जिसके मन में सीखने की जिज्ञासा है वह युवा और यह जिज्ञासा खत्म यानी बूढ़ा है- जय पाल सिंह व्यस्त
Shahjahanpur: दुनिया नाम के लिए मर रही है। संत विनोबा ने अपने नाम का आधार छोड़कर रामहरि का आधार लिया। यह विचार रामहरि की इक्यावनवीं वर्षगांठ अहिंसा सभागार में आयोजित कार्यक्रम

रिपोर्ट- अम्बरीष कुमार सक्सेना
शाहजहांपुर: दुनिया नाम के लिए मर रही है। संत विनोबा ने अपने नाम का आधार छोड़कर रामहरि का आधार लिया। यह विचार रामहरि की इक्यावनवीं वर्षगांठ अहिंसा सभागार में आयोजित कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ जयपाल सिंह व्यस्त सदस्य शिक्षक विधान परिषद ने संबोधित करते हुए कहा कि विनोबा जी एक अलौकिक व्यक्तित्व के धनी व्यक्ति थे उनसे एक बार किसी ने पूंछा कि संस्कृति किसे कहते हैं तो बाबा ने कहा कि जो भूख भर खाए वह प्रकृति जो दूसरे का हिस्सा खाए वह विकृति और जो अपने हिस्से से भी भूखे को खिलाए यह संस्कृति है।
बाबा ने उन्हीं गरीबों के लिए जमीन मांगी और उन्हें 45 लाख एकड़ मिली। उन्होंने यह भी कहा कि मौन कोई छोटी तपस्या नहीं है। इसके लिए संयम साधना पड़ता है। आज आठ माह रमेश भइया के एक वर्ष के मौन का पूरा हुआ हैं आज शुभ दिन है। युवा और बूढ़ा का अंतर बाबा ने बताया था कि जिसके मन में सीखने की जिज्ञासा है वह युवा और यह जिज्ञासा खत्म यानी बूढ़ा है। डा. व्यस्त ने कहा कि गांधी का सर्वोदय विनोबा का ग्रामोदय दीन दयाल उपाध्याय जी का अंत्योदय और प्रधानमंत्री का राष्ट्रोदय का उल्लेख भी किया।
आश्रम की संरक्षक विमला बहन ने कहा कि व्यस्त जी के क्षेत्र में 52 विशनसभाएं आती हैं। सबकी चिंता रखते हैं।आश्रम को भी उनका आशीर्वाद निरंतर मिलता है। सभी का आभार लाइब्रेरी प्रभारी सीना शर्मा स्वागत श्री अखिलेश उपाध्याय और संचालन मोहित कुमार ने किया। डा व्यस्त ने परिसर में गांधी जी और विनोबा जी को माला भी अर्पित की। डा व्यस्त को शाल, सूत की माला से स्वागत मुदित कुमार ने किया तथा विनोबा विचार प्रवाह की ओर से गीता स्वाध्याय पुस्तक रमेश भइया ने भेंट की। कार्यक्रम में अखिलेश उपाध्याय के पी सिंह ओमप्रकाश रीना बहन भीखम लाल रामचंद्र आदि रहे।
What's Your Reaction?






