Special Article-  बढ़ता विवाह विच्छेद: रिश्तों में दरार या बदलती सामाजिक धारणा। 

विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में, जहाँ महिलाएँ आर्थिक रूप से स्वतंत्र हो रही हैं और पारंपरिक परिवार व्यवस्था में बदलाव आ रहा है, तलाक के मामले...

Mar 21, 2025 - 11:48
Mar 21, 2025 - 11:57
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Special Article-  बढ़ता विवाह विच्छेद: रिश्तों में दरार या बदलती सामाजिक धारणा। 

लेखक- डॉ. कौशलेंद्र विक्रम सिंह

Special Article: हिंदू विवाह परंपरागत रूप से एक पवित्र बंधन माना जाता रहा है, जो केवल दो व्यक्तियों के बीच का नहीं, बल्कि दो परिवारों का सामाजिक-सांस्कृतिक गठबंधन भी होता है। परंतु आधुनिक समय में तलाक की बढ़ती घटनाओं ने विवाह संस्था की स्थायित्वशीलता पर प्रश्नचिह्न लगा दिया है। क्या हिंदू विवाह व्यवस्था वास्तव में संकट में है, या यह केवल सामाजिक परिवर्तन की एक स्वाभाविक प्रक्रिया है? इस लेख में हम इसी प्रश्न का विश्लेषण करेंगे। हालांकि पश्चिमी देशों की तुलना में भारत में तलाक की दर अभी भी कम है, लेकिन पिछले कुछ दशकों में यह संख्या लगातार बढ़ी है।

विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में, जहाँ महिलाएँ आर्थिक रूप से स्वतंत्र हो रही हैं और पारंपरिक परिवार व्यवस्था में बदलाव आ रहा है, तलाक के मामले अधिक देखने को मिल रहे हैं। महिलाएँ अब केवल घरेलू भूमिका तक सीमित नहीं हैं। वे आत्मनिर्भर हैं और विवाह में किसी प्रकार के शोषण को सहने के बजाय अलग होने का निर्णय लेने में सक्षम हो रही हैं। उच्च शिक्षा और कानूनी जागरूकता ने महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति सचेत किया है। पारंपरिक संयुक्त परिवार प्रणाली टूटने से पति-पत्नी के बीच मध्यस्थता करने वाले बुजुर्गों की भूमिका सीमित हो गई है, जिससे विवाद अधिक जटिल हो रहे हैं। आधुनिक समाज में व्यक्तिगत स्वतंत्रता, करियर, मानसिक शांति और समानता को अधिक महत्व दिया जाने लगा है, जिससे रिश्तों में सहनशीलता का स्तर घट रहा है। डिजिटल संचार ने रिश्तों को प्रभावित किया है। सोशल मीडिया, डेटिंग ऐप्स और बढ़ती डिजिटल निर्भरता बढ़ते विवाहेत्तर संबंध ने रिश्तों में असुरक्षा और संदेह को जन्म दिया है।

पहले तलाक लेना कठिन था, लेकिन अब कानूनी प्रक्रियाएँ सरल होने से लोग इसे विकल्प के रूप में देखने लगे हैं। भारत में वैवाहिक परामर्श (Marriage Counseling) की प्रभावी व्यवस्था का अभाव भी पति-पत्नी के बीच तनाव और तलाक के बढ़ते मामलों का एक महत्वपूर्ण कारण हो सकता है। पश्चिमी देशों में काउंसिलिंग को रिश्तों को बचाने और बेहतर बनाने के लिए एक सामान्य प्रक्रिया माना जाता है, बल्कि लोग बाकायदा बेझिझक उनके पास जाते हैं, लेकिन भारत में अब भी इसे कम ही अपनाया जाता है। भारत में लोग अक्सर काउंसिलिंग को केवल मानसिक रोगों से जोड़कर देखते हैं, जिससे वैवाहिक समस्याओं के लिए इसका उपयोग बहुत कम होता है। अधिकांश जोड़े और परिवार काउंसिलिंग को अंतिम विकल्प मानते हैं, जबकि यह समस्या की शुरुआत में ही मददगार साबित हो सकती है। भारत में प्रशिक्षित मैरिज काउंसलरों की संख्या बहुत कम है, जो काउंसलर उपलब्ध हैं, वे अधिकतर महानगरों तक सीमित हैं, जिससे व्यापक स्तर पर लोगों तक इन सेवाओं की पहुँच नहीं हो पाती।
अक्सर दंपति की समस्याओं को हल करने में परिवार और रिश्तेदार हस्तक्षेप करते हैं, ऐसे मामलों में कई बार रिश्तेदार अपने पक्ष की तरफदारी करने लग जाते हैं, वे तटस्थ नहीं रह पाते, जिससे समस्या हल होने के बजाय और जटिल हो जाती है। हमारे समाज में यह धारणा बनी हुई है कि वैवाहिक समस्याओं का हल परिवार के भीतर ही होना चाहिए, जबकि पेशेवर काउंसलिंग अधिक वैज्ञानिक और व्यावहारिक समाधान प्रदान कर सकती है। पुरुष विशेष रूप से काउंसिलिंग के लिए जाने में झिझकते हैं क्योंकि इसे कमजोरी का प्रतीक समझा जाता है। महिलाएँ भी अक्सर समाज और परिवार के डर से इस प्रक्रिया को अपनाने में हिचकिचाती हैं। 

