एयरपोर्ट सिक्योरिटी चेक: बैग से लैपटॉप क्यों निकालना पड़ता है? जानिए X-Ray की सच्चाई और सुरक्षा की मजबूती के बारे में।
हवाई यात्रा का रोमांच तो हर किसी को भाता है, लेकिन एयरपोर्ट के सिक्योरिटी चेक काउंटर पर खड़े होकर बैग खोलना और लैपटॉप निकालना कई बार झुंझलाह
मुंबई। हवाई यात्रा का रोमांच तो हर किसी को भाता है, लेकिन एयरपोर्ट के सिक्योरिटी चेक काउंटर पर खड़े होकर बैग खोलना और लैपटॉप निकालना कई बार झुंझलाहट भरा लगता है। आप लाइन में धीRay-धीRay आगे बढ़ रहे होते हैं, पासपोर्ट और बोर्डिंग पास हाथ में थामे, तभी सिक्योरिटी स्टाफ की आवाज गूंजती है- लैपटॉप बाहर निकाल लीजिए। यह नजारा दुनिया के हर बड़े हवाई अड्डे पर आम है। चाहे न्यूयॉर्क का JFK हो या दिल्ली का इंदिरा गांधी इंटरनेशनल, हर जगह यही नियम। लेकिन क्यों? क्या यह सिर्फ समय बर्बाद करने का तरीका है या इसके पीछे कोई गहरा कारण है? दरअसल, यह सुरक्षा जांच का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो यात्रियों की जान बचाने के लिए डिजाइन किया गया है। आइए, इसकी वैज्ञानिक और व्यावहारिक वजहों को समझते हैं, जो शायद आपको चौंका देंगी।
सबसे पहले तो यह समझना जरूरी है कि एयरपोर्ट सिक्योरिटी चेक का मूल उद्देश्य क्या है। 11 सितंबर 2001 के हमलों के बाद से दुनिया भर में हवाई सुरक्षा के मानक कड़े हो गए हैं। अमेरिका की ट्रांसपोर्टेशन सिक्योरिटी एडमिनिस्ट्Rayशन (TSA) और भारत की सेंट्रल इंडस्ट्रियल सिक्योरिटी फोर्स (CISF) जैसी एजेंसियां हर यात्री के सामान की बारीकी से जांच करती हैं। इसका मुख्य हथियार है X-Ray मशीन, जो बैग के अंदर की वस्तुओं को स्कैन करके उनकी आकृति और घनत्व दिखाती है। लेकिन समस्या तब आती है जब बैग में लैपटॉप जैसी घनी चीजें होती हैं। लैपटॉप की बैटरी, प्रोसेसर और अन्य इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट्स इतने सघन (डेंस) होते हैं कि X-Ray की किरणें उनसे आसानी से गुजर नहीं पातीं। नतीजा? बैग के बाकी हिस्से की इमेज धुंधली हो जाती है, और कोई खतरनाक वस्तु- जैसे हथियार या विस्फोटक- छिपी रह सकती है। इसलिए, लैपटॉप को अलग बिन में रखकर स्कैन करना पड़ता है, ताकि सिक्योरिटी स्टाफ को साफ तस्वीर मिले।
यह कारण कोई नया नहीं है। X-Ray तकनीक 1895 में विल्हेल्म रॉंटजेन द्वारा खोजी गई थी, लेकिन हवाई सुरक्षा में इसका इस्तेमाल 1970 के दशक से शुरू हुआ। शुरुआत में मैनुअल चेक होते थे, लेकिन 1980 के दशक में कंप्यूटराइज्ड X-Ray मशीनें आईं। इन मशीनों में बैग को अलग-अलग रंगों में दिखाया जाता है- हरा प्लास्टिक के लिए, नारंगी ऑर्गेनिक मटेरियल के लिए और नीला मेटल के लिए। लैपटॉप का धातु-प्रधान शरीर नीले रंग का घना छाया बनाता है, जो बैग के अन्य हिस्सों को ओब्स्क्योर (अस्पष्ट) कर देता है। एक विशेषज्ञ के अनुसार, लैपटॉप बैग में होने पर 20-30 प्रतिशत स्कैन एरर हो सकता है, जो सुरक्षा के लिए घातक साबित हो सकता है। TSA के दिशानिर्देशों के मुताबिक, लैपटॉप को हमेशा अलग से स्कैन करना अनिवार्य है, ताकि कोई छिपा खतरा न रह जाए। भारत में CISF भी यही फॉलो करती है, और मुंबई, दिल्ली जैसे हवाई अड्डों पर रोजाना लाखों यात्रियों की जांच इसी तरह होती है।
