दिल्ली की जहरीली हवा: AQI 350 से ऊपर, 80% लोगों को सांस की तकलीफ, नीति आयोग अधिकारी को स्टेज-4 फेफड़े का कैंसर हुआ। 

दिल्ली में सर्द हवाओं के साथ-साथ प्रदूषण का कहर भी बढ़ता जा रहा है। राजधानी के ज्यादातर इलाकों में वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) 300 से

Nov 29, 2025 - 12:58
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दिल्ली की जहरीली हवा: AQI 350 से ऊपर, 80% लोगों को सांस की तकलीफ, नीति आयोग अधिकारी को स्टेज-4 फेफड़े का कैंसर हुआ। 
दिल्ली की जहरीली हवा: AQI 350 से ऊपर, 80% लोगों को सांस की तकलीफ, नीति आयोग अधिकारी को स्टेज-4 फेफड़े का कैंसर हुआ। 

दिल्ली में सर्द हवाओं के साथ-साथ प्रदूषण का कहर भी बढ़ता जा रहा है। राजधानी के ज्यादातर इलाकों में वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) 300 से 400 के बीच बना हुआ है, जो 'बहुत खराब' श्रेणी में आता है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के अनुसार, 29 नवंबर 2025 की सुबह दिल्ली का औसत AQI 338 दर्ज किया गया, जबकि कुछ जगहों जैसे आनंद विहार और धौला कुआं पर यह 346 तक पहुंच गया। भारतीय मौसम विभाग और एयर क्वालिटी अर्ली वार्निंग सिस्टम के अनुसार, अगले हफ्ते भी हवा में सुधार की संभावना कम है, क्योंकि ठंडी हवाएं और कम गति वाली पवनें प्रदूषकों को फंसाए रख रही हैं। एक हालिया सर्वे में पाया गया कि दिल्ली-एनसीआर के 80 प्रतिशत से अधिक निवासी लगातार खांसी, थकान और सांस लेने में जलन जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं। सबसे चिंताजनक यह है कि वायु प्रदूषण अब जानलेवा साबित हो रहा है। नीति आयोग की 35 वर्षीय अधिकारी उर्वशी प्रसाद को बिना धूम्रपान के स्टेज-4 फेफड़ों का कैंसर हो गया, जिसके पीछे डॉक्टरों ने दिल्ली की जहरीली हवा को मुख्य कारण बताया। विश्वसनीय स्रोतों जैसे द हिंदू, इंडियन एक्सप्रेस, इंडिया टुडे और स्माइटन पल्सएआई सर्वे से प्राप्त जानकारी के अनुसार, यह संकट न केवल स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है, बल्कि अर्थव्यवस्था और दैनिक जीवन को भी बाधित कर रहा है।

दिल्ली का वायु प्रदूषण अब एक मौसमी समस्या नहीं, बल्कि साल भर की चुनौती बन चुका है। नवंबर महीने में आधे से ज्यादा दिन 'बहुत खराब' या 'गंभीर' श्रेणी में बीते हैं। CPCB के डेटा से पता चलता है कि 28 नवंबर को AQI 369 था, जो अगले दिन थोड़ा सुधरकर 338 हो गया, लेकिन फिर भी यह 301-400 के दायरे में है। कुछ निजी मॉनिटरिंग एजेंसी जैसे AQI.in ने सुबह 7 बजे 296 दर्ज किया, लेकिन दोपहर तक यह बढ़कर 341 हो गया। इंडिगो एयरलाइंस और अन्य सेवाओं पर असर पड़ा है, जहां उड़ानें प्रभावित हुईं। हिंदू बिजनेसलाइन के अनुसार, इंडिया गेट और कर्तव्य पथ जैसे इलाकों में घना स्मॉग छाया हुआ है, जहां AQI 346 तक पहुंचा। PM2.5 और PM10 कण मुख्य प्रदूषक हैं, जो फेफड़ों में जाकर सांस की बीमारियां पैदा करते हैं। सर्दियों में पराली जलाना, वाहनों का धुआं, निर्माण कार्य और फैक्ट्रियों से निकलने वाला धुआं इसकी मुख्य वजहें हैं। ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान (GRAP) के तहत स्टेज-3 के प्रतिबंध हटा लिए गए हैं, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि इससे ज्यादा फायदा नहीं हुआ। अगले कुछ दिनों में हवा स्थिर रहेगी, जिससे प्रदूषण और बढ़ सकता है।

