मसूरी में अत्याधुनिक भूभौतिकीय वेधशाला का शुभारंभ, हिमालयी आपदा प्रबंधन और शोध को मिलेगा मजबूत आधार।

हिमालयी क्षेत्र की भूगर्भीय गतिविधियों को समझने और पहाड़ी इलाकों में आपदा प्रबंधन को वैज्ञानिक आधार देने की दिशा में मसूरी एक महत्वपूर्ण केंद्र बनने

Nov 21, 2025 - 14:39
Nov 21, 2025 - 14:42
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मसूरी में अत्याधुनिक भूभौतिकीय वेधशाला का शुभारंभ, हिमालयी आपदा प्रबंधन और शोध को मिलेगा मजबूत आधार।
मसूरी में अत्याधुनिक भूभौतिकीय वेधशाला का शुभारंभ, हिमालयी आपदा प्रबंधन और शोध को मिलेगा मजबूत आधार।

रिपोर्टर : सुनील सोनकर

मसूरी। हिमालयी क्षेत्र की भूगर्भीय गतिविधियों को समझने और पहाड़ी इलाकों में आपदा प्रबंधन को वैज्ञानिक आधार देने की दिशा में मसूरी एक महत्वपूर्ण केंद्र बनने जा रहा है। मसूरी लंढौर रोड स्थित सर्वे ऑफ इंडिया कैंपस में भारतीय भूचुंबकत्व संस्थान (IIG) ने बहुआयामी भूभौतिकीय वेधशाला (MPGO) का शिलान्यास किया।

वेधशाला का शिलान्यास डॉ. वी.एम. तिवारी, निदेशक CSIR–NEIST ने किया, जबकि कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो. ए.पी. डिमरी, निदेशक IIG ने की। देश–विदेश के कई वरिष्ठ वैज्ञानिक इस मौके पर उपस्थित रहे।

हिमालयी क्षेत्र की रियल–टाइम निगरानी में मिलेंगे फायदे डॉ. तिवारी ने बताया कि हिमालय दुनिया का सबसे युवा और सक्रिय पर्वत तंत्र है, जहां भूकंप और भूस्खलन जैसी घटनाएं अक्सर होती रहती हैं। वेधशाला के माध्यम से भूमिगत हलचलों की रियल–टाइम निगरानीभूकंपीय तरंगों का सटीक रिकॉर्ड,फॉल्ट लाइनों की गतिविधियों का अध्ययन ,पहले से अधिक वैज्ञानिक ढंग से संभव हो सकेगा। उन्होंने कहा कि यह वेधशाला मल्टी–पैरामीट्रिक सिस्टम से लैस होगी, जिसमें भूकंपीय कंपन, भू–चुंबकीय परिवर्तन, वायुमंडलीय दबाव, भूमि के झुकाव व तनाव और विद्युत–चुंबकीय संकेतों का डेटा एक साथ मिलेगा। यह दीर्घकालिक शोध के लिए बेहद उपयोगी साबित होगा।

भूकंप पूर्व संकेतों की पहचान में मदद
डॉ. तिवारी ने बताया कि MPGO सूक्ष्म भू–गतिविधियों, चट्टानों में तनाव परिवर्तन और भू–चुंबकीय गड़बड़ियों का पता लगाकर वैज्ञानिकों को महत्वपूर्ण संकेत देगी। इससे भूकंप पूर्व चेतावनी प्रणाली पर चल रहे अनुसंधान को मजबूती मिलेगी।

आपदा प्रबंधन को मिलेगा वैज्ञानिक आधार
उन्होंने बताया कि भूस्खलन, बादल फटना और पहाड़ी ढलानों की अस्थिरता जैसे जोखिमों का सटीक आकलन करने में यह वेधशाला अहम भूमिका निभाएगी।
इससे—जोखिम मानचित्रण,संवेदनशील क्षेत्रों की पहचान,अलर्ट सिस्टम और राहत–बचाव रणनीतियां और मजबूत होंगी।

राष्ट्रीय–अंतरराष्ट्रीय शोध को मिलेगा नया मंच
प्रो. डिमरी ने कहा कि मसूरी की यह वेधशाला IIG, ISRO, IMD, वाडिया इंस्टीट्यूट, ARIES, DRDO सहित कई भारतीय और विदेशी संस्थानों को एक मंच पर लाएगी।
यहां प्राप्त डेटा अंतरिक्ष–पृथ्वी संबंधी शोध, GPS सिग्नलों पर प्रभाव और अंतरिक्ष मौसम जैसे क्षेत्रों में नए आयाम खोलेगा।

स्थानीय भूजल और पर्यावरण अध्ययन में भी मदद
वेधशाला का डेटा पर्वतीय क्षेत्रों में जल स्रोतों, भूजल प्रवाह, चट्टानों की स्थिरता और भूस्खलन संभावित स्थानों के वैज्ञानिक अध्ययन में भी महत्वपूर्ण योगदान देगा।

कार्यक्रम में ISRO, IMD, DST, DRDO तथा विदेशी विश्वविद्यालयों के विशेषज्ञों ने भाग लिया और इसे हिमालयी क्षेत्र के लिए अत्यावश्यक परियोजना बताया।

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