Political: बिहार में 'चुपके से NRC' लागू कर दिया, अब AIMIM के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने कह दी ये बड़ी बात।
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के अध्यक्ष और हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने 1 जुलाई 2025 को हैदराबाद में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस...
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के अध्यक्ष और हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने 1 जुलाई 2025 को हैदराबाद में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में केंद्र सरकार और चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने दावा किया कि बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों से पहले चुनाव आयोग "चुपके से नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स (NRC)" लागू कर रहा है, जिससे लाखों गरीब और हाशिए पर रहने वाले नागरिकों, विशेष रूप से मुस्लिम समुदाय के लोगों के मतदान के संवैधानिक अधिकार छीने जा सकते हैं। ओवैसी ने आधार कार्ड और मतदाता सूची के सत्यापन की नई प्रक्रिया को "मुसलमानों और दलितों के खिलाफ भेदभावपूर्ण" करार देते हुए इसे संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 का उल्लंघन बताया। इस प्रेस कॉन्फ्रेंस ने देश भर में एक नई बहस छेड़ दी है, जिसमें अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों, मतदाता सत्यापन प्रक्रिया की निष्पक्षता और आधार कार्ड के दुरुपयोग जैसे मुद्दे शामिल हैं।
- प्रेस कॉन्फ्रेंस
हैदराबाद के दरुस्सलाम में AIMIM मुख्यालय में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में ओवैसी ने बिहार में मतदाता सूची के "विशेष गहन पुनरीक्षण" पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग ने जून 2025 में बिहार में मतदाता सूची को अद्यतन करने के लिए एक नई प्रक्रिया शुरू की, जिसमें मतदाताओं को अपने और अपने माता-पिता के जन्म की तारीख और जन्म स्थान को सिद्ध करने के लिए 11 दस्तावेजों में से एक प्रस्तुत करना अनिवार्य किया गया है। विशेष रूप से, 1 जुलाई 1987 से पहले जन्मे लोगों को जन्म प्रमाण पत्र या समकक्ष दस्तावेज, और 1987 से 2004 के बीच जन्मे लोगों को अपने माता-पिता के जन्म प्रमाण पत्र भी प्रस्तुत करने होंगे। ओवैसी ने इसे "NRC का बैकडोर कार्यान्वयन" करार दिया, क्योंकि यह प्रक्रिया विशेष रूप से बिहार के सीमांचल क्षेत्र जैसे गरीब और अल्पसंख्यक-प्रधान क्षेत्रों में लागू की जा रही है, जहां दस्तावेजों की उपलब्धता कम है।
उन्होंने कहा कि बिहार जैसे घनी आबादी वाले और संसाधनों की कमी वाले राज्य में एक महीने के भीतर डोर-टू-डोर सत्यापन पूरा करना असंभव है। ओवैसी ने 1995 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि मतदाता सूची से किसी को हटाने से पहले नोटिस और उचित प्रक्रिया का पालन करना अनिवार्य है। उन्होंने तर्क दिया कि यह नई प्रक्रिया संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करती है, क्योंकि यह गरीब और अशिक्षित नागरिकों, विशेष रूप से मुस्लिम और दलित समुदायों को, जो अक्सर जन्म प्रमाण पत्र जैसे दस्तावेज नहीं रखते, लक्षित करती है।
- आधार कार्ड और भेदभाव का आरोप
ओवैसी ने आधार कार्ड के उपयोग पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि आधार को मतदाता सत्यापन से जोड़ने की प्रक्रिया गोपनीयता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करती है, जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में आधार मामले में अपने फैसले में स्पष्ट किया था। ओवैसी ने कहा कि आधार केवल कल्याणकारी योजनाओं के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है, न कि नागरिकता सत्यापन के लिए। उन्होंने पूछा, "क्या चुनाव आयोग यह मान रहा है कि बिहार के लाखों लोग अवैध प्रवासी हैं? यह मुस्लिम समुदाय के खिलाफ डर और भेदभाव फैलाने की साजिश है।"
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि केंद्र सरकार और बीजेपी इस प्रक्रिया के माध्यम से मुस्लिम समुदाय को मतदाता सूची से हटाने की कोशिश कर रही है ताकि बिहार विधानसभा चुनावों में उनकी राजनीतिक भागीदारी कम हो। ओवैसी ने कहा, "यह संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), अनुच्छेद 15 (धर्म के आधार पर भेदभाव पर रोक) और अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) का खुला उल्लंघन है।"
इस प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद, सोशल मीडिया पर व्यापक प्रतिक्रियाएँ देखने को मिलीं। X पर कई यूजर्स ने ओवैसी के आरोपों का समर्थन करते हुए इसे मुस्लिम और गरीब समुदायों के खिलाफ एक सुनियोजित साजिश बताया। एक यूजर ने लिखा, "चुनाव आयोग की यह प्रक्रिया संविधान को कमजोर करने की कोशिश है। गरीब लोग जो दस्तावेज नहीं रखते, उन्हें मतदान से वंचित किया जा रहा है।" वहीं, कुछ यूजर्स ने इसे ओवैसी की "वोट बैंक राजनीति" का हिस्सा बताया और कहा कि वह हर मुद्दे को सांप्रदायिक रंग दे रहे हैं।
विपक्षी दलों, जैसे कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी), ने भी इस मुद्दे पर अपनी चिंता जताई है। कांग्रेस के एक नेता ने कहा कि बिहार में मतदाता सत्यापन की प्रक्रिया को और पारदर्शी करने की जरूरत है ताकि किसी भी समुदाय को लक्षित न किया जाए। वहीं, बीजेपी ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि यह प्रक्रिया केवल मतदाता सूची को शुद्ध करने के लिए है और इसमें कोई सांप्रदायिक मंशा नहीं है।
- बिहार के सीमांचल क्षेत्र पर प्रभाव
ओवैसी ने विशेष रूप से बिहार के सीमांचल क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित किया, जो मुस्लिम-प्रधान क्षेत्र है और जहाँ बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं के कारण दस्तावेजों का रखरखाव चुनौतीपूर्ण है। उन्होंने कहा कि सीमांचल के लोग पहले से ही सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े हैं, और इस तरह की प्रक्रिया उनके मतदान के अधिकार को और कमजोर करेगी। AIMIM बिहार विधानसभा चुनावों में सीमांचल क्षेत्र में अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश कर रही है, और ओवैसी का यह बयान उनकी रणनीति का हिस्सा भी माना जा रहा है।
असदुद्दीन ओवैसी की प्रेस कॉन्फ्रेंस ने बिहार में मतदाता सत्यापन की प्रक्रिया और आधार कार्ड के उपयोग पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। उनके आरोपों ने अल्पसंख्यक समुदायों के संवैधानिक अधिकारों और मतदान की स्वतंत्रता जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों को फिर से चर्चा में ला दिया है। ओवैसी ने सुप्रीम कोर्ट के 1995 के फैसले का उल्लेख करते हुए कहा कि मतदाता सूची से किसी को हटाने के लिए उचित प्रक्रिया और नोटिस अनिवार्य है। उन्होंने यह भी बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि नागरिकता का निर्धारण केवल कुछ दस्तावेजों के आधार पर नहीं किया जा सकता। इसके अलावा, 2018 के आधार मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आधार के उपयोग को कल्याणकारी योजनाओं तक सीमित रखने का आदेश दिया था, और ओवैसी ने इस फैसले का हवाला देते हुए कहा कि चुनाव आयोग इस आदेश का उल्लंघन कर रहा है।
What's Your Reaction?