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अदालतों में पारिवारिक मामलों से जुड़े परामर्श सेवाएँ (Family Counseling Services) मौजूद हैं, लेकिन वे अक्सर प्रभावी नहीं होतीं क्योंकि वे केवल कानूनी समाधान पर ध्यान देती हैं, भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक पहलुओं को उतना महत्व नहीं दे पातीं। एमिल दुर्खीम और टाल्कॉट पारसन्स जैसे समाजशास्त्रियों के अनुसार, विवाह समाज का एक महत्वपूर्ण संस्थान है, जो सामाजिक स्थिरता बनाए रखता है। तलाक की बढ़ती संख्या सामाजिक अस्थिरता (Anomie) का संकेत दे सकती है, जिससे परिवार संरचना प्रभावित हो सकती है।

अभी यह कहना कि हिंदू विवाह व्यवस्था संकट में है, शायद अतिशयोक्ति होगी। इसे एक सामाजिक परिवर्तन के रूप में देखना अधिक उपयुक्त होगा। विवाह की परिभाषा, अपेक्षाएँ और गतिशीलता बदल रही हैं, लेकिन यह संस्था समाप्त नहीं हो रही है। पहले तलाक को सामाजिक रूप से कलंकित माना जाता था, लेकिन अब इसे व्यक्तिगत अधिकार और स्वतंत्रता के रूप में देखा जाने लगा है। तलाक के बावजूद लोग पुनर्विवाह कर रहे हैं या वैकल्पिक जीवनशैली अपना रहे हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि विवाह संस्था स्वयं नष्ट नहीं हो रही, बल्कि नए रूपों में ढल रही है।

तलाक की बढ़ती संख्या यह दर्शाती है कि भारतीय समाज विवाह को लेकर अधिक यथार्थवादी और व्यावहारिक हो रहा है। हिंदू विवाह व्यवस्था संकट में नहीं है, बल्कि यह एक संक्रमण काल से गुजर रही है, जहाँ परंपरागत और आधुनिक विचारों के बीच संघर्ष देखने को मिल रहा है। इसका भविष्य इस पर निर्भर करेगा कि समाज किस प्रकार विवाह को संतुलित और समावेशी दृष्टिकोण से अपनाता है।

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भारत में विवाह विच्छेद रोकने के लिए कई सामाजिक, भावनात्मक, और कानूनी उपाय किए जा सकते हैं। कुछ सुझाव इस प्रकार हैं:

  1. विवाह पूर्व परामर्श (Premarital Counseling) को बढ़ावा दिया जाए ताकि जोड़े विवाह की वास्तविकताओं को समझ सकें। एक-दूसरे की अपेक्षाओं, पारिवारिक पृष्ठभूमि और मूल्यों को जानने का अवसर मिले।
  2. पति-पत्नी के बीच खुलकर बातचीत करने की आदत डालनी चाहिए। समस्या होने पर संवाद के माध्यम से समाधान निकालने का प्रयास करना चाहिए। ईगो (अहंकार) को दूर रखकर सहयोगी दृष्टिकोण अपनाएँ।
  3. परिवार के बुजुर्गों या परामर्शदाताओं की मध्यस्थता से रिश्ते को बचाने की कोशिश की जाए।
    यदि कोई समस्या गंभीर हो, तो परिवार और मित्रों से सलाह लें लेकिन हस्तक्षेप सीमा में रहे।
  4. पति-पत्नी दोनों को एक-दूसरे की इच्छाओं, करियर, और व्यक्तिगत स्थान (Personal Space) का सम्मान करना चाहिए। लैंगिक समानता को बढ़ावा दिया जाए ताकि महिलाओं और पुरुषों को समान अधिकार और स्वतंत्रता मिले।
  5. विवाह विच्छेद को अंतिम विकल्प के रूप में देखा जाए, जब सभी समाधान विफल हो जाएँ।
  6. रिश्तों में उतार-चढ़ाव को स्वीकारें और जल्दबाजी में निर्णय न लें। छोटी-मोटी बातों को नज़रअंदाज करना सीखें और बड़े मुद्दों पर संयम से काम लें।
  7. रिश्ते में नयापन बनाए रखने के लिए यात्रा, एक-दूसरे के साथ समय बिताना, और विशेष अवसरों को मनाना जरूरी है।
  8. मनोवैज्ञानिक या मैरिज काउंसलर से सलाह लेने में झिझक न करें।
  9. भारतीय समाज में विवाह को एक पवित्र बंधन माना जाता है, इसलिए इसे निभाने के लिए सांस्कृतिक और धार्मिक मूल्यों को समझें और अपनाएँ।
  10. भावनात्मक और मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखें। तनाव, अवसाद या गुस्से की स्थिति में संयम रखें और जरूरत पड़ने पर मनोचिकित्सक से सलाह लें। एक-दूसरे के मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता दें और भावनात्मक समर्थन दे।

इन उपायों को अपनाकर विवाह विच्छेद की दर को कम किया जा सकता है और सुखद वैवाहिक जीवन को बनाए रखा जा सकता है।

डॉ. कौशलेंद्र विक्रम सिंह
समाजशास्त्री और लेखक (अनचाहे अंतराल) 
राजकीय महाविद्यालय पिहानी, हरदोई

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