Special Article: आर्थिक सहायता या आतंकवाद का पोषण- आईएमएफ पर उठते सवाल। 

पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के खिलाफ भारत की जरूरी कार्रवाई के मध्य, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने पाकिस्तान को $2.4 बिलियन ...

May 15, 2025 - 15:09
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Special Article: आर्थिक सहायता या आतंकवाद का पोषण- आईएमएफ पर उठते सवाल। 

लेखक: विक्रांत निर्मला सिंह 
शोधार्थी, राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान राउरकेला

मुख्य बिंदु- 

  • अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने पाकिस्तान को $2.4 बिलियन डॉलर (करीब ₹20,000 करोड़ रुपये) की बेलआउट राशि दी है।
  • 1989 के बाद से 35 वर्षों में 28 वर्षों तक पाकिस्तान आईएमएफ से आर्थिक सहायता लेता रहा है, लेकिन हर बार सुधारों और शर्तों का उल्लंघन करता आया है। पिछले पाँच वर्षों में वह चार बार आईएमएफ के दरवाज़े पर पहुंचा है। 

Special Article: पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के खिलाफ भारत की जरूरी कार्रवाई के मध्य, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने पाकिस्तान को $2.4 बिलियन डॉलर (करीब ₹20,000 करोड़ रुपये) की बेलआउट राशि स्वीकृत कर दी। यह बेलआउट पैकेज तब दिया गया है जब 22 अप्रैल को भारत के पहलगाम में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवादियों ने 26 निर्दोष नागरिकों की नृशंस हत्या कर दी। यही नहीं, यह वही समय है जब भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के माध्यम से पाकिस्तान के भीतर छिपे आतंकवादी ठिकानों को ध्वस्त कर दुनिया के सामने यह स्पष्ट कर दिया कि आज भी पाकिस्तान आतंकवाद का वैश्विक केंद्र बना हुआ है। ऐसे समय में जब पाकिस्तान का आतंकवादी चेहरा पूरी दुनिया के सामने उजागर हो चुका था, आईएमएफ जैसे वैश्विक संस्थान द्वारा उसे बेलआउट सहायता देना दुर्भाग्यपूर्ण है। अब सवाल उठ रहे हैं कि क्या यह वही आईएमएफ है जिसकी स्थापना आर्थिक अनुशासन, पारदर्शिता और वैश्विक स्थिरता के लिए हुई थी? आतंकवाद के खिलाफ प्रवचन देने वाले पश्चिमी देश आज इस पर मौन क्यों हैं? आखिर एक ऐसा मुल्क जो प्रत्यक्ष रूप से आतंकवाद का पोषक है, उसे हजारों करोड़ रुपये की आर्थिक मदद क्यों दी जा रही है? भारत से उठते ये सवाल आज दुनिया में पश्चिमी देशों और वैश्विक संस्थाओं के आतंकवाद के खिलाफ दोहरे रवैये को उजागर कर रहे हैं। अब यह मुद्दा केवल भारत का नहीं, बल्कि हर उस राष्ट्र का प्रश्न बनना चाहिए जो आतंकवाद के खिलाफ खड़ा है। 

  • पाकिस्तान को बेलआउट से आईएमएफ पर उठते सवाल

आईएमएफ की स्थापना वैश्विक आर्थिक स्थिरता और विकास के लिए हुई थी। इसका मूल कार्य ‘आर्थिक संकट से जूझ रहे देशों को अस्थायी सहायता देना’ होता है, ताकि वे आर्थिक सुधारों को गति दे सकें। लेकिन हालिया निर्णय पर सवाल है कि क्या पाकिस्तान इन उद्देश्यों पर खरा उतरता है? जब आईएमएफ किसी देश को फंड देता है, तो वह उस देश से कुछ जवाबदेहियाँ और सुधारों की अपेक्षा करता है। टैक्स सुधार, संस्थागत पारदर्शिता, भ्रष्टाचार पर नियंत्रण, सार्वजनिक व्यय में अनुशासन जैसे बुनियादी तत्वों पर जोर रहता है। अगर इन मानकों पर ही पाकिस्तान को दिए गए बेलआउट का मूल्यांकन करें, तो न सिर्फ आईएमएफ की साख पर प्रश्न उठते हैं, बल्कि पश्चिमी देश भी, जो वैश्विक नैतिकता और लोकतंत्र के ठेकेदार बनते हैं पूरी तरह से उजागर हो जाते हैं। पाकिस्तान में पारदर्शिता की स्थिति इतनी दयनीय है कि चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा की परियोजनाएं पूरी तरह गोपनीय समझौतों पर आधारित हैं, जिनकी लागत, शर्तें और लाभांश की जानकारी तक संसद को नहीं दी जाती। जब अपनी ही संसद अंधेरे में है, तो आईएमएफ और पश्चिमी देशों को कितनी सटीक जानकारी मिलती होगी, यह सहज समझा जा सकता है। वहीं, भ्रष्टाचार पर निगरानी रखने वाली नेशनल अकाउंटेबिलिटी ब्यूरो खुद राजनीतिक पक्षपात, कुप्रबंधन और रिपोर्टों को दबाने जैसे आरोपों में घिरी है।