अब सवाल उठता है कि क्या यह प्रक्रिया हर जगह एक जैसी है? नहीं, कुछ जगहों पर बदलाव आ रहे हैं। उदाहरण के लिए, अमेरिका के कुछ TSA चेकपॉइंट्स पर नई CT (कंप्यूटेड टोमोग्राफी) स्कैनर्स लगे हैं, जो 3D इमेज बनाते हैं और लैपटॉप निकालने की जरूरत कम कर देते हैं। ये मशीनें X-Ray की तुलना में ज्यादा सटीक हैं और बैग के अंदर की हर वस्तु को घुमाकर देख सकती हैं। लेकिन ज्यादातर हवाई अड्डों पर अभी पुरानी X-Ray मशीनें ही हैं, इसलिए नियम वही है। यूरोप और एशिया में भी यही स्थिति है। IATA (इंटरनेशनल एयर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन) के अनुसार, 2025 तक 50 प्रतिशत हवाई अड्डों पर CT स्कैनर्स आ जाएंगे, लेकिन तब तक लैपटॉप निकालना जरूरी रहेगा। यात्रियों के लिए एक टिप- हमेशा लैपटॉप को ऑन करने लायक रखें, क्योंकि कभी-कभी मैनुअल चेक में इसे चालू करने को कहा जाता है, ताकि यह सुनिश्चित हो कि यह असली डिवाइस है, न कि कोई बम जैसा गैजेट।
यह प्रक्रिया न केवल लैपटॉप तक सीमित है, बल्कि अन्य इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे टैबलेट, कैमरा और पावर बैंक पर भी लागू होती है। कारण वही- इनका घनत्व X-Ray को बाधित करता है। 2016 में लैपटॉप बैन का विवाद याद है? अमेरिका और ब्रिटेन ने कुछ देशों से आने वाले यात्रियों के लैपटॉप को केबिन बैग में ले जाने पर रोक लगा दी थी, क्योंकि इन्हें विस्फोटक के रूप में इस्तेमाल करने का खतरा था। बाद में यह नियम हटा, लेकिन स्कैनिंग सख्त हो गई। भारत में CISF ने 2023 में एक नया दिशानिर्देश जारी किया, जिसमें लैपटॉप के अलावा लिक्विड कंटेनर और मेटल आइटम्स को भी अलग रखने को कहा गया। मुंबई एयरपोर्ट पर रोजाना 1 लाख से ज्यादा यात्री गुजरते हैं, और सिक्योरिटी चेक में औसतन 10-15 मिनट लगते हैं। अगर लैपटॉप न निकाला जाए, तो स्कैनर पर बैकログ हो जाता है, जो पूRay सिस्टम को धीमा कर देता है। इसलिए, यह समय बचाने का तरीका भी है।
सिक्योरिटी स्टाफ के लिए यह काम आसान नहीं। वे हर घंटे सैकड़ों बैग स्कैन करते हैं, और थकान से गलतियां हो सकती हैं। लेकिन ट्Rayनिंग के कारण वे लैपटॉप की छाया को तुरंत पहचान लेते हैं। एक पूर्व CISF अधिकारी ने बताया कि लैपटॉप बैग में होने पर यह एक बड़ा काला धब्बा जैसा दिखता है, जो संदिग्ध लगता है। वैज्ञानिक रूप से, X-Ray किरणें इलेक्ट्रॉनों से टकराकर बिखरती हैं, और लैपटॉप के लिथियम-आयन बैटरी में इतने इलेक्ट्रॉन होते हैं कि इमेज क्लियर नहीं होती। कंपनियां अब 'लैपटॉप फ्Rayंडली' बैग्स डिजाइन कर रही हैं, जिनमें अलग कम्पार्टमेंट होता है, जो X-Ray में लैपटॉप को अलग दिखाता है। TSA ने 2019 में ऐसे बैग्स को प्रमोट किया, लेकिन अभी तक इन्हें व्यापक रूप से अपनाया नहीं गया।
यात्रियों के लिए कुछ उपयोगी टिप्स। सबसे पहले, बैग में लैपटॉप को ऊपर रखें, ताकि निकालना आसान हो। चार्जर और माउस को भी अलग रखें। अगर आप फ्रीक्वेंट फ्लायर हैं, तो TSA PreCheck या भारत का FASTrack जैसे प्रोग्राम जॉइन कRayं, जहां चेक कम सख्त होता है। हमेशा लैपटॉप को पावर ऑन रखें, क्योंकि अगर स्कैनर में संदेह हो तो चेक करने पड़ सकते हैं। लिक्विड रूल्स का भी ध्यान रखें- 100 ml से ज्यादा की बोतलें बैग में न रखें। वैश्विक स्तर पर, ICAO (इंटरनेशनल सिविल एविएशन ऑर्गनाइजेशन) के मानकों के तहत ये नियम हैं, जो हर देश फॉलो करता है। भारत में CISF के पास 1 लाख से ज्यादा स्टाफ है, जो 140 हवाई अड्डों पर तैनात हैं।
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