लघुकथा- गर्माहट
"बाबु जी ! आज फिर देरी कर दी आपने । इतनी देर से दूध -सब्जी लेकर लौटते हैं तो मुझे आगे के सभी कामों में परेशानी हो जाती है ....

मधु झुनझुनवाला "अमृता", जयपुर राजस्थान
"बाबु जी ! आज फिर देरी कर दी आपने । इतनी देर से दूध -सब्जी लेकर लौटते हैं तो मुझे आगे के सभी कामों में परेशानी हो जाती है -" सलोनी ने सुबह की सैर से लौटे अपने ससुर जी को टोकते हुए कहा ।
"ठीक है बिटिया आगे से ध्यान रखूँगा ।"- यह कहते हुए माधव बाबू अपनी धुन में मगन कमरे में चले गए। पत्नी के देहांत के बाद माधव बाबू का यूँ तो अधिकांश समय अपने मन के झरोखों में झाँकते हुए ही व्यतीत होता था। हाँ सुबह-शाम की सैर का नियम वे बराबर निभाते थे क्योंकि घर की मौन दीवारों के मध्य एकाकीपन की नीरवता उन्हें विचलित करती रहती थी। परन्तु आज वे बहुत खुश थे।
सर्दियों की आहट आने से आज पार्क में लोग-बाग कम ही थे। हर रोज की भाँति माधव बाबू बेंच पर बैठे थे कि उन्हें चक्कर से आने लगे अचानक इतने में एक दीन बालक ने उन्हें आकर संभाल लिया और पूछा- "बाबा आपको घर तक छोड़ आऊँ ।"
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"नहीं बेटा अभी मुझे डेरी तक जाना है , वैसे भी ये तो उम्र का तकाजा है तुम्हारे सहारे कैसे चल सकता हूँ । साँसो का सफर कितना लम्बा होगा किसे पता, तुम कब तक साथ दोगे " - माधव बाबू लम्बी श्वास लेते हुए उठ खड़े हुए।
नन्हें बालक ने उनकी कंपकंपाती हथेलियों को मजबूती से पकड़ते हुए कहा-" अपनी साँसों तक .....!"
कोमल हाथों की गर्माहट माधव बाबू को गुलाबी ठंड में ताप का भान दे गयी।
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