क्षत्रिय वंश के शौर्य के प्रतीक- सम्राट विद्याधर चंदेल, पढ़ें पूरे इतिहास।

- धर्म और युद्ध की खुली चुनौती स्वीकार करने वाले भारतीय स्वाभिमान के प्रतीक, भारत भूमि सनातन धर्म के रक्षक, निलकंठ महादेव के परम भक्त, कांदर्य महादेव के निर्माणकर्ता, चंदेल ही नहीं पुरे क्षत्रिय वंश के शौर्य के प्रतीक
सार्वभौम सम्राट परमेश्वरपरमभट्टारक कलिंजराधिपति
महाराजाधिराज श्रीमद विद्याधरदेव वर्मन चंदेल
सुक्तबीन गजनी के बहुत विशाल 8 लाख सेना के वावजूद उसे पराजित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले चंदेल सम्राट धंगदेव वर्मन जिन्होंने 25000 विशेष सैनिकों का दस्ता अपने पौत्र विद्याधर के नेतृत्व में जयपाल शाहिय को भेजा था क्योंकि सही समय पर जयपाल शाहिय ने सम्राट धंग को सूचना भेज दिया था इस भयानक युद्ध में जिसमें दिल्ली अजमेर कन्नौज के राजपूत राजाओं ने भी सैन्य सहयोग दिया था। राजपूतों की संयुक्त सेना 1 लाख थी घनघोर युद्ध छिड गया जिसमें सुक्तबीन अपने अधिकांश सैनिको के साथ मारा गया था( खजुराहो के एक अभिलेख में सम्राट धंग को भूवनातिभारं हमीर मर्दक कहा गया है।
जिससे स्पष्ट है धंग के जिवित रहते तुर्कों ने भारत के अंदर हमला करने का साहस नहीं किया) धंग के बाद उनके वीर पुत्र सम्राट गंडदेव वर्मन और उनके बाद उनका यशस्वी पुत्र सम्राट विद्याधरदेव वर्मन (1018-1029 ईस्वी तक गद्दी) चंदेल राज के सिंहासन पर विराजमान होते हैं वह चंदेल शासकों में अपने पितामह सम्राट धंग और अपने पिता गंड जैसा शक्तिशाली शासक थे उनके प्रपितामह यशोवर्मन् ने चंदेल शासकों में दिग्विजयी सम्राट होने के बाद भी किसी राज्य को अपने अधीन नहीं किया यह यशोवर्मन् की बहुत बड़ी महानता थी।
सम्राट विद्याधर के बारे में बड़े खेद के साथ लिखना पड़ रहा है कि विद्याधर के शासन काल की घटनाओं का उल्लेख हमें अपने लेखकों के कम बल्कि तत्कालीन विदेशी मुसलमान इतिहासकार लेखकों इब्ल उल अतहर उत्बी अलबरुनी निजामुद्दीन के लेखों के विवरण से मिलता है। जो अपना ढोल पिटते नजर आएंगे किंतु तर्कसंगत समिक्षा करने पर विद्याधर की सर्वश्रेष्ठता का पता चलता है।
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मुसलमान लेखक विद्याधर का नंद तथा विदा नाम से भी उल्लेख करते हैं।
इब्न उल अतहर लिखता है, कि उसके पास सबसे बङी सेना थी तथा उसके देश का नाम खजुराहो था। अलबरुनी कहता है कि विद्याधर राज्य सीमा और सैनिको की दृष्टि से भारत का सबसे बड़ा शासक है विद्याधर के पास 145000 पैदल 36000 घोड़े 390 हाथी के साथ विशाल सेना थी ऐसा निजामुद्दीन कहता है उसने भारतीय शासकों में विद्याधर को बिडा कहा जो विद्याधर के सर्वश्रेष्ठ होने का प्रमाण है।
विद्याधर के राजा बनते ही महमूद गजनवी के नेतृत्व में यामिनी तुर्कों का हिन्दू राजाओं पर आक्रमण तेज हो गये।और उत्तर भारत के हिंदू राजे धूल कि तरह उडने लगे (आप अफगानिस्तान पंजाब के वीर शाहिय राजाओं में जयपाल ने कितनी वीरता से सुक्तबीन और उसके पुत्र यामिनीदौला (महमूद गजनवी) का सामना किया और रोक रखा था आगे भारत में बढने से जिसमें भारत के शक्तिशाली राज्यों अजमेर दिल्ली कन्नौज और कालिंजर के सम्राट धंग ने अपनी सैनिक सहायता से तुर्कों का सफल दमन किया किंतु एक धोके से जयपाल शाहिय रुपी भारत के प्रहरी राजा का किला ढह गया) किन्तु वीर चंदेल शासक विद्याधर तुर्कों से नहीं डरा और तुर्कों का बङी वीरता से एक मजबूत चट्टान की भांति सामना करने के लिए प्रस्तुत किया।
