नोएडा आईटी कंपनी के सीईओ का विवादित बयान- कॉफी मशीन की मांग पर तंज कसते हुए बोले- 50 हजार में दो इंटर्न खरीद लूंगा।
नोएडा की एक आईटी कंपनी में हाल ही में एक अनौपचारिक बातचीत ने सोशल मीडिया पर हंगामा मचा दिया है। एक कर्मचारी ने रेडिट पर अपनी कंपनी के सीईओ
नोएडा की एक आईटी कंपनी में हाल ही में एक अनौपचारिक बातचीत ने सोशल मीडिया पर हंगामा मचा दिया है। एक कर्मचारी ने रेडिट पर अपनी कंपनी के सीईओ के विवादित बयान को साझा किया, जिसमें उन्होंने कॉफी मशीन खरीदने की साधारण मांग पर इंटर्न्स को 'खरीदने' वाली टिप्पणी की। कर्मचारी के अनुसार, कंपनी में निम्न स्तर के टियर-1 और अच्छे टियर-2 कॉलेजों से आए नए इंटर्न्स की एक बैच हाल ही में शामिल हुई थी। ये युवा अभी ऑफिस के माहौल से परिचित भी नहीं हो पाए थे कि एक साधारण सुझाव ने पूरे संगठन को चर्चा में ला दिया। कर्मचारी ने सीईओ से पूछा कि क्या ऑफिस में एक अच्छी कॉफी मशीन लगवाई जा सकती है, जिसकी कीमत लगभग 50 हजार रुपये बताई गई। इस पर सीईओ ने तंज कसते हुए कहा, "50 हजार में तो मैं दो इंटर्न खरीद सकता हूं, कॉफी मशीन पर इतना खर्च क्यों करूं?" यह बयान रेडिट पर पोस्ट होते ही वायरल हो गया और लोगों ने कंपनी की वर्क कल्चर पर सवाल उठाने शुरू कर दिए।
यह घटना 16 नवंबर 2025 को रेडिट के r/india सबरेडिट पर पोस्ट की गई। पोस्ट का कैप्शन था, "सीईओ इंटर्न्स खरीदता है कॉफी मशीन के बजाय"। कर्मचारी ने विस्तार से बताया कि इंटर्न्स ज्यादातर टियर-2 कॉलेजों जैसे जयपी नोएडा, थापर या अन्य राज्य स्तरीय इंजीनियरिंग संस्थानों से आए थे। ये युवा उत्साहित थे और ऑफिस में अपनी पहली नौकरी के अनुभव को जी रहे थे। कर्मचारी ने सोचा कि कॉफी मशीन से कर्मचारियों का मनोबल बढ़ेगा, खासकर लंबे काम के घंटों के बीच। लेकिन सीईओ का जवाब सुनकर सब स्तब्ध रह गए। कर्मचारी ने पोस्ट में लिखा कि यह बयान सुनकर इंटर्न्स का उत्साह ठंडा पड़ गया। वे सोचने लगे कि क्या वे सिर्फ सस्ते श्रम के रूप में देखे जा रहे हैं। पोस्ट में एक स्क्रीनशॉट भी शेयर किया गया, जिसमें बातचीत का उल्लेख था।
रेडिट पर इस पोस्ट को हजारों व्यूज और सैकड़ों कमेंट्स मिले। कई यूजर्स ने इसे कॉर्पोरेट दुनिया की कड़वी सच्चाई बताया। एक यूजर ने लिखा, "यह दिखाता है कि कंपनियां कर्मचारियों को मशीनों से भी सस्ता मानती हैं। इंटर्न्स को तो सीखने का मौका मिलना चाहिए, न कि 'खरीदे गए' सामान की तरह इस्तेमाल।" दूसरे ने कहा, "टियर-2 कॉलेजों के छात्र पहले से ही संघर्ष करते हैं, ऐसे बयान उनके मनोबल को तोड़ देते हैं।" कुछ ने हंसते हुए मीम्स शेयर किए, जैसे एक इंटर्न को कॉफी मग के साथ चेन से बांधा हुआ। लेकिन ज्यादातर कमेंट्स गंभीर थे। एक पूर्व कर्मचारी ने लिखा कि उन्होंने ऐसी कई कंपनियों में काम किया जहां इंटर्न्स को न्यूनतम वेतन पर रखा जाता है और कोई ट्रेनिंग नहीं दी जाती। हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, यह पोस्ट 24 घंटों में 5 हजार से ज्यादा अपवोट्स पा चुकी थी। आजतक ने भी इसे कवर किया, जहां विशेषज्ञों ने कहा कि ऐसे बयान वर्कप्लेस टॉक्सिसिटी को बढ़ावा देते हैं।
