MP News: तुगलकी फरमान के खिलाफ आवाज- चोहटा गांव में 35 परिवारों का बहिष्कार, राशन-चक्की से वंचित, 5000 के जुर्माने की धमकी।
एक तरफ तो हम 21 वी सदी में जीने की बातें कर रहे है जहां जमाना आज चांद पर बसने की तैयारी कर रहा है पर आज भी देश के आदिवासी बाहुल्य में पुरानी रीतिरिवाजों....
रिपोर्ट- शशांक सोनकपुरिया, बैतूल मध्यप्रदेश
- भीमपुर के चोहटा गांव में छुआछूत की वापसी – 35 परिवारों का सामाजिक बहिष्कार,न दुकान से राशन न चक्की से अनाज पिसाई ,फरमान का पालन न करने पर 5000 का जुर्माना ,मुनादी कर सुनाया गया तुगलकी फरमान – बच्चों से बात करने तक पर पाबंदी
एक तरफ तो हम 21 वी सदी में जीने की बातें कर रहे है जहां जमाना आज चांद पर बसने की तैयारी कर रहा है पर आज भी देश के आदिवासी बाहुल्य में पुरानी रीतिरिवाजों का ढंका बजाय जा रहा है जी हां हम बात कर रहे है मध्यप्रदेश के बैतूल जिले की जहाँ जिले के भैंसदेही विधानसभा के भीमपुर विकासखंड अंचल से एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है,बता दें कि चोहटा गांव में छुआछूत की पुरानी सोच फिर से सिर उठा रही है।शुक्रवार की रात चोहटा गांव की गलियों में अचानक डंका बजा, और मुनादी कर सुनाया गया एक तुगलकी फरमान। गांव के आदिवासी समाज के करीब 100 लोगों ने मिलकर 35 परिवारों का हुक्का-पानी बंद कर दिया।फरमान में यहां तक कहा गया कि इन परिवारों के बच्चों से भी कोई बात नहीं करेगा। नतीजा – गांव के भीतर ही ये परिवार अलग-थलग पड़ गए हैं। ना दुकान से राशन, ना चक्की पर अनाज की पिसाई – जिंदगी अब पहाड़ बन गई है।
गांव का माहौल सन्नाटे में डूबा है। बच्चे घरों में कैद हैं, महिलाएं चिंतित हैं, और पुरुष अपमान का घूंट पीकर चुप हैं।बताया जा रहा है कि यह सारा विवाद एक सांस्कृतिक कार्यक्रम में चंदा न देने को लेकर शुरू हुआ। और बात यहां तक बढ़ गई कि पूरे समाज का बहिष्कार कर दिया गया।हालांकि नल-जल योजना के पानी की सप्लाई चालू है, लेकिन बाकी हर सुविधा बंद कर दी गई है।
देवा बेले ( ग्रामीण)
हालात यह हैं कि यदि यह पानी भी बंद हो जाता, तो परिवार बूंद-बूंद के लिए तरस जाते।इतना ही नहीं, फरमान का पालन न करने वालों पर ₹5,000 का जुर्माना लगाने की चेतावनी भी दी गई है। गांव में डर का माहौल बना हुआ है और पीड़ितों ने जिला प्रशासन व अनुसूचित जाति विभाग से तुरंत हस्तक्षेप की मांग की है।
सवाल यह है कि क्या 21वीं सदी के भारत में अब भी जातीय भेदभाव और सामाजिक बहिष्कार जैसी कुप्रथाएं ज़िंदा हैं? अब निगाहें जिला प्रशासन पर टिकी हैं – क्या होगी कार्रवाई?
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