भोपाल गैस त्रासदी की 41वीं बरसी पर RSS स्वयंसेवक जैसी वेशभूषा वाले पुतले पर हुआ हंगामा, 3 पर मामला हुआ दर्ज। 

भोपाल में 1984 के गैस कांड की 41वीं बरसी पर बुधवार को निकाले गए एक शांतिपूर्ण जुलूस में विवाद की स्थिति उत्पन्न

Dec 4, 2025 - 14:38
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भोपाल गैस त्रासदी की 41वीं बरसी पर RSS स्वयंसेवक जैसी वेशभूषा वाले पुतले पर हुआ हंगामा, 3 पर मामला हुआ दर्ज। 
भोपाल गैस त्रासदी की 41वीं बरसी पर RSS स्वयंसेवक जैसी वेशभूषा वाले पुतले पर हुआ हंगामा, 3 पर मामला हुआ दर्ज। 

भोपाल में 1984 के गैस कांड की 41वीं बरसी पर बुधवार को निकाले गए एक शांतिपूर्ण जुलूस में विवाद की स्थिति उत्पन्न हो गई, जब एक पुतले को लेकर स्थानीय भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं ने हंगामा मचा दिया। जुलूस गैस पीड़ित संगठनों द्वारा आयोजित किया गया था, जिसमें यूनियन कार्बाइड कारखाने के बाहर से शुरू होकर शहर के पुराने इलाके में समाप्त होने वाला था। जुलूस में दो पुतले ले जाए जा रहे थे, जिनमें से एक डाउ केमिकल कंपनी का था, जो यूनियन कार्बाइड की वर्तमान मालिक है, और दूसरा एक व्यक्ति का, जो सफेद शर्ट और खाकी हाफ पैंट पहने हुए था। भाजपा मंडल अध्यक्ष आशीष सिंह ठाकुर ने आरोप लगाया कि यह दूसरा पुतला राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक का था, और जुलूस में शामिल लोग इसे जलाने की तैयारी कर रहे थे। इस शिकायत पर पुलिस ने हस्तक्षेप किया, पुतले जब्त कर लिए, और जुलूस को रोक दिया। आयोजकों के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता की धारा 196(1) और 223 के तहत प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज की गई, जिसमें शत्रुता भड़काने और सामंजस्य बिगाड़ने का आरोप लगाया गया।

घटना के समय जुलूस भारत टॉकीज अंडरब्रिज से शुरू होकर जेपी नगर स्थित अब बंद पड़े यूनियन कार्बाइड कारखाने के पास गैस स्मारक तक पहुंचने वाला था। गैस पीड़ित संगठनों ने बताया कि पुतले जलाने की योजना स्मारक स्थल पर थी, जहां वे हर साल की तरह वॉरेन एंडरसन के पुतले को जलाते हैं। लेकिन जुलूस की शुरुआत होते ही स्थानीय भाजपा और संघ कार्यकर्ताओं ने पुतले को देखते ही विरोध जताना शुरू कर दिया। आशीष सिंह ठाकुर ने कहा कि पुतले की वेशभूषा संघ के स्वयंसेवकों की एकसमान पोशाक से मिलती-जुलती थी, और यह संगठन की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का प्रयास था। उन्होंने जुलूस को रोकने के लिए अपने सहयोगियों के साथ सड़क पर उतर आए, जिससे दोनों पक्षों के बीच धक्कामुक्की हुई। पुलिस बल ने तुरंत मौके पर पहुंचकर स्थिति संभाली, पुतले अपने कब्जे में ले लिए, और जुलूस को आगे बढ़ने से रोक दिया। सहायक पुलिस आयुक्त राकेश सिंह बघेल ने पुष्टि की कि शिकायत मिलते ही कार्रवाई की गई, क्योंकि कुछ लोगों को पुतला आपत्तिजनक लग रहा था।

गैस पीड़ित संगठनों ने स्पष्ट किया कि दूसरा पुतला डाउ केमिकल और यूनियन कार्बाइड के सहयोगी अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनियों का प्रतीक था, न कि किसी संगठन का। आयोजकों में शामिल रचना ढिंगरा ने कहा कि पुतला उन कंपनियों का प्रतिनिधित्व कर रहा था जो गैस कांड के बाद भी जिम्मेदारी से बच रही हैं। उन्होंने जोर दिया कि जुलूस का उद्देश्य न्याय की मांग करना था, न कि किसी संगठन को निशाना बनाना। संगठनों ने आरोप लगाया कि पुतले को लेकर हस्तक्षेप राजनीतिक रूप से प्रेरित था, और भाजपा सरकार डाउ केमिकल को संरक्षण दे रही है। उन्होंने कहा कि गैस पीड़ितों को न्याय दिलाने के प्रयासों को बाधित किया जा रहा है। जुलूस में सैकड़ों पीड़ित और उनके समर्थक शामिल थे, जो कैंडल मार्च के माध्यम से मृतकों को श्रद्धांजलि अर्पित करने निकले थे। विवाद के कारण जुलूस बीच में ही समाप्त हो गया, और आयोजक स्मारक तक नहीं पहुंच सके।