आज यह एक वैश्विक सत्य है कि पाकिस्तान का नाम आतंकवाद के पोषण में एक स्थायी अभियुक्त की तरह लिया जाता है। वर्षों से पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय सहायता प्राप्त करता है, लेकिन इन फंडों का उपयोग जनता के कल्याण के बजाय सेना के विस्तार और आतंकी नेटवर्क की फंडिंग के लिए किया है। वित्त वर्ष 2024–25 में पाकिस्तान का रक्षा खर्च उसके कुल बजट का 14.5 प्रतिशत रहा, जो इस बात का प्रमाण है कि आर्थिक संकटों के बीच भी उसकी प्राथमिकता सैन्यकरण रही है, न कि विकास। इतना ही नहीं, वित्तीय संसाधनों के दुरुपयोग और आतंकी संगठनों को वित्तीय समर्थन देने के कारण पाकिस्तान वर्षों तक ‘वित्तीय कार्रवाई कार्यबल’ की ग्रे लिस्ट में रहा। यह स्थिति तब उत्पन्न होती है जब कोई देश धन शोधन और आतंकवाद के वित्तपोषण को रोकने में विफल रहता है। क्या यह जानकारी आईएमएफ को नहीं है? यदि आईएमएफ सच में वैश्विक आर्थिक स्थिरता, मानवाधिकार और पारदर्शिता का पक्षधर होता, तो पाकिस्तान को बेलआउट नहीं देता। आईएमएफ का यह लापरवाह रवैया, जिसमें यह देखना तक ज़रूरी नहीं समझा गया कि उसके फंड का इस्तेमाल आतंकवाद के लिए हो सकता है, दक्षिण एशिया जैसे संवेदनशील क्षेत्रों के लिए बेहद खतरनाक है।  आश्चर्य की बात यह है कि आतंकवाद के खिलाफ चैंपियन बनने वाले देश जैसे अमेरिका (जिसके पास आईएमएफ में 16.5% वोटिंग पावर है), यूरोपीय संघ के देश (कुल मिलाकर लगभग 30%), ब्रिटेन (4.03%)  आदि ने भी  इस फैसले का विरोध नहीं किया।

यह वही पश्चिमी देश हैं और आईएमएफ है जिन्होंने 2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान रूस पर  प्रतिबंध लगाने के लिए तर्क दिया था कि रूस एक "आक्रांता" है और यूक्रेन "विक्टिम"। लेकिन जब बात भारत-पाकिस्तान की हो, तब यही आईएमएफ बेलआउट फंड देता है, जबकि भारत खुद पाकिस्तान के आतंकवाद का दशकों से एक विक्टिम है।

  • पाकिस्तान: एक 'आदतन कर्ज अपराधी' 

पाकिस्तान खुद को वर्षों से अंतरराष्ट्रीय मंचों पर एक आर्थिक रूप से कमज़ोर और ज़रूरतमंद देश के रूप में प्रस्तुत करता रहा है। लेकिन वास्तविकता यह है कि पाकिस्तान सिर्फ एक आर्थिक दिवालिया राष्ट्र नहीं, बल्कि एक आदतन कर्ज़ अपराधी भी है, जो बार-बार अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से मदद लेता है, पर न तो सुधार करता है और न ही अपनी जनता को लाभ पहुंचाता है। पिछले साल सितंबर 2024 में पाकिस्तान को आईएमएफ से $7 बिलियन डॉलर का नया बेलआउट पैकेज मिला। 1989 के बाद से 35 वर्षों में 28 वर्षों तक पाकिस्तान  आईएमएफ से आर्थिक सहायता लेता रहा है, लेकिन हर बार सुधारों और शर्तों का उल्लंघन करता आया है। विशेषकर पिछले पाँच वर्षों में वह चार बार आईएमएफ के दरवाज़े पर पहुंचा है।  

