Gazipur: डॉ कमलेश राय की पुस्तक ‘हर समय में हँसे धरती’ की समीक्षा
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ मान्धाता राय ने प्रसिद्ध भोजपुरी गीतकार डॉ कमलेश राय की पुस्तक ‘हर समय में हँसे धरती’ की समीक्षा करते हुए इसे विसंगतियों के दौर में मानवीय मूल्यों को बचाने की कवायद बताया
सार:-:
* वरिष्ठ हिन्दी साहित्यकार सम्मान: डॉ मान्धाता राय, डॉ कामेश्वर द्विवेदी, डॉ गजाधर शर्मा गंगेश, डॉ कमलेश राय
* विचार गोष्ठी: हिन्दी की राजभाषा के रूप में चुनौतियाँ
* काव्य गोष्ठी
द प्रेसिडियम स्कूल के तत्त्वावधान में नगर के वरिष्ठ और नवोदित रचनाकार अपनी तीसरी मासिक संगोष्ठी के लिए आमघाट स्थित सभागार में मिले. इस संगोष्ठी में चार सत्र थे, पुस्तक चर्चा, वरिष्ठ साहित्यकार सम्मान, विचार गोष्ठी और काव्य गोष्ठी. संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार डॉ मान्धाता राय ने प्रसिद्ध भोजपुरी गीतकार डॉ कमलेश राय की पुस्तक ‘हर समय में हँसे धरती’ की समीक्षा करते हुए इसे विसंगतियों के दौर में मानवीय मूल्यों को बचाने की कवायद बताया. असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ निरंजन यादव ने इस पुस्तक को आगामी भोजपुरी कविताओं के मूल्यांकन के लिए मानक निर्धारित करने वाली कृति बताया. समालोचक साहित्यकार आचार्य शिखा तिवारी ने इस पुस्तक के व्यंग्यात्मक, नारीवादी और सामाजिक सरोकारों को रेखांकित करते हुए इसे गीतकार की ही भांति सकारात्मक बताया. गीतकार डॉ कमलेश राय ने रचना प्रक्रिया पर बात करते हुए कहा कि मेरी कोई रचना प्रक्रिया नहीं है, जब किसी विषय को लेकर मैं व्यग्र हो जाता हूँ तो रचना स्वतः निकल पड़ती है.
द्वितीय सत्र में सेवानिवृत्ति के बाद भी लगातार साहित्य सृजन कर रहे वरिष्ठ साहित्यकारों को रचनाकार संघ द्वारा सम्मानित किया गया. इसमें २४ गंभीर पुस्तकों के सम्पादक लेखक डॉ मान्धाता राय, भारतेंदु हरिश्चंद्र एकांकी पुरस्कार से सम्मानित डॉ गजाधर शर्मा गंगेश, छांदस चेतना के कवि डॉ कामेश्वर द्विवेदी और अंतर्राष्ट्रीय भोजपुरी गीतकार डॉ कमलेश राय जी को अंगवस्त्रम और पुस्तकें देकर सम्मानित किया गया. संयोजिका पूजा राय ने कहा कि पुस्तकें ही सही मायने में स्मृति चिह्न हैं क्योंकि इनके शब्द ही स्मृतियों में बने रहते हैं. सम्मानित करने वालों में नगर के गणमान्य नागरिक और समाजसेवी अमरनाथ तिवारी अमर, शिक्षिका शिप्रा श्रीवास्तव, अध्यापक सीताराम राय और आचार्य अजय राय जी थे.
