Article for 'Made in Rajasthan: पधारो म्हारे देश- सांस्कृतिक झलक से जोड़ना होगा कृषि विपणन।
विविधताओं के देश हिंदुस्तान में राजस्थान को भी विविधताओं के राज्य की दृष्टि से देखा जाता है। राज्य के अंतर्राज्यीय सीमावर्ती ....
लेखक परिचय
अरविन्द सुथार पमाना ♦वरिष्ठ कृषि एवं पर्यावरण पत्रकार, अनार एवं बागवानी विशेषज्ञ, कृषि सलाहकार, मोटिवेटर एवं किसानों के मार्गदर्शक।
विविधताओं के देश हिंदुस्तान में राजस्थान को भी विविधताओं के राज्य की दृष्टि से देखा जाता है। राज्य के अंतर्राज्यीय सीमावर्ती जिले पड़ोसी राज्यों की संस्कृति से प्रभावित हैं। कृषि जलवायु व उत्पादन में भी उतनी ही विविधताएं मौजूद हैं। राज्य को दो अलग खंडों में विभाजित करती अरावली पर्वत श्रंखला सांस्कृतिक व कृषि की दृष्टि से भी राज्य को विभाजित कर रही है। पश्चिमी राजस्थान शुष्क व अर्धशुष्क है, जहां बाजरा, ग्वार, मूंग, मोठ, गेहूं, जीरा, ईसबगोल की फसलें होती हैं। वहीं खजूर, अनार और बैर आदि फलोत्पादन में यह क्षेत्र खासा प्रसिद्ध है।
वहीं दक्षिण राजस्थान मक्का, चना, मूंगफली, सहित कई औषधीय फसलों व फलोत्पादन की भूमिका में है। पूर्वी राजस्थान में सरसों, मसाला के अलावा अमरूद, सोयाबीन आदि की भरपूर खेती होती है। उत्तरी राजस्थान को अन्न का कटोरा कहते हैं। यह क्षेत्र चावल व फलोत्पादन में अग्रणी है। संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि राजस्थान की कृषि भले ही मानसूनी जुआ है लेकिन उतनी ही रंग बिरंगी विभिन्नताएं लिए हुए हैं। बस इसे टिकाऊ व अधिक गुणवत्तायुक्त बनाने की आवश्यकता है।
कोई भी व्यवसाय एक संसाधन के रूप में तभी स्थिर बनेगा जब उसमें उचित विविधताएं होंगी। राजस्थान के किसानों की स्थिति सुधारने हेतु कृषि उत्पादों को "मेड इन राजस्थान" के तबके की आवश्यकता है। "मेड इन राजस्थान" की इस मुहिम में सरकार से काफी अपेक्षाएं की जा सकती हैं। राजस्थान में आत्मा योजना के अंतर्गत "मेड इन राजस्थान" की मुहिम को कृषि से जोड़कर कृषि व संबंधित प्रसंस्कृत उत्पादों को किसान हाट द्वारा विपणन किया जा सकेगा। साथ ही सेफ फूड मंडियों का आयोजन कर देश के अन्य हिस्सों के उपभोक्ताओं को भी आकर्षित कर सकेंगे। इसके अलावा रोजमर्रा की सामग्री, हल्दी, शहद, जैविक उत्पाद, खाद्यान्न, तिलहन, फल प्रसंस्करण सामग्री आदि को देश के अन्य हिस्सों में पहुंचा कर "मेड इन राजस्थान" की पहचान बनाई जा सकती है।
"मेड इन राजस्थान" एक ऐसा प्लेटफार्म तैयार होकर उभरेगा जिसमें राजस्थानी संस्कृति की खुशबू निहित होगी। जिस प्रकार से इस 'रंगीले राजस्थान' के पर्यटन विभाग ने "पधारो म्हारे देश" श्लोगन से पर्यटकों को आकर्षित किया, ठीक उसी तर्ज पर कृषि विभाग भी "मेड इन राजस्थान" श्लोगन के साथ उपभोक्ताओं को आकर्षित करके कृषि विपणन में किसानों का सहयोग कर सकता है। "मेड इन राजस्थान" से रेगिस्तानी धोरों के कैर, सांगरी व कुमट भी अपने शाही अंदाज में देश के कोने कोने का सफर करेंगे, तो राजस्थानी धनिया, जीरा, सरसों तेल, सोया, गंगानगरी गेहूँ, बाड़मेर का बाजरा आदि विदेशों तक का सफर तय कर सकेंगे। बाजरा व मक्का के बिस्किट अपने साथ मेथी व अजवाइन की खुशबू से "मेक इन राजस्थान" में चार चांद लगा देंगे। पुष्कर के गुलाब, इनसे बने गुलाबजल व इत्र दुनिया भर में "मेड इन राजस्थान" का डंका बजाएंगे।
हालांकि राजस्थान में कई स्थानों पर विभिन्न कंपनियों द्वारा उत्पादों की प्रोसेसिंग की जा रही है। लेकिन मेरा ध्यान केवल किसान पर है। जब किसानों द्वारा "मेड इन राजस्थान" के श्लोगन को साकार किया जाएगा तो पूर्ण विश्वास है कि जितनी राजस्थानी संस्कृति को पूरे विश्व ने पसंद किया है उसी तरह किसानों के कृषि उत्पाद भी "मेड इन राजस्थान" के श्लोगन से खासा अर्थ हासिल कर सकेंगे।
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"मेड इन राजस्थान" कृषि उत्पादों के मंडीकरण का एक माध्यम है। जिसे गहन विचार-विमर्श करके उचित प्लेटफार्म का रूप देना चाहिए। राजस्थान परम्पराओं का राज्य है। विपणन बोर्ड, कृषि एवं उद्यान विभाग के साझा प्रयासों से राजस्थानी कृषि उत्पाद, व यहां के पारंपरिक व्यंजन, पारंपरिक तरीकों से प्रसंस्करण किए हुए खाद्य पदार्थ, देश में ही नहीं बल्कि वैश्विक स्तर पर पहचान दिला सकेंगे। छोटे किसानों को इस स्टार्टअप के लिए प्रोत्साहन देना होगा व कई युवा किसानों को "मेड इन राजस्थान" में अपना रोजगार स्थापित करने हेतु प्रेरित करना होगा।
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