इलाहाबाद हाईकोर्ट के 'स्तनों को पकड़ना और नाडा तोड़ना, बलात्कार का प्रयास नहीं' फैसले पर SC ने जताई नाराजगी, रोक लगाई
सुप्रीम कोर्ट (SC) ने बुधवार को इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक आदेश की उन टिप्पणियों पर रोक लगा दी, जिसमें कहा गया था कि अभियोजन के आरोप के मुताबिक ब्रेस्ट दबाना और पायजामे की डोरी खींचना बलात्कार या बलात्कार के प्रया...
By INA News New Delhi.
सुप्रीम कोर्ट (SC) ने बुधवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस विवादास्पद आदेश पर रोक लगा दी जिसमें कहा गया कि नाबालिग लड़की के स्तनों को पकड़ना, उसके पायजामे की डोरी तोड़ना और उसे पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश करना बलात्कार के प्रयास के अपराध के अंतर्गत नहीं आएगा। हाईकोर्ट ने कहा कि ये कृत्य प्रथम दृष्टया POCSO Act के तहत 'गंभीर यौन उत्पीड़न' का अपराध बनते हैं, जिसमें कम सजा का प्रावधान है। अब इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट (SC) ने सुनवाई की और कहा, हमें ये देखकर दुख हो रहा है कि फैसला लिखने वालों में संवेदनशीलता नहीं है। जस्टिस बीआर गवई और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने बुधवार को सुनवाई की।
सुप्रीम कोर्ट (SC) ने हाई कोर्ट के उक्त आदेश पर स्वत: संज्ञान (suo motu) लेते हुए केंद्र सरकार, उत्तर प्रदेश सरकार और अन्य पक्षों को नोटिस जारी कर उनसे जवाब दाखिल करने को कहा है। हाईकोर्ट ने 17 मार्च को दिए अपने फैसले में कहा था कि जो केस का तथ्य है उसके तहत अभियोजन पक्ष का आरोप है कि उसके मुताबिक लड़की का प्राइवेट पार्ट पकड़ा गया और लड़की के पायजामे के नाड़े को तोड़ा गया और उसे घसीटने की कोशिश की गई और इसी दौरान गवाह वहां पहुंच गए जिसके बाद आरोपी भाग गए।
सुप्रीम कोर्ट (SC) ने बुधवार को इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक आदेश की उन टिप्पणियों पर रोक लगा दी, जिसमें कहा गया था कि अभियोजन के आरोप के मुताबिक ब्रेस्ट दबाना और पायजामे की डोरी खींचना बलात्कार या बलात्कार के प्रयास के अपराध की श्रेणी में नहीं आता। सुप्रीम कोर्ट (SC) के जस्टिस बीआर गवई की अगुवाई वाली बेंच ने हाई कोर्ट के उक्त फैसले के मामले में संज्ञान लेते हुए बुधवार को सुनवाई की। सुप्रीम कोर्ट (SC) ने कहा कि हाई कोर्ट के आदेश में की गई कुछ टिप्पणियां असंवेदनशील और अमानवीय दृष्टिकोण को दर्शाती हैं। सुप्रीम कोर्ट (SC) ने इस फैसले पर तत्काल रोक लगा दी। खंडपीठ ने कहा कि निर्णय क्षणिक आवेश में नहीं लिखा गया, बल्कि लगभग चार महीने तक सुरक्षित रखने के बाद सुनाया गया।
इसका मतलब यह है कि जज ने उचित विचार-विमर्श और दिमाग लगाने के बाद फैसला सुनाया। खंडपीठ ने कहा कि चूंकि टिप्पणियां "कानून के सिद्धांतों से पूरी तरह अनभिज्ञ हैं और पूरी तरह असंवेदनशील और अमानवीय दृष्टिकोण को दर्शाती हैं", इसलिए टिप्पणियों पर रोक लगाना मजबूरी है। खंडपीठ ने भारत संघ, उत्तर प्रदेश राज्य और हाईकोर्ट के समक्ष पक्षकारों को नोटिस जारी किया। बीते दिन मंगलवार को SC ने हाईकोर्ट के फैसले पर खुद से नोटिस लिया था। साथ ही सुप्रीम कोर्ट (SC) ने इस मामले में केंद्र सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार से प्रतिक्रिया मांगी है।
कोर्ट ने उन्हें इसके लिए नोटिस जारी किया है। सुप्रीम कोर्ट (SC) ने हाई कोर्ट के उक्त आदेश पर आपत्ति जताई और कहा कि इस तरह की टिप्पणियां कानून के मूल सिद्धांतों से परे हैं और पूरी तरह से असंवेदनशील और अमानवीय दृष्टिकोण को दर्शाती हैं। सुप्रीम कोर्ट (SC) ने हाई कोर्ट के इस आदेश पर स्वत: संज्ञान (suo motu) लेते हुए कड़ी असहमति जताई और इसे चौंकाने वाला करार दिया। शीर्ष अदालत ने कहा कि हमें यह कहने में दुख हो रहा है कि इस फैसले में, विशेष रूप से पैराग्राफ 21, 24 और 26 में, निर्णयकर्ता की पूर्ण असंवेदनशीलता झलकती है।
निर्णय की निंदा करते हुए देश की बड़ी अदालत ने कहा कि यह चौंकाने वाला है। यह संज्ञान एनजीओ 'वी द वूमेन ऑफ इंडिया' की ओर से सीनियर एडवोकेट शोभा गुप्ता द्वारा भेजे गए पत्र के आधार पर लिया गया। अभियोजन पक्ष का कहना है कि आरोपी पवन और आकाश ने 11 वर्षीय पीड़िता के स्तनों को पकड़ा और उनमें से आकाश ने उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ दिया और उसे पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश की। इसे यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम, 2012 के दायरे में बलात्कार के प्रयास या यौन उत्पीड़न के प्रयास का मामला पाते हुए संबंधित ट्रायल कोर्ट ने POCSO Act की धारा 18 (अपराध करने का प्रयास) के साथ धारा 376 को लागू किया और इन धाराओं के तहत समन आदेश जारी किया।
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