मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का तीखा सवाल: जज सुरक्षित नहीं तो न्याय व्यवस्था कैसे बचेगी, राज्य सरकार से मांगी सुरक्षा उपायों की रिपोर्ट

मध्य प्रदेश में जजों पर हमले कोई नई बात नहीं है। हाल ही में इंदौर जिले के एक सिविल जज पर एक वकील ने कथित तौर पर थप्पड़ मारा। यह घटना सितंबर 2025 में

Nov 23, 2025 - 15:30
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मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का तीखा सवाल: जज सुरक्षित नहीं तो न्याय व्यवस्था कैसे बचेगी, राज्य सरकार से मांगी सुरक्षा उपायों की रिपोर्ट
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का तीखा सवाल: जज सुरक्षित नहीं तो न्याय व्यवस्था कैसे बचेगी, राज्य सरकार से मांगी सुरक्षा उपायों की रिपोर्ट

जबलपुर। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने जजों पर हो रहे हमलों और अपराधों पर गहरी नाराजगी जताई है। कोर्ट ने राज्य सरकार से साफ कहा कि जब जजों को ही सुरक्षा के लिए गुहार लगानी पड़ रही है, तो आम नागरिकों की क्या स्थिति होगी। कोर्ट ने यह टिप्पणी हाल ही में कुछ जिलों में जजों के साथ हुई घटनाओं के बाद की। जस्टिस संदीप कुमार चौधरी की एकलपीठ ने सुनवाई के दौरान राज्य सरकार को निर्देश दिया कि जजों की सुरक्षा के लिए उठाए गए कदमों का विस्तृत ब्योरा पेश किया जाए। अगली सुनवाई की तारीख 4 दिसंबर तय की गई है। कोर्ट ने कहा कि न्यायपालिका की रक्षा के बिना लोकतंत्र का कोई आधार नहीं बचता। यह मामला एक जनहित याचिका पर आया, जिसमें जजों की सुरक्षा को लेकर चिंता जताई गई थी। हाईकोर्ट ने सरकार को फटकार लगाते हुए पूछा, जज सुरक्षित नहीं तो न्याय व्यवस्था कैसे सुरक्षित मानी जाएगी।

याचिका वकील प्रशांत शर्मा ने दायर की थी। इसमें मध्य प्रदेश के विभिन्न जिलों में जजों पर हमलों के कई उदाहरण दिए गए। कोर्ट ने इन घटनाओं को गंभीर बताते हुए सरकार से जवाब मांगा। जस्टिस चौधरी ने कहा कि न्यायाधीश न केवल कानून की व्याख्या करते हैं, बल्कि समाज के न्याय के पहरेदार भी हैं। अगर उन्हें खतरा हो, तो न्याय प्रक्रिया ही कमजोर पड़ जाएगी। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह केवल जजों की समस्या नहीं, बल्कि पूरी व्यवस्था की चिंता का विषय है। सरकार के वकील ने कहा कि सुरक्षा के लिए कुछ कदम उठाए गए हैं, लेकिन कोर्ट ने इसे अपर्याप्त बताया। उन्होंने डीजीपी को नोटिस जारी करने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि जजों की सुरक्षा के लिए विशेष दिशानिर्देश जारी करने होंगे।

मध्य प्रदेश में जजों पर हमले कोई नई बात नहीं है। हाल ही में इंदौर जिले के एक सिविल जज पर एक वकील ने कथित तौर पर थप्पड़ मारा। यह घटना सितंबर 2025 में हुई, जब जज ने वकील की याचिका खारिज की। वकील ने गुस्से में कोर्ट में ही जज पर हमला बोल दिया। इसी तरह, भोपाल के एक जिला जज को धमकी भरा पत्र मिला, जिसमें उनके फैसले पर सवाल उठाए गए। पत्र में जान से मारने की धमकी दी गई। फिर, ग्वालियर बेंच के एक जज को उनके आवास के बाहर संदिग्ध व्यक्ति घूमते पाया गया। ये घटनाएं याचिका में विस्तार से बताई गईं। याचिकाकर्ता ने कहा कि निचली अदालतों में जजों को न्यूनतम सुरक्षा भी नहीं मिल रही। ग्रामीण इलाकों में तो स्थिति और खराब है। कोर्ट ने सहमति जताई और कहा कि जजों को सुरक्षा का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मिला है।

राज्य सरकार ने कोर्ट को बताया कि जजों की सुरक्षा के लिए पुलिस महकमे ने कुछ कदम उठाए हैं। हर जिला जज को एक कांस्टेबल की सुरक्षा दी गई है। लेकिन कोर्ट ने इसे मजाक उड़ाया। जस्टिस चौधरी ने कहा कि एक कांस्टेबल से क्या सुरक्षा मिलेगी। हमले के समय तो वह भी अपर्याप्त साबित होता है। सरकार ने कहा कि जजों के लिए विशेष सुरक्षा समिति गठित की जा रही है। लेकिन कोर्ट ने जवाब मांगा कि यह समिति कब बनेगी और क्या कदम उठाए जाएंगे। कोर्ट ने डीजीपी सुधीर सक्सेना को व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया। इसमें जजों पर हमलों की संख्या, दर्ज मामले और कार्रवाई का विवरण होना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि अगर सरकार गंभीर नहीं हुई, तो सख्त कदम उठाने पड़ेंगे।

