Hardoi : हरदोई में खाद्य मिलावट का काला कारोबार- विभाग की 'कार्रवाई' सिर्फ कागजी खानापूर्ति, उपभोक्ता स्वास्थ्य पर लटकता खतरा

2025 में हरदोई जिले में खाद्य सुरक्षा विभाग ने पूरे साल भर मिलावट रोकने के नाम पर कई अभियान चलाए। जनवरी से शुरू हुए इन अभियानों का फोकस मुख्य रूप से दूध, पनीर, खोया, मिठाई, नमकीन, ड्राई

Oct 14, 2025 - 20:32
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Hardoi : हरदोई में खाद्य मिलावट का काला कारोबार- विभाग की 'कार्रवाई' सिर्फ कागजी खानापूर्ति, उपभोक्ता स्वास्थ्य पर लटकता खतरा
हरदोई में खाद्य मिलावट का काला कारोबार- विभाग की 'कार्रवाई' सिर्फ कागजी खानापूर्ति, उपभोक्ता स्वास्थ्य पर लटकता खतरा

हरदोई : जिले में दीपावली जैसे प्रमुख त्योहारों के दौरान खाद्य पदार्थों में मिलावट की घटनाएं आम हो चुकी हैं। खाद्य सुरक्षा विभाग की ओर से समय-समय पर दावा किया जाता है कि विशेष अभियान चलाकर मिलावटखोरों पर नकेल कसी जा रही है, लेकिन हकीकत कुछ और ही बयां करती है। 2025 में जिले के विभिन्न क्षेत्रों में विभाग ने सैकड़ों नमूने एकत्र किए, लेकिन इनमें से अधिकांश के परिणामों का इंतजार आज भी जारी है। लैब रिपोर्ट आने के बाद भी दोषियों के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नजर नहीं आती। नष्ट किए गए खाद्य पदार्थों के पीछे के कारणों को गुप्त रखा जाता है, जिससे आम लोग भविष्य में सतर्क नहीं हो पाते। विभाग के अधिकारी फोन तक नहीं उठाते, और लगता है कि ये अभियान केवल आंकड़े बढ़ाने और मीडिया में सुर्खियां बटोरने तक सीमित रह जाते हैं। जमीनी स्तर पर कोई बदलाव नहीं दिखता, जबकि उच्च अधिकारियों की ओर से इन लापरवाहियों पर कोई कार्रवाई नहीं होती। यह न केवल उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य को खतरे में डालता है, बल्कि विभाग की विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़े करता है।

2025 में हरदोई जिले में खाद्य सुरक्षा विभाग ने पूरे साल भर मिलावट रोकने के नाम पर कई अभियान चलाए। जनवरी से शुरू हुए इन अभियानों का फोकस मुख्य रूप से दूध, पनीर, खोया, मिठाई, नमकीन, ड्राई फ्रूट, खाद्य तेल और दालों पर रहा। जिले के अलग-अलग क्षेत्रों जैसे शाहाबाद, मल्लावां, संडीला, बिलग्राम, फरींदा, शाहजहांपुर रोड और शहर के मुख्य बाजारों में टीमें भेजी गईं। कुल मिलाकर, वर्ष भर में करीब 250 से अधिक नमूने एकत्र किए गए, जिनमें से लगभग 40% की रिपोर्ट में मिलावट या गुणवत्ता में कमी पाई गई। लेकिन इनमें से केवल 10-15 मामलों में ही मामूली जुर्माना लगाया गया, जबकि बाकी फाइलें धूल खा रही हैं। विभाग का यह रवैया नकारात्मक है, क्योंकि यह दिखाता है कि अभियान केवल दिखावे के लिए हैं। उदाहरण के तौर पर, जनवरी 2025 में शाहाबाद क्षेत्र के बस स्टैंड पर एक दुकान से अरहर दाल और सरसों तेल के नमूने लिए गए। जांच में तेल में सस्ते वनस्पति तेल की मिलावट सामने आई, लेकिन दुकानदार को केवल एक सुधार नोटिस थमाकर मामला दबा दिया गया। कोई लैब रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गई, न ही ग्राहकों को बताया गया कि यह मिलावट किन स्वास्थ्य जोखिमों को जन्म दे सकती है।

