देवोत्थानी एकादशी- हरि त्याग दिए निज शयन कला , हो रहा मुदित जग सारा है।
चहुँ ओर हुआ है जगमग जग , जग उठा बाँसुरी वाला है। सब भक्त हुए हैं विनत माथ , अब जागृत यशुदा-लाला है।।
बाबा कल्पनेश
देवोत्थानी एकादशी
हरि त्याग दिए निज शयन कला , हो रहा मुदित जग सारा है।
हर संत सुखी अतिशय गद्गद , कर रहा जगत जयकारा है।।
तम नष्ट हुआ जगमग धरती , संतों का जगा सितारा है।
दिक्-दिक् होता हरि-कीर्तन है , हो गया विदित तम हारा है।।-1
चहुँ ओर हुआ है जगमग जग , जग उठा बाँसुरी वाला है।
सब भक्त हुए हैं विनत माथ , अब जागृत यशुदा-लाला है।।
घनघोर तमस का अंत हुआ , खुल गया अवध का ताला है।
जब प्राच्य दिशा में उषा जगी , लग गई प्रभाती शाला है।।-2
उठ पाठ पढ़ो अपने-अपने , अति सौख्य-जनित क्षण आया है।
शुभ कर्म विधान हुए जागृत , श्रुति-संतो को अति भाया है।।
श्री कृष्ण-प्रिया वृंदा का यह , सौभाग्य-दिवस कहलाया है।
इस पृथ्वी माँ के उरतल से , सुख--सिंधु गगन उमड़ाया है।।-3
यह देव-मनाते उत्सव हैं , अति धर्म सनातन को भाए।
यह गीत न भारत ही केवल , सम्पूर्ण विश्व भी है गाए।।
जग देव करें शुभ कर्म सभी , दिन शुभतादायक कहलाए।
अति सुख-दायक यह पर्व-प्रथा , उर-पंकज खिल-खिल इतराए।।-4
श्री राम रमापति कृष्ण जगे , जग गए शिवापति त्रिपुरारी।
शुभ स्नात सभी जग्-जीव जगे , अब हुए दिवस सुषमाचारी।।
हरि-प्रेम परायण भाव जगा , जग उठे सभी भगवाधारी।
अति गद्गद स्वर लेखनी कहे , श्री विष्णु जगे भव-भयहारी।।-5
धन-धान्य मिला करता जिनसे , हरि कोर-कृपा इस क्षण जागी।
रवि निम्न प्रभा को प्राप्त हुए , अब परम हितैषी उर-आगी।।
लो दिवस सुहाने जाग गए , जग-जीव सभी हैं बड़भागी।
जठराग्नि उदर-प्रज्वलित हुई , सुर- सिद्ध सभी बोले त्यागी।।-6
हरि-व्योम नील-धर जाग गए , सरिता का निर्मल है पानी।
करुणा का दाता जागृत हो , शिव बम भोले औढरदानी।।
अब सुप्त चेतना ज्वलित हुई , जागे हैं बाबा बर्फानी।
जब जाग देवता सभी गए , तब भाग गई जग-हैरानी।।-7
What's Your Reaction?