1018 ईस्वी में महमूद ने कन्नौज के प्रतिहार शासक राज्यपाल के ऊपर आक्रमण किया। राज्यपाल ने डरकर बिना युद्ध किये ही आत्मसमर्पण कर दिया और महमूद गजनवी काफी धन लेने के बाद कन्नौज मथुरा को लूटते हुए गजनी वापस लौटा। जब विद्याधर को इस घटना का पता चला तो वह अत्यंत क्रुद्ध हुआ और इसे क्षत्रिय धर्म का अपमान समझा क्योंकि अयोग्य प्रतिहार शासक के पास एक विशाल सेना होने के बाद भी बिना युद्ध लडे आत्मसमर्पण की वजह और दूसरी न ही सहायता मांगी न ही सूचना दी इससे कुपित हो उसने राज्यपाल को दंडित करने का निश्चय किया।
मुस्लिम लेखक इब्न-उल-अतहर बताता है, कि विद्याधर ने कन्नौज पर आक्रमण किया तथा एक दीर्घकालीन युद्ध के बाद वहाँ के राजा राज्यपाल की इस कारण हत्या कर दी थी, कि वह मुसलमानों के विरुद्ध भाग खङा हुआ तथा अपना, राज्य उन्हें समर्पित कर दिया था। इस विवरण की पुष्टि सामंत अभिलेखों से भी होती है।
ग्वालियर के कछवाहा नरेश चंदेलों के सामंत थे। इस वंश के विक्रम सिंह के दूबकुंड लेख (1088ईस्वी) से पता लगता है, कि उसके एक पूर्वज अर्जुन ने विद्याधर की ओर से युद्ध करते हुये कन्नौज के राजा राज्यपाल को मार डाला था। चंदेल वंश का एक लेख महोबा से भी मिलता है, जिससे भी विद्याधर द्वारा राज्यपाल के मारे जाने की बात पुष्ट होती है।
राज्यपाल का वध करने से विद्याधर की ख्याति चारों ओर फैल गयी तथा वह उत्तर भारत का सार्वभौम सम्राट बन गया था। कन्नौज में विद्याधर ने अपनी ओर से राज्यपाल के बेटे त्रिलोचनपाल को राजा बनाया तथा उसने विद्याधर की अधीनता स्वीकार की और विद्याधर को त्रिलोचनपाल ने अपना संरक्षक माना अन्य हिन्दू राजाओं ने भी विद्याधर का लोहा मान लिया था। यह महमूद गजनवी के द्वारा विजित भारत के लिए खुली चुनौती थी, जिसका सामना करने के लिये वह राजपूती हुंकार लिए प्रस्तुत हुआ।
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चंदेलों पर महमूद गजनवी का पहला आक्रमण1019-20 ईस्वी
1019-20 ईस्वी में चंदेलों पर महमूद गजनवी का प्रथम आक्रमण हुआ था। सबसे पहले शाहिय त्रिलोचनपाल ने उत्तर में विद्याधर पर हुए हमले को रोकने के लिए प्रस्तुत हुआ क्योंकि अपने पूरे राज्य को पाने की आश सिर्फ विद्याधर से थी किंतु एक संघर्ष के बाद वो पराजित हुआ और विद्याधर के राज्य की तरफ प्रस्थान किया किंतु कुछ हिन्दूओं ने ही मार डाला और इधर विद्याधर की तरफ से ग्वालियर के कछवाहा दिल्ली के तोमर कन्नौज के प्रतिहार काशी के गहरवार त्रिपुरी के कलचुरि सहित अन्य छोटे शासकों सहित विद्याधर ने अपने राज्य के जनजातियों को भी अपनी सेना में रखा मुस्लिम स्रोतों के अनुसार दोनों के बीच किसी नदी के किनारे भीषण युद्ध हुआ।
युद्ध इतना भयानक था कि दोपहर होते ही महमूद गजनवी अपने मौला को याद करने लगा और अपने आने का पछतावा करने लगा शाम होतें होते उसकी अधिकांश सेना नष्ट हो युद्ध के रणनीति के हिसाब से विद्याधर ने अपने हाथियों? को सांकल बांध कर आगे उतारा था उन हाथियों ने महदूद की सेना को बहुत बुरी तरह रौंद डाला था उसके पिछे अश्व सेना ने अपना तांडव मचाना प्रारंभ किया और पैदल सेना ने महमूद के निचे गिरे सैनिकों को उनके मौला के पास भेजने का कार्य किया और पिछे से विद्याधर के तिरंदाजों ने बेजोड़ तिरों की वर्षा करते रहे क्षत्रिय धर्म के अनुसार शाम को युद्ध बंद हुआ ( उसके मौला को याद करना और पछतावे वाली बात उसके इतिहासकार करते हैं यह देखने योग्य है) महमूद ने विद्याधर की हाथियों? से बचने के लिए अपने घोड़ो का नदी में पुल बना दिया।