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तृतीय सत्र में ‘हिन्दी की राजभाषा के रूप में चुनौतियाँ’ विषय पर विचार रखते हुए सेवानिवृत्त बैंकर और प्रखर वक्ता डॉ महेश चन्द्र लाल जी ने कहा कि सबसे बड़ी चुनौती हम सभी नागरिक स्वयं हैं क्योंकि हम में से ही लोग प्रशासन, राजनीति, विद्यालय इत्यादि में जाकर हिन्दी की उपेक्षा करते हैं. अंग्रेजी पढ़ी जानी चाहिए लेकिन यदि अंग्रेजी को दिया जाने वाला सम्मान कुछ दक्षिण भारतीय भाषाओँ को मिला रहता तो दक्षिण भारतीय भी हिन्दी भाषा का सम्मान करते. इस विषय पर अंतिम वक्तव्य देते हुए वरिष्ठ सेवानिवृत्त प्रवक्ता डॉ अम्बिका प्रसाद पाण्डेय जी ने कहा कि संविधान सभा में भी हिन्दी को लेकर काफी लंबी बहस के बाद इसे राजभाषा के रूप में अपनाया गया और आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया. हिन्दी का, रोजगार से न जुड़ पाना, भूमंडलीकरण के दौर में चुनौतियों का सामना न कर पाना, हिंदी और हिन्दी भाषियों के लिए मुश्किलें पैदा कर रहा है.
चतुर्थ और अंतिम सत्र में कवयित्री पूजा राय ने ये पंक्तियाँ सुनाकर लोगों को सोचने पर विवश किया, “कितनी ठहर बची है इस भागमभाग के बीच/ नहीं बची तो बचा लेना है/ थोड़ी मिट्टी/ थोड़ी धूप/ थोड़ा बदल थोड़ा पानी/ थोड़ा पहाड़ खुद में भी.” कवयित्री रिम्पू सिंह जी ने लोगों से संशय से दूर रहने का आह्वान किया, “संशय से संदेह नीपजे करे आस्थाहीन./ जो शक को पोषित करे/ रहे प्रगति विहीन.” कवि आशुतोष श्री ने प्रश्न उठाया, “जो करने को आतुर है किसी का परिहास./ क्या ऐसे साहित्यकार से बची है सृजन की कोई आस?” व्यंग्य कवि विजय मधुरेश ने कहा, “झील नदियाँ मेघ सब देखो तरसते देश में./ सिवा नेता के हमारे कौन हंसता देश में.” कवि दिनेश चन्द्र शर्मा ने कहा, “आओ पहले तूफानों से निपट लें/ फिर बैठ कर अपने मुद्दे सुलझाएंगे.” आलोचक माधव कृष्ण ने असंवैधानिक रूप से बाबरी ढांचा गिराए जाने के बाद पैदा हुए विद्वेष पर कहा, “तुम्हारी नफरतों का द्वेष का आधार कुछ भी हो/ विषैली रंजिशों का ऐतिहासिक भार कुछ भी हो/ यही सच है भरोसा मोहब्बत बलिदान लेती है/ हो बिस्मिल या कि फिर अशफाक इम्तेहान लेती है.’
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कवयित्री शीला सिंह जी ने कहा, ”तप त्याग और शौर्य की मूरत हैं नारियां./ बलिदान और सब्र की सूरत हैं नारियां.” कवि हरिशंकर पाण्डेय ने यह गीत सुनाकर सभी को भावुक कर दिया कि, “तुम सफलता की सीढी तो हो चढ़ रहे/ इस सफलता में पर लापता है पिता /एक बेबस पिता हाय बेबस पिता.” कवयित्री शालिनी श्रीवास्तव ने कहा, “तू सरोजिनी बन कोकिला/ या लता सं गायिका/ बन ऊषा सी धाविका/ कल्पना बन नभ में छा.” कवि गंगेश जी ने गाया, “छाई है हवा उन्मादी/ कि कैसे बचे देश की आज़ादी.” कवि कामेश्वर द्विवेदी ने पढ़ा, “हर कदम कंटकों की बिछी जाल है/ बंधुवर फूल बनकर बिखर जाइए.” गीतकार डॉ कमलेश राय ने सत्र का अंतिम गीत गाते हुए कहा कि, “हम अधर पर गीत लेके/ राग सिरजीं रीत सिरजीं/ गीत त सिरजे समय के/ हम समय क गीत सिरजीं.” धन्यवाद प्रस्ताव रखते हुए वरिष्ठ अर्थशास्त्री डॉ श्रीकांत पाण्डेय ने कहा कि ऐसी गोष्ठियों और उत्साही प्रतिभागिता से हिन्दी का उपवन गाजीपुर में हमेशा हरा भरा रहेगा. सभा का संचालन लेखक विचारक डॉ माधव कृष्ण ने किया।
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