सर्वेक्षणों से साफ है कि प्रदूषण का असर आम जनता पर गहरा पड़ रहा है। स्माइटन पल्सएआई के हालिया सर्वे में 80 प्रतिशत से ज्यादा दिल्ली-एनसीआर निवासियों ने बताया कि वे प्रदूषित हवा के कारण लगातार स्वास्थ्य समस्याओं से परेशान हैं। इनमें क्रॉनिक खांसी, गंभीर थकान, सांस में जलन, सिरदर्द और आंखों में खुजली शामिल हैं। 68 प्रतिशत लोगों ने मेडिकल मदद ली, जबकि 85 प्रतिशत ने बताया कि इलाज के खर्चे बढ़ गए हैं। ईटी हेल्थवर्ल्ड के अनुसार, सर्वे में शामिल लोगों में से 79.8 प्रतिशत दिल्ली छोड़ने पर विचार कर रहे हैं, जिनमें 33.6 प्रतिशत गंभीरता से प्लानिंग कर रहे हैं। पहाड़ी इलाके, छोटे शहर या दिल्ली से बाहर के स्थान पसंद किए जा रहे हैं। लोकल सर्कल्स के एक अन्य सर्वे में पाया गया कि चार में से तीन परिवारों में कम से कम एक सदस्य बीमार है, जिसमें सांस लेने में तकलीफ, गले में खराश और नाक बंद होना आम लक्षण हैं। ये समस्याएं बच्चों, बुजुर्गों और हृदय रोगियों के लिए ज्यादा खतरनाक हैं। डॉक्टरों का कहना है कि प्रदूषण से H3N2 जैसे वायरल संक्रमण भी बढ़ रहे हैं, जिससे सर्दी-जुकाम के मामले दोगुने हो गए।

सबसे दुखद यह है कि प्रदूषण अब कैंसर जैसी घातक बीमारियों को जन्म दे रहा है। नीति आयोग की पूर्व निदेशक उर्वशी प्रसाद का मामला इसका जीता-जागता उदाहरण है। 35 वर्षीय उर्वशी, जो कभी धूम्रपान नहीं करतीं और स्वस्थ जीवन जीती रहीं, उन्हें स्टेज-4 फेफड़ों का कैंसर हो गया। इंडिया टुडे को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा, 'मैंने कभी सिगरेट नहीं पी, न ही सेकंड-हैंड स्मोक का सामना किया। फिर भी दिल्ली की हवा ने मुझे यह बीमारी दी।' सर गंगा राम अस्पताल के चेस्ट सर्जरी सेंटर की 30 वर्षीय स्टडी से पता चलता है कि 1998 में 90 प्रतिशत फेफड़े के कैंसर मरीज धूम्रपान करने वाले थे, लेकिन 2018 तक यह आंकड़ा उलट गया। अब 50-70 प्रतिशत मरीज नॉन-स्मोकर हैं। 2015 में 63,700 नए मामले थे, जो 2025 में बढ़कर 81,200 हो गए। न्यूजटक और आज तक के अनुसार, विशेषज्ञों ने प्रदूषण को मुख्य जिम्मेदार ठहराया। PM2.5 कण फेफड़ों में जाकर डीएनए को नुकसान पहुंचाते हैं, जिससे कैंसर का खतरा 9 प्रतिशत तक बढ़ जाता है। उर्वशी ने चेतावनी दी कि लंग कैंसर अब स्मोकरों की बीमारी नहीं, बल्कि सांस लेने वालों की हो गई है।

वायु प्रदूषण के स्रोत कई हैं। दिल्ली में वाहनों से 30 प्रतिशत, पराली जलाने से 20 प्रतिशत और निर्माण से 15 प्रतिशत प्रदूषण आता है। क्विंट के अनुसार, यह 'ब्रीदर्स डिजीज' बन चुका है। साइंटिफिक रिपोर्ट्स में कहा गया कि AQI बढ़ने से फेफड़े के कैंसर की मौतें 15-20 प्रतिशत बढ़ सकती हैं। दिल्ली सरकार ने GRAP के तहत निर्माण प्रतिबंध, ऑड-ईवन स्कीम और वाटर स्प्रिंकलर्स लगाए हैं, लेकिन पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा कि 2025-26 तक 40 प्रतिशत कमी का लक्ष्य है। फिर भी, एनजीओ और विशेषज्ञों का मानना है कि पड़ोसी राज्यों के साथ समन्वय जरूरी है। हेल्थ पॉलिसी वॉच के अनुसार, PM2.5 का 10 माइक्रोग्राम बढ़ना कैंसर जोखिम को 9 प्रतिशत बढ़ाता है, जबकि दिल्ली का औसत 105 माइक्रोग्राम है।

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