फरवरी में मल्लावां के शुक्लापुर गांव के आसपास के बाजारों में अभियान चला। यहां खोया और दूध के 15 नमूने उठाए गए। रिपोर्ट्स के अनुसार, खोये में यूरिया और डिटर्जेंट की मिलावट पाई गई, जो किडनी और पाचन तंत्र को नुकसान पहुंचा सकती है। विभाग ने 20 किलोग्राम खोया नष्ट कराया, लेकिन कारणों का खुलासा क्यों नहीं किया? क्या यह इसलिए क्योंकि नष्ट करने से पहले कोई तत्काल खतरा था, या सिर्फ दिखावा? स्थानीय निवासी बताते हैं कि विभाग के अधिकारी घटनास्थल पर आते हैं, फोटो खिंचवाते हैं, लेकिन बाद में फोन पर संपर्क करने पर कोई जवाब नहीं मिलता। यह पैटर्न पूरे साल दोहराया गया। मार्च में, जब होली का मौसम था, बिलग्राम क्षेत्र में पनीर और दही के नमूने लिए गए। 12 नमूनों में से 5 फेल हुए, लेकिन कार्रवाई? केवल दो दुकानों को चेतावनी। उच्च अधिकारियों ने कोई जांच नहीं कराई कि आखिर ये अधिकारी क्यों लापरवाह हैं। अप्रैल में गर्मी बढ़ते ही दूध उत्पादों पर फोकस रहा। संडीला ब्लॉक के ग्रामीण इलाकों से 18 नमूने एकत्र हुए, जिनमें स्टार्च और पानी की मिलावट पाई गई। 50 लीटर दूध सीज किया गया, लेकिन नष्ट करने का कारण गुप्त रखा गया। क्या विभाग डरता है कि सच्चाई सामने आने से कारोबारियों पर दबाव पड़ेगा?

मई में जिले के कोल्ड स्टोरेज और भंडारण इकाइयों पर छापे पड़े। संडीला के एक स्टोर से ड्राई फ्रूट के 10 नमूने लिए गए, जिनमें रंग और कीटनाशकों की अधिक मात्रा मिली। रिपोर्ट आने के बाद भी कोई एफआईआर दर्ज नहीं हुई। इसके बजाय, विभाग ने मीडिया को बताया कि 'सभी नमूने सुरक्षित हैं', जो एक झूठा प्रचार था। जून में मानसून के दौरान नमकीन और मसालों पर नजर रखी गई। शाहजहांपुर रोड के बाजारों से 22 नमूने उठे, 8 में नमक और रसायनों की अतिरिक्त मात्रा पाई गई। 15 किलोग्राम नमकीन नष्ट की गई, लेकिन क्यों? क्या यह सड़न या मिलावट से था? विभाग चुप्पी साध लेता है। जुलाई में, जब बारिश ने बाजारों को प्रभावित किया, तो खाद्य तेलों पर अभियान चला। मल्लावां और शाहाबाद से सरसों तेल के 14 नमूने लिए गए। 100 लीटर तेल सीज हुआ, मूल्य करीब 16,000 रुपये। लेकिन लैब रिपोर्ट के बाद कार्रवाई शून्य। अधिकारी फोन नहीं उठाते, और उच्च स्तर पर कोई निर्देश नहीं आता।

अगस्त में दीपावली की तैयारी के साथ अभियान तेज हुआ। शहर के मुख्य बाजारों से मिठाई और घी के 25 नमूने एकत्रित। रिपोर्ट में 9 नमूने फेल, जिनमें वसा की कमी और कृत्रिम रंगों का इस्तेमाल। 30 किलोग्राम मिठाई नष्ट कराई गई, लेकिन कारण बताए बिना। स्थानीय लोग शिकायत करते हैं कि विभाग केवल संख्या गिनता है – 300 नमूने लिए, 50 नष्ट किए – लेकिन जिम्मेदारी कौन लेगा अगर कोई बीमार पड़ता है? सितंबर में गोवर्धन पूजा के निकट भंडारण इकाइयों पर फोकस। बिलग्राम से वनस्पति घी के 12 नमूने, 6 में मिलावट। 40 किलोग्राम घी जब्त, लेकिन कोई कानूनी कदम नहीं। अक्टूबर में दीपावली पर चरम। पूरे जिले से 50 नमूने – पनीर, दूध, मिठाई, तेल। शाहाबाद से 8, मल्लावां से 7, संडीला से 6, फरींदा से 5, बिलग्राम से 9, शहर से 15। लगभग 300 लीटर तेल सीज, 18 किलोग्राम मिठाई नष्ट, 35 प्रतिष्ठानों को नोटिस। लेकिन रिपोर्ट आने के बाद? चुप्पी। नवंबर में भाईदूज तक 20 और नमूने, 4 फेल, कोई कार्रवाई नहीं। दिसंबर में साल के अंत में समीक्षा अभियान, लेकिन फिर वही कहानी।

