख चरखे चलने लगे थे। इतना ही नहीं उनका प्रभाव धीरे-धीरे पूरे जिले में फैल गया। रानी विद्या देवी की पुत्री तारा देवी ने विदेशी वस्त्र पहनना छोड़ दिया और खादी आंदोलन में जुड़ गईं। संडीला में मदारी पासी ने अपने ढंग का अनोखा आंदोलन किसान एकता पार्टी का नाम देकर चलाया। पार्टी के कामकाज की कहीं लिखा-पढ़ी नहीं रही। पार्टी के संचालक मदारी पासी और उनके साथी देवू पासी अनपढ़ थे। उनका काम जमीदारों के शोषण के विरुद्ध आम किसान के हित में आंदोलन करना था। 13 मार्च 1923 को किसानों ने इस आंदोलन को समर्थन दिया। 18 मार्च 1823 को जवाहर लाल नेहरू ने भी यहां आंदोलनकारियों को संबोधित किया।
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