यह बयान नोएडा की आईटी इंडस्ट्री की उस मानसिकता को उजागर करता है, जहां स्टार्टअप्स और मिड-साइज कंपनियां लागत कटौती के नाम पर युवाओं का शोषण करती हैं। नोएडा भारत का एक बड़ा आईटी हब है, जहां हजारों इंजीनियरिंग ग्रेजुएट्स हर साल नौकरी तलाशते हैं। टियर-1 कॉलेज जैसे आईआईटी या एनआईटी से आने वाले छात्रों को तो अच्छे पैकेज मिल जाते हैं, लेकिन टियर-2 और टियर-3 से आने वाले संघर्ष करते हैं। रेडिट के r/developersIndia सबरेडिट पर अक्सर ऐसी चर्चाएं होती हैं, जहां यूजर्स बताते हैं कि इंटर्नशिप में 5-10 हजार रुपये स्टाइपेंड मिलता है, जो कॉफी मशीन से भी कम होता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2025 में नोएडा में 40 प्रतिशत इंटर्न्स बिना किसी वेतन के काम करते हैं। सीईओ का बयान इसी प्रवृत्ति को मजाक में पेश करता है, जो युवाओं को हतोत्साहित करता है।
कंपनी का नाम पोस्ट में गुप्त रखा गया है, लेकिन कर्मचारी ने बताया कि यह एक मिड-साइज आईटी सर्विस फर्म है, जो सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट और कंसल्टिंग में काम करती है। ऐसे संगठनों में इंटर्न्स को अक्सर कोडिंग, टेस्टिंग या डेटा एंट्री जैसे काम सौंपे जाते हैं। लेकिन ट्रेनिंग की कमी और लंबे घंटे उन्हें थका देते हैं। एक सर्वे के अनुसार, 60 प्रतिशत इंटर्न्स पहली ही नौकरी में असंतुष्ट होकर छोड़ देते हैं। इस घटना के बाद रेडिट पर कई यूजर्स ने अपनी कहानियां शेयर कीं। एक ने लिखा, "मेरी कंपनी में सीईओ ने कहा था कि फ्री चाय बंद क्योंकि यह खर्चा है। अब कॉफी मशीन का क्या हाल होगा?" दूसरे ने बताया कि टियर-2 कॉलेज से होने के कारण उन्हें इंटर्नशिप में रिजेक्ट किया गया, भले ही उनके प्रोजेक्ट्स मजबूत थे।
यह विवाद कॉर्पोरेट लीडरशिप पर सवाल खड़े करता है। विशेषज्ञों का कहना है कि सीईओ को कर्मचारियों का मनोबल बढ़ाने वाला होना चाहिए, न कि लागत का हिसाब लगाने वाला। हार्वर्ड बिजनेस रिव्यू की एक स्टडी बताती है कि सकारात्मक वर्क कल्चर वाली कंपनियां 20 प्रतिशत ज्यादा उत्पादक होती हैं। भारत में स्टार्टअप कल्चर तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन मानव संसाधन की अनदेखी हो रही है। नोएडा सेक्टर 62 और 63 जैसे इलाकों में सैकड़ों आईटी पार्क हैं, जहां युवा सुबह 9 बजे से रात 8 बजे तक काम करते हैं। कॉफी मशीन जैसी छोटी सुविधा उन्हें ब्रेक दे सकती है। लेकिन सीईओ का बयान दिखाता है कि प्रबंधन अभी भी पुरानी सोच में जी रहा है, जहां कर्मचारी 'रिसोर्स' हैं, न कि मूल्यवान सदस्य।
रेडिट पोस्ट के वायरल होने के बाद कंपनी पर दबाव बढ़ गया है। कुछ यूजर्स ने कंपनी का नाम ट्रेस करने की कोशिश की, लेकिन कर्मचारी ने गोपनीयता बनाए रखी। सोशल मीडिया पर #InternExploitation जैसे हैशटैग ट्रेंड करने लगे। लिंक्डइन पर भी चर्चा हुई, जहां प्रोफेशनल्स ने कहा कि ऐसे बयान ब्रांड इमेज खराब करते हैं। एक एचआर कंसल्टेंट ने लिखा, "कॉफी मशीन 50 हजार की है, लेकिन एक असंतुष्ट इंटर्न कंपनी को लाखों का नुकसान पहुंचा सकता है।" यह घटना युवाओं को सलाह देती है कि वे इंटर्नशिप चुनते समय कंपनी की कल्चर चेक करें। इंटर्नशाला या नाऊकी जैसे प्लेटफॉर्म पर रिव्यूज पढ़ें। साथ ही, यूनियंस या एचआर से शिकायत करें।
भारतीय आईटी सेक्टर में इंटर्नशिप की समस्या पुरानी है। 2024 में एक रिपोर्ट ने बताया कि 70 प्रतिशत इंटर्न्स को उचित स्टाइपेंड नहीं मिलता। टियर-2 कॉलेजों के छात्रों को तो