इस घटना से पहले भोपाल में गैस त्रासदी की बरसी पर कई कार्यक्रम आयोजित किए गए थे। मंगलवार को विभिन्न संगठनों ने नीлам पार्क के पास पुतला दहन किया था, जिसमें वॉरेन एंडरसन का पुतला जलाया गया। बुधवार को सर्वधर्म प्रार्थना सभा बरकतुल्लाह भवन में हुई, जिसमें मध्य प्रदेश के जनजातीय कल्याण मंत्री विजय शाह ने भाग लिया और दिवंगतों को श्रद्धांजलि दी। संगठनों ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में भाजपा सरकार के खिलाफ 'चार्जशीट' जारी की, जिसमें आरोप लगाया गया कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त निगरानी समिति की 2023 और 2025 की रिपोर्टों में सुझाई गई सिफारिशें लागू नहीं की गईं। उन्होंने मेडिकल केयर, मुआवजा और पुनर्वास के लिए सशक्त आयोग बनाने की मांग की। गैस राहत मंत्री ने कहा कि सरकार पीड़ितों के लिए प्रतिबद्ध है, लेकिन संगठनों ने निष्क्रियता का आरोप लगाया। भोपाल में सरकारी छुट्टी घोषित की गई थी, और सभी स्कूल-कॉलेज बंद रहे, जबकि बैरसिया जैसे ग्रामीण क्षेत्रों में सामान्य कार्य चला।

भोपाल गैस त्रासदी 2-3 दिसंबर 1984 की रात को हुई, जब यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड के कारखाने से मिथाइल आइसोसायनेट गैस का रिसाव हो गया। इस हादसे में तत्कालीन समय में 3,000 से अधिक लोगों की मौत हुई, जबकि लंबे समय में प्रभावितों की संख्या 5,00,000 से अधिक बताई जाती है। गैस ने बैरसिया और आसपास के इलाकों को अपनी चपेट में ले लिया, जहां लोग सोते-सोते मर गए या घबराहट में भागते हुए शिकार हो गए। हादसे के बाद वॉरेन एंडरसन को गिरफ्तार किया गया, लेकिन उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया गया और वे देश छोड़कर चले गए। 1989 में यूनियन कार्बाइड ने 470 मिलियन डॉलर का मुआवजा दिया, लेकिन पीड़ित संगठनों का कहना है कि यह अपर्याप्त था। डाउ केमिकल ने 2001 में यूनियन कार्बाइड का अधिग्रहण किया, लेकिन कंपनी ने जिम्मेदारी से इनकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कई बार हस्तक्षेप किया, लेकिन न्याय की प्रक्रिया धीमी बनी हुई है।

41 वर्ष बाद भी पीड़ितों को स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। गैस के प्रभाव से जन्मजात विकलांगता वाले बच्चे पैदा हो रहे हैं, और कैंसर तथा श्वसन रोग आम हैं। संगठन जैसे भोपाल ग्रुप फॉर इंफॉर्मेशन एंड एक्शन और अन्य चार समूहों ने जुलूस आयोजित किया था, जिसमें रचना ढिंगरा, सतीनाथ सारंगी, बलकृष्ण नमदेव और सरिता गुप्ता जैसे आयोजक शामिल थे। एफआईआर इन्हीं पर दर्ज की गई है। पुलिस ने कहा कि शिकायत की जांच जारी है, और यदि पुतला किसी संगठन का प्रतीक सिद्ध होता है, तो आगे कार्रवाई होगी। भाजपा कार्यकर्ताओं ने कहा कि यह घटना संगठन विरोधी तत्वों की साजिश थी, जबकि आयोजकों ने इसे न्याय आंदोलन का हिस्सा बताया। विवाद के दौरान कोई चोट नहीं लगी, लेकिन जुलूस बाधित हो गया।

विवाद के बाद पुलिस ने इलाके में भारी सुरक्षा तैनात कर दी। आयोजकों ने कहा कि वे कानूनी सहायता लेंगे और जुलूस का उद्देश्य शांतिपूर्ण था। भाजपा ने संगठनों पर सांप्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने का आरोप लगाया, जबकि पीड़ितों ने सरकार पर कंपनियों को बचाने का इल्जाम लगाया। यह घटना गैस त्रासदी के न्याय आंदोलन को राजनीतिक रंग दे रही है, जहां 41 वर्षों बाद भी मुआवजा और स्वास्थ्य सुविधाओं की मांग जारी है। संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन न करने पर सरकार की आलोचना की। जुलूस में विशेष रूप से विकलांग बच्चे शामिल थे, जो गैस के प्रभाव से जन्मे हैं। पुलिस ने पुतले जब्त करने के बाद जांच शुरू कर दी है।

गैस कांड की बरसी पर अन्य कार्यक्रमों में मोमबत्ती जुलूस निकाला गया, जिसमें सम्भावना ट्रस्ट जैसे संगठनों ने भाग लिया। उन्होंने यूनियन कार्बाइड कारखाने के पास कैंडल मार्च किया और मृतकों को श्रद्धांजलि दी। संगठनों ने इलाज की चुनौतियों पर चिंता जताई, क्योंकि कई पीड़ितों को मुफ्त चिकित्सा नहीं मिल पा रही। जनवरी 2025 में 377 टन विषैला कचरा पीथमपुर ले जाया गया था, लेकिन संगठनों का कहना है कि इससे पर्यावरणीय खतरा बना हुआ है। सुप्रीम कोर्ट ने निगरानी समिति की रिपोर्टों पर अमल न करने पर सरकार को फटकार लगाई थी। पीड़ितों ने दिल्ली में रैली निकालने की योजना बनाई है, जहां अतिरिक्त मुआवजे की मांग उठेगी। भोपाल में धुंध जैसी स्थिति का जिक्र करते हुए पीड़ितों ने कहा कि हादसे की यादें आज भी ताजा हैं, और तीन पीढ़ियां प्रभावित हैं।

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