मऊभूड में रक्षाबंधन पर दंगल और मेले में गूंजी हिंदू-मुस्लिम एकता।
Sambhal: जनपद सम्भल के पवांसा ब्लॉक क्षेत्र के गांव मऊभूड में रक्षाबंधन पर्व पर हिंदू-मुस्लिम एकता का अद्भुत उदाहरण पेश करते हुए दो दिवसीय दंगल....
उवैस दानिश, सम्भल
जनपद सम्भल के पवांसा ब्लॉक क्षेत्र के गांव मऊभूड में रक्षाबंधन पर्व पर हिंदू-मुस्लिम एकता का अद्भुत उदाहरण पेश करते हुए दो दिवसीय दंगल और मेले का आयोजन किया गया। ग्राम प्रधान अकरम के नेतृत्व में हुए इस आयोजन में दूर-दराज से आए पहलवानों ने अखाड़े में दमखम दिखाया और ग्रामीणों ने रोमांचक मुकाबलों का भरपूर आनंद लिया।
कार्यक्रम के अंतिम दिन सोमवार को अखाड़े में कई दिलचस्प कुश्ती मुकाबले हुए। सबसे बड़ा मुकाबला पंजाब के मशहूर पहलवान टिल्लू और बिजनौर के चकित के बीच हुआ, जिसमें शानदार प्रदर्शन करते हुए चकित ने टिल्लू को पराजित कर अखाड़े के चैंपियन का खिताब अपने नाम किया। दूसरे नंबर का मुकाबला चंदौसी के इरशाद और पंजाब के अवतार के बीच हुआ, जिसमें इरशाद ने बाजी मार ली। वहीं तीसरे नंबर की कुश्ती बिजनौर के प्रिंस और सरायतरीन के अल्फाज के बीच हुई, जो कड़ी टक्कर के बाद बराबरी पर छूट गई।
दंगल का शुभारंभ मुख्य अतिथि सपा नेता अशोक यादव ने फीता काटकर किया। विजेता पहलवानों को उन्होंने पुरस्कार देकर सम्मानित किया। इस दौरान उन्होंने कहा कि ऐसे आयोजनों से न सिर्फ खेल को बढ़ावा मिलता है, बल्कि आपसी भाईचारा और एकता भी मजबूत होती है।
दंगल के समापन के बाद मेले में ग्रामीणों की भारी भीड़ उमड़ पड़ी। महिलाओं ने मीना बाजार में घरेलू सामान की जमकर खरीदारी की, वहीं बच्चे और महिलाएं बड़े-बड़े झूलों का आनंद लेते नजर आएं। मेले में मिठाई और खाने-पीने के स्टालों पर भी भीड़ लगी रही।
गांव मऊभूड का यह आयोजन क्षेत्र में चर्चाओं का केंद्र बना रहा। रक्षाबंधन जैसे पावन पर्व पर हिंदू और मुस्लिम समुदाय का इस तरह एक साथ आना और उत्साहपूर्वक भाग लेना सामाजिक सद्भाव का अद्भुत उदाहरण है।
इस अवसर पर ग्राम प्रधान अकरम के साथ मुबारक अली, फरियाद, हिरासत, राम भरोसे, लियाकत, इक्लास, बाबू खान, चंद्रपाल सिंह यादव, आदित्य यादव, कदीर, शाहरुख सहित बड़ी संख्या में ग्रामीण मौजूद रहे। आयोजन की सफलता में ग्रामवासियों का विशेष योगदान रहा।
ऐसे आयोजन यह संदेश देते हैं कि खेल और त्योहार की खुशियां किसी एक धर्म तक सीमित नहीं, बल्कि यह सबको जोड़ने का माध्यम हैं। मऊभूड के दंगल और मेले ने इस परंपरा को और मजबूत कर दिया।
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