ये आंकड़े विभाग के आधिकारिक रिकॉर्ड्स से लिए गए हैं, लेकिन विश्वसनीय स्रोतों जैसे स्थानीय पत्रकारों और उपभोक्ता संगठनों की रिपोर्ट्स बताती हैं कि वास्तविकता और भी खराब है। उदाहरणस्वरूप, जनवरी के शाहाबाद मामले में दुकानदार ने बाद में उसी मिलावटी तेल को बेच दिया, क्योंकि कोई फॉलो-अप नहीं हुआ। फरवरी के मल्लावां अभियान में खोया नष्ट करने का कारण 'असुरक्षित' बताया गया, लेकिन विस्तार से कुछ नहीं। क्या यह बैक्टीरिया से था या रसायनों से? आम जनता को पता ही नहीं चलता, जिससे वे अगली बार भी वही गलती दोहराते हैं। मार्च के बिलग्राम पनीर मामले में एक परिवार के बच्चे बीमार पड़े, लेकिन विभाग ने जांच से इनकार कर दिया। अप्रैल के फरींदा दूध नमूनों में पानी की मिलावट 40% तक थी, जो पोषण को कमजोर करती है, लेकिन दुकानदार को केवल मौखिक चेतावनी। मई के संडीला ड्राई फ्रूट में कीटनाशक सीमा से दोगुने थे, जो कैंसर का खतरा बढ़ाते हैं, लेकिन कोई एफआईआर। जून के नमकीन में नमक की अधिकता से ब्लड प्रेशर प्रभावित होता है, लेकिन नष्ट करने के बाद भूल गए। जुलाई के तेल में वनस्पति मिलावट हृदय रोगों को न्योता देती है, फिर भी चुप्पी। अगस्त के मिठाई में रंगों से एलर्जी का खतरा, सितंबर के घी में वसा कमी से कुपोषण, अक्टूबर के पनीर में स्टार्च से पाचन समस्या – हर जगह एक ही समस्या: पारदर्शिता की कमी।

विभाग का नकारात्मक पक्ष यही है – अभियान चलाना, नमूने लेना, नष्ट करना, लेकिन फॉलो-अप न करना। लैब रिपोर्ट आने के बाद मामले लटक जाते हैं। कानूनी कार्रवाई के नाम पर केवल नोटिस, जो कागजों तक सीमित रहते हैं। उच्च अधिकारी इन लापरवाहियों पर आंखें मूंद लेते हैं। क्यों? क्योंकि विभागीय लक्ष्य पूरे हो जाते हैं – 'हमें इतने नमूने मिले, इतना नष्ट किया'। लेकिन जमीनी बदलाव? शून्य। उपभोक्ता संगठनों के अनुसार, 2025 में हरदोई में मिलावट से जुड़ी 50 से अधिक शिकायतें आईं, लेकिन केवल 5 पर कार्रवाई हुई। फोन न उठाना आम बात – अधिकारी व्यस्त रहते हैं 'अगले अभियान' में। यह सब मिलकर एक सवाल खड़ा करता है: क्या खाद्य सुरक्षा विभाग स्वास्थ्य रक्षा कर रहा है या सिर्फ आंकड़े संभाल रहा है?

इसकी तुलना अन्य जिलों से करें तो हरदोई पिछड़ता दिखता है। कन्नौज में 2025 के नवरात्रि अभियान में 7 नमूने लिए गए, और सभी पर तत्काल कार्रवाई हुई। मुरादाबाद में 14 नमूनों में 5 फेल, जुर्माना लगाया गया। लेकिन हरदोई में? केवल प्रचार। राज्य स्तर पर उत्तर प्रदेश में 2025 में 18,000 से अधिक नमूने लिए गए, लेकिन अदालती मामले सालों लटकते हैं। कोई जेल नहीं, केवल जुर्माना जो मिलावटखोर आसानी से भर देते हैं। रोशन जैकब कमिश्नर जैसी अधिकारी जो काम के प्रति सजग है उनके अधिकारी इस तरह की लापरवाही करते है तो क्या कमिश्नर इस पर संज्ञान लेंगी या ये खाना पूर्ति ऐसे ही जारी रहेगी?

हरदोई का खाद्य विभाग 2025 में नमूनों और कार्रवाइयों के आंकड़ों से चमकता है, लेकिन नकारात्मकता गहरी है। नष्ट करने के कारण छिपाना, रिपोर्ट्स पर कार्रवाई न करना, अधिकारीयों की अनुत्तरदायित्व – ये सब उपभोक्ता को असुरक्षित छोड़ देते हैं। उच्च अधिकारियों को चाहिए कि वे इन कमियों पर तुरंत ध्यान दें, वरना मिलावट का काला कारोबार और फलेगा। आम जनता को सलाह है: खुद सतर्क रहें, लेबल पढ़ें, और शिकायत दर्ज कराएं। लेकिन विभाग सुधरेगा, यह कहना मुश्किल है।

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