जिससे विद्याधर के तरफ का मैदान गिला हो गया इधर विद्याधर ने गिला मैदान देखा तो दूसरे सुखे मैदान की खोज में पिछे निकले और सुबह विद्याधर को न देखने पर महमूद गजनवी आगे बढने की तो छोड़े वो जंगल का रास्ता पकड़ कर बची हुई सेना लेकर भागा और झाडियों झुरमुटों को भी ध्यान से देखते हुए गया कि कही से हमला न हो जाऐ और जब विद्याधर को सूचना मिली तो उन्होंने पंजाब के राजौरी(जम्बू का सबसे पुराना राजवंश चंदेल, अभी तक)तक पिछा किया कि आज उसे खत्म कर देंगे किन्तु वह भागने में कामयाब हुआ।
यामिनीदौला महमूद गजनवी के गजनी लौटने के बाद 3 साल तक अपनी सेना को मजबूत और बडी बनाया 160000 की विशाल घोडसवार सेना इकट्ठा की और महमूद गजनवी ने 1022 ईस्वी में चंदेल शासक विद्याधर पर अपनी पराजय का बदला लेने के लिए दूसरी बार आक्रमण किया सबसे पहले उसने ग्वालियर के दुर्ग का घेरा डाला, जो चार दिनों तक चलता रहा।
अंत में दुर्गपाल ने 35 हाथियों की भेंट कर उससे पीछा छुङवाया देखने से पता चलता है कि ग्वालियर चंदेल राज्य के अन्तर्गत पहला किला था जिस पर कछवाहा जैसे वीर वंश के सामंत शासक राज करते थे!उसके बाद उसने कालिंजर के दुर्ग जो विद्याधर का मुख्य ठीकाना था उस तरफ आगे बढा और वो हैरत से भरे रास्ते को देखते हुए कि उसका कहीं प्रतिरोध नहीं हो रहा आगे बढता रहा खेतों में किसान खेती करते हुए मिले।
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यह देख महमूद ने अपने सेनापति से कहा कुछ किसानों को पकड़ कर ले आओ और किसानों के आने पर उनसे पूछता है कि हम तुम्हारे देश पर हमला किये है तुम लोग गाना गाते हुए खेती कर रहे हो हमशे डर नहीं लगता तो किसानों ने कहा क्षत्रियो की सेना सम्राट विद्याधर के साथ आप का इंतजार कर रही है आप आगे बढे वो आगे बढते हुए कालिंजर तक पहुँच गया और किले का घेरा डाल दिया।
लंबे घेरे के बाद जब दुर्ग से कोई प्रतिक्रिया होता नहीं देखा तो वह सोच में पड गया और अपने वजीरों के साथ एक ऊंचे टीले पर चढ किले की तरफ तत्कालीन दूरबीन की सहायता से जब किले के अंदर देखा तो उसके बुद्धिजीवीयों ने जो सेना का अनुमान लगाया वह पहले युद्ध से बड़ी नजर आई उसे सुन उसकी सभी बुद्धि फेल हो गया वह अपने को ठगा महसूस करने लगा सही बात तो यह है दूसरी बार महमूद बच कर न जाए इसलिए विद्याधर ने पुरा राज्य का सैन्यबल धीरे धीरे किले में एकत्र कर लिया शक्ति तथा अभेद्यता में वह दुर्ग संपूर्ण हिन्दुस्तान में बेजोङ था और तुर्क इस किले को सिकंदर का दिवाल कहते थे इसे भेदने की छमता गजनवी क्या किसी में न के बराबर थी।
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सर्वप्रथम विद्याधर ने बिना महावत के 300 हाथियों? का झुंड मदिरा पिला कर प्रभात से पहलेभेजा जिसे काबु करने में महमूद की सेना का मनोबल टूट गया बहु मुश्किल काबु हुई जिसे तुर्क इतिहासकारों ने अधिनता सूचक कहा जबकि बिना महावत वाली हाथियों का झुंड भेजना युद्ध का शंखनाद था जिसके बाद मुस्लिम लेखकों के अनुसार विद्याधर ने महमूद को बधाई भेजा जिसके बाद महमूद ने अपना दूत विद्याधर को भेजा और कहलवाया की मै सम्राट से भेंट कर मिलने के लिए कालिंजर आया हूँ मैं सम्राट से मिलकर वापस गजनी चला जाऊँगा (मुस्लिम इतिहासकार इस बात को विद्याधर की तरफ से खत आया कहते हैं।
जबकि गजनवी ने दंड स्वरूप विजित भारत के 15 किले विद्याधर को भेंट स्वरूप देना विद्याधर की जीत का प्रमाण है) दोनों की भेंट होती है और गजनवी अपने से श्रेष्ठ विद्याधर को मानते हुए फिर विद्याधर के राज्य पर हमला न करने का वचन दे वापस शांति पूर्वक लौट जाता है (कालिंजर भारत के मध्य में स्थित है और उसके उत्तर गजनी तक बहुत से राज्य पडते है किंतु उसकी विशाल सैन्यदल बिना चिंटी मारे बिना किसी को लूटे शांति पूर्वक जाते है जिसका मूल कारण विद्याधर थे)और आजीवन मित्र बना रहता है।
इस विषय में खुद गजनवी का कहना था कि अगर वो विद्याधर को छोड़ कर विश्व विजय के लिए निकलता तो वो आसानी से कर लेता मैं अपने अलावा दूसरे किसी को अपने से ऊपर नहीं मानता था किंतु हे मित्र तुम मुझसे श्रेष्ठ हो तुम्हारे कालिंजरी लोहे की तलवार बहुत उम्दा है और गजनवी के मांगने पर कुछ तलवार विद्याधर ने उपहार स्वरूप दिया और अपने विजय के प्रतिक के स्वरूप में विद्याधर ने खजुराहो में विश्व प्रसिद्ध कांदरिया महादेव मंदिर का निर्माण कराया यह उनके विजय का द्योतक है क्योंकि वो मुर्तिभंजकों के काल में उनके मूंह पर तमाचा था।
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महमूद गजनवी के अलावा चंदेल शासक विद्याधर ने मालवा के परमार शासक भोज तथा कलचुरि शासक गांगेयदेव को भी पराजित किया था। एक तरफ गांगेयदेव ने काशी जो विद्याधर के राज में था उसे अपने राज्य में मिलाने को उद्दत थे जिसे विद्याधर के बाद कर्ण कलचुरि ने अपने अधीन कर लिया और प्रयाग को भी जिसे विद्याधर के जिवित रहते रुके हुए थे। भोजदेव के दो असफल हमला विद्याधर के राज्य पर हुआ था।
इतिहास के उस काल को देखने से स्पष्ट दिखता है कि विद्याधर के जिवित रहते उस समय की विस्तारवादी सत्ताओं में भोज परमार और गांगेयदेव कलचुरि अपने को राजा महराज मर्हात आदि शब्दों का हि प्रयोग करते मिलेगे जबकि विद्याधर के 1029 में गोलोकवासी होने पर दोनों अपने को सम्राट घोषित करते हैं। भोज परमार ने विद्याधर पर सिधा हमला न कर चुनौती स्वरूप ग्वालियर पर हमला करते हैं जिसे विद्याधर के सैन्यबल की मदद से कछवाहा राजे ने बुरी तरह पराजित किया।
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एक महोबा से प्राप्त अभिलेख में इसकी पुष्टि होती है कि गांगेयदेव कलचुरि और परमार भोज युद्ध कला के आचार्य परमभट्टारक महाराजाधिराज श्री विद्याधर के चरणों की सेवा एक शिष्य की भांति करते थे। इस प्रकार हम कह सकते हैं, कि विद्याधर अपने समय के साथ पुरे राजपूत काल के महान शासक थे उसके पितामह धंग ने जिस विशाल साम्राज्य का निर्माण किया था, विद्याधर ने अपने वीरतापूर्वक कृत्यों द्वारा उसे गौरवान्वित कर दिया।
इस प्रकार यशोवर्मन् धंग गंड तथा विद्याधर चंदेल शक्ति के आधार-स्तंभ तथा महान साम्राज्य निर्माता थे। खजुराहो बनाने वाले भी मुख्य रूप से यही महान शासक थे जिन्होंने अपने प्रत्येक विजय के बाद खजुराहो में भव्य मंदिरों का निर्माण विजय के प्रतिक रुप में करवाते थे..
रणजीत पर्ताप सिंह चंदेल
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