ज़रा सोचिए, इतनी बार फण्ड मिलने के बावजूद अगर कोई देश अब भी गरीब, अस्थिर और असफल है, तो दोष उसकी नीयत और नीतियों का है। दिसंबर 2023 तक पाकिस्तान पर कुल बाहरी कर्ज़ $131.159 बिलियन डॉलर था। यह कर्ज़ सिर्फ आईएमएफ से नहीं, बल्कि पेरिस क्लब, अंतरराष्ट्रीय बॉन्ड्स, और चीन से भी लिया गया  है।  पिछले कई दशकों से पाकिस्तान लगातार कर्ज़ चुकाने में असफल रहा है, और उसकी भुगतान क्षमता को लेकर आज भी  संदेह है।

इसलिए सवाल उठ रहे हैं कि क्या आईएमएफ द्वारा बिना ठोस जाँच और परिणाम मूल्यांकन के कोई नया बेलआउट स्वीकृत किया जाना तर्कसंगत है? यह मामला केवल पाकिस्तान की आर्थिक असफलता नहीं दर्शाता, बल्कि यह भी उजागर करता है कि आईएमएफ का निगरानी तंत्र पाकिस्तान जैसे देशों के लिए या तो अक्षम है या जानबूझकर लचीला बना दिया गया है।  सवाल तो यह भी है कि क्या आईएमएफ सिर्फ आर्थिक आंकड़ों के आधार पर फैसले करता है, या फिर संबंधित देश की वैचारिक और सुरक्षा पृष्ठभूमि की भी गंभीर जांच करता है?  आज आवश्यकता है कि आईएमएफ और अन्य अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाएँ अपनी नीतियों में स्पष्ट और कठोर बदलाव करें। यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि जब कोई देश सैन्य शासन में हो, लोकतंत्र से दूर हो और आतंकवाद में संलिप्त हो, तो उसे किसी भी प्रकार की वित्तीय सहायता प्रदान न की जाए। आर्थिक सहायता के लिए राजनीतिक स्थिरता, पारदर्शिता और आतंकवाद से असंबद्धता को अनिवार्य शर्त बनाया जाना चाहिए।

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  • भारत का वित्तीय आतंकवाद के विरुद्ध स्पष्ट और नैतिक रुख

भारत ने हमेशा वित्तीय आतंकवाद के खिलाफ एक सशक्त, नैतिक और स्पष्ट रुख अपनाया है। इसी सिद्धांत के अनुरूप भारत ने आईएमएफ द्वारा पाकिस्तान को बेलआउट देने के प्रस्ताव पर मतदान से स्वयं को अलग रखा, क्योंकि इस प्रक्रिया में सीधे “ना” कहने का विकल्प उपलब्ध नहीं है। इस निर्णायक कदम के माध्यम से भारत ने स्पष्ट संकेत दिया कि पाकिस्तान का इतिहास बहुपक्षीय वित्तीय सहायता के दुरुपयोग, सैन्य विस्तार और आतंकी नेटवर्क के पोषण से जुड़ा रहा है। भारत की यह आपत्ति केवल रणनीतिक नहीं, बल्कि एक गंभीर नैतिक चेतावनी थी, जो केवल भारत जैसा जिम्मेदार और सैद्धांतिक राष्ट्र ही वैश्विक मंचों पर उठा सकता है। यह भी उल्लेखनीय है कि भारत एकमात्र ऐसा देश था जिसने विरोध में मतदान से परहेज़ कर अपनी असहमति का गंभीर संकेत दिया।

भारत को चाहिए कि वह ब्रिक्स, संयुक्त राष्ट्र और जी20 जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इस मुद्दे को निरंतर और प्रभावी रूप से उठाता रहे, और यह सुनिश्चित करे कि भविष्य में किसी भी देश को दी जाने वाली वित्तीय सहायता केवल उसकी आर्थिक स्थिति के आधार पर न हो, बल्कि उसमें सुरक्षा, पारदर्शिता और नैतिक मूल्यांकन को अनिवार्य रूप से शामिल किया जाए। वैश्विक आतंकवाद के विरुद्ध जब अधिकांश राष्ट्र मौन या मौकापरस्त नीति अपना रहे हैं, तब भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जो इस गंभीर विषय पर स्पष्ट और सैद्धांतिक मत रखता है, जो सही मायनों में मानवता, विश्वशांति और वैश्विक स्थिरता के पक्ष में है।

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