यह मामला मध्य प्रदेश की न्यायिक व्यवस्था में सुरक्षा के मुद्दे को उजागर करता है। राज्य में करीब 2000 निचली अदालतें हैं, जहां 1500 से ज्यादा जज कार्यरत हैं। इनमें से कई को धमकियां मिलती रहती हैं। 2024 में ही 20 से ज्यादा मामले दर्ज हुए। विशेषज्ञों का कहना है कि जजों पर हमले बढ़ने का कारण तेजी से फैसले देना और भूमि विवाद जैसे संवेदनशील मामले हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में तो जजों को अकेले ही सुनवाई करनी पड़ती है। हाईकोर्ट ने पहले भी इस पर चिंता जताई थी। 2023 में एक मामले में कोर्ट ने कहा था कि जजों की सुरक्षा राज्य की जिम्मेदारी है। लेकिन अमल में कमी बनी हुई है। अब इस सुनवाई से सरकार पर दबाव बढ़ेगा।

वकीलों का संगठन बैरिस्टर एसोसिएशन ने कोर्ट के बयान का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि जजों की सुरक्षा सुनिश्चित होनी चाहिए। अन्यथा वकील भी डरेंगे। एक वकील ने कहा कि हमले केवल शारीरिक नहीं, मानसिक भी होते हैं। धमकियां जजों का मनोबल तोड़ती हैं। कोर्ट ने याचिकाकर्ता को निर्देश दिया कि वे अन्य वकीलों से सुझाव लाएं। अगली सुनवाई में सुरक्षा नीति पर चर्चा होगी। सरकार ने वादा किया कि 4 दिसंबर तक रिपोर्ट दाखिल करेंगे। लेकिन कोर्ट ने चेतावनी दी कि देरी बर्दाश्त नहीं।

यह घटना राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बनी। सुप्रीम कोर्ट के वकीलों ने कहा कि मध्य प्रदेश का मामला पूरे देश का प्रतिबिंब है। कई राज्यों में जजों पर हमले हुए हैं। उत्तर प्रदेश में एक जज को गोली मार दी गई। राजस्थान में धमकी के मामले बढ़े। विशेषज्ञों ने सुझाव दिया कि जजों के लिए केंद्रीय सुरक्षा बल तैनात किया जाए। केंद्र सरकार ने भी चिंता जताई। विधि एवं न्याय मंत्री ने कहा कि न्यायपालिका की सुरक्षा प्राथमिकता है। मध्य प्रदेश सरकार ने कहा कि वे कोर्ट के निर्देशों का पालन करेंगे। लेकिन विपक्ष ने सरकार को घेरा। उन्होंने कहा कि कानून व्यवस्था ध्वस्त हो गई है। जजों पर हमले इसका प्रमाण हैं।

हाईकोर्ट का यह बयान न्यायिक स्वतंत्रता पर जोर देता है। कोर्ट ने कहा कि जज निष्पक्ष फैसले दें, इसके लिए सुरक्षा जरूरी। अगर जज डरेंगे, तो न्याय प्रभावित होगा। कोर्ट ने उदाहरण दिया कि इंदौर की घटना में वकील को तुरंत गिरफ्तार किया गया। लेकिन ऐसे मामले बढ़ रहे हैं। कोर्ट ने सरकार से पूछा कि हमले क्यों हो रहे और रोकथाम के लिए क्या किया। डीजीपी ने कोर्ट में कहा कि जजों के लिए विशेष हेल्पलाइन शुरू की जाएगी। लेकिन कोर्ट ने कहा कि हेल्पलाइन से पहले सुरक्षा बढ़ाओ।

मध्य प्रदेश में न्याय व्यवस्था पहले से दबाव में है। लंबित मामले लाखों में हैं। जजों की कमी है। ऊपर से सुरक्षा का खतरा। यह सुनवाई एक नया अध्याय खोलेगी। वकील संगठनों ने कहा कि वे कोर्ट के साथ हैं। सरकार को सख्त कानून लाना चाहिए। हमले करने वालों को कड़ी सजा। कोर्ट ने सहमति जताई। जस्टिस चौधरी ने कहा कि न्यायपालिका लोकतंत्र का आधार है। इसे बचाना सबकी जिम्मेदारी। अगली सुनवाई में सरकार की रिपोर्ट पर फैसला होगा। अगर संतोषजनक न हुई, तो कोर्ट हस्तक्षेप करेगा।

यह मामला समाज को सोचने पर मजबूर करता है। जजों को देवता माना जाता है, लेकिन वास्तविकता कड़वी। ग्रामीण जजों को सबसे ज्यादा खतरा। वे अकेले रहते हैं। कोर्ट ने सुझाव दिया कि जजों के आवासों पर सीसीटीवी लगें। पुलिस गश्त बढ़े। सरकार ने कहा कि बजट आवंटित करेंगे। लेकिन अमल कब होगा, यह सवाल है। विपक्ष नेता कमलनाथ ने कहा कि भाजपा सरकार विफल हो गई। जजों की सुरक्षा पर विमर्श जरूरी। सुप्रीम कोर्ट ने भी नोटिस लिया। वे मध्य प्रदेश मामले पर नजर रखेंगे।

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