Hardoi: महिला सशक्तिकरण एवं बाल अधिकारों पर जिला विधिक सेवा प्राधिकरण हरदोई का विशेष जागरूकता शिविर।
राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण नई दिल्ली, उत्तर प्रदेश राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण लखनऊ, के निर्देशानुसार जिला विधिक सेवा प्राधिकरण
Hardoi: राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण नई दिल्ली, उत्तर प्रदेश राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण लखनऊ, के निर्देशानुसार जिला विधिक सेवा प्राधिकरण हरदोई के अध्यक्ष /जनपद न्यायाधीश रीता कौशिक ,सचिव /अपर जिला जज भूपेंद्र प्रताप के निर्देशानुसार तहसील विधिक सेवा समिति सदर सचिव /तहसीलदार सचिंद्र कुमार शुक्ला जी के निर्देशन में महिला सशक्तिकरण व लिंग निर्धारण के रोकथाम पी0सी0 पी0 एन0डी0टी एक्ट व कार्य स्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न अधिनियम तथा बच्चों के कानूनी अधिकार एवं बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 विषय पर विधिक जागरूकता शिविर का आयोजन आर्य कन्या पाठशाला इंटर कॉलेज हरदोई में किया जिसकी अध्यक्षता प्रधानाचार्य सुदामा वर्मा के द्वारा की गई और उनके द्वारा बालिकाओं को महिला सशक्तिकरण के विषय पर विस्तृत जानकारी प्रदान की गई।
शिविर में लीगल एड क्लीनिक कीर्ति कश्यप के द्वारा बच्चों को उनके अधिकारों के बारे में जानकारी प्रदान की और 6 से 14वर्षके बच्चों के लिए निःशुल्क शिक्षा का अधिकार एवं आरटीई के अंतर्गत आर्थिक रूप कमजोर व्यक्तियों के लिए किसी भी प्राइवेट संस्थान मे निःशुल्क शिक्षा के बारे में जानकारी दी गई और बालिकाओं को शिक्षा के महत्व को बताते हुए जानकारी दी गई की शिक्षा के द्वारा ही महिलाएं अपने अधिकारों के लिए जागरूक हो सकती हैं महिला अपराध संबंधी कोई भी समस्या होने पर टोल फ्री नंबर 1090 का प्रयोग करने की सलाह दी और बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 के विषय में जानकारी देते हुए बताया गया कि यह अधिनियम 1 नवंबर 2007 से लागू हुआ यह भारत के सभी नागरिकों पर लागू होता है चाहे वह किसी भी धर्म के हो इस अधिनियम में ऐसा व्यक्ति यदि पुरुष है तो 21 वर्ष की आयु पूरी नहीं की है और यदि महिला है तो 18 वर्ष की आयु पूरी नहीं की है उसके परिजन या स्वयं विवाह करने का प्रयास करता है वह कानून की दृष्टि में अवैध है बाल विवाह के अंतर्गत दंडनीय अपराध है जो 2 वर्ष तक के कारावास तथा जुर्माना या दोनों हो सकता है हालांकि एक महिला को इस अधिनियम के तहत दंडित नहीं किया जाता है किंतु जुर्माने के माध्यम से महिला को दंडित किया जा सकता है इस अधिनियम के तहत यह अपराध संज्ञेय और गैर जमानती है।
जिसमें बाल विवाह करने वाले या उसमें भाग लेने वाले व्यक्तियों पर कार्रवाई की जाती है जैसे दोनों पक्षों के संरक्षक या अभिभावक पुजारी दोनों पक्षों के रिश्तेदार या मित्र ऐसे विवाह को संरक्षण देने वाले व्यक्ति विवाह ब्यूरो या विवाह कराने के लिए जिम्मेदार व्यक्ति 18 साल से अधिक आयु के वर तथा बाल विवाह की रोकथाम हेतु बाल विवाह निषेध अधिकारी जिला मजिस्ट्रेट, प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट या मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट, पुलिस, पारिवारिक न्यायालय, कोई भी व्यक्ति जिसे राज्य सरकार या बाल विवाह निषेध अधिकारी की सहायता के लिए नियुक्त किया गया हो के पास शिकायत दर्ज करा सकते हैं जिसमें बाल विवाह निषेध अधिकारी उसकी रोकथाम के लिए उल्लंघन करने वाले व्यक्तियों के विरुद्ध कानूनी कार्यवाही करेंगे।
यदि विवाह संपन्न हो गया है तो विवाह वैध जाता है जिसमें महिला की आयु 18 वर्ष पूर्ण होने तथा पुरुष की आयु 21 वर्ष पूर्ण होने के पश्चात यदि दोनों विवाह से संतुष्ट नहीं है और तलाक चाहते हैं इस स्थिति में महिला व पुरुष दोनों को एक दूसरे से अलग होने का कानून अधिकार है किंतु महिला की आयु 18 वर्ष पूर्ण होने के बाद 2 वर्ष के अंदर व पुरुष की आयु 21 वर्ष पूर्ण होने के बाद 2 वर्ष के अंदर तलाक हेतु आवेदन परिवार न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करना होता है जिस पर परिवार न्यायालय द्वारा सुनवाई करते हुए यदि पति पत्नी साथ में जीवन यापन नहीं करना चाहते हैं तो उन्हें तलाक की स्वीकृति दे दी जाती है किंतु विवाह के द्वारा दोनों के सहयोग से उत्पन्न हुए संतानों को कानून की दृष्टि में वैध माना जाएगा उस संतान को संपत्ति में कानूनी रूप से पूर्ण अधिकार प्राप्त होगा यदि दोनों अपनी सहमति से साथ में जीवन व्यतीत करना चाहते हैं तो कानूनन विवाह वैध ही रहेगा शिविर में लिंग निर्धारण के रोकथाम पी0सी0पी0एन0डी0टी0 एक्ट के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान की गई और बताया गया कि बच्चे के जन्म से पूर्व उसका लिंग निर्धारण करना कानूनन अपराध है।
जिसके लिए सजा का प्रावधान भी है।कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 जिसे पॉश एक्ट के नाम से जाना जाता है. यह अधिनियम, महिलाओं के यौन उत्पीड़न को रोकने और उससे जुड़ी शिकायतों को दूर करने के लिए बनाया गया है. यह अधिनियम निजी और सरकारी दोनों तरह के संगठनों पर लागू होता है. सभी संगठनों को अपने कर्मचारियों के यौन उत्पीड़न की शिकायतों की जांच करने और उनका समाधान करने के लिए एक समिति बनानी होगी. द्वारा यह जानकारी दी गई कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से पीड़ित महिला अगर अपनी शिकायत करती तो उसकी समस्त जानकारी गोपनीय रखी जायेगी।
शिकायत दर्ज कराने के लिए, ऑफ़िस में बनी इंटरनल कमेटी या पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई जा सकती है। आंतरिक कमेटी को 10 दिनों में अपनी जांच रिपोर्ट कंपनी को देनी होती है। दोषी पाए जाने पर कंपनी आरोपी को सज़ा देती है।
अगर पीड़ित महिला अपनी शिकायत करने में असमर्थ है, तो उसका कानूनी उत्तराधिकारी शिकायत दर्ज करवा सकता और जिला विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा चलाई जा रही निःशुल्क विधिक सेवाओं एवं नालसा हेल्पलाइन नंबर 15100 के बारे में जानकारी प्रदान की। शिविर में पी0एल0वी0 कीर्ति कश्यप, अध्यापिका पुनीता सिंह एवं आरती वर्मा एवं छात्राएं अधिक संख्या में उपस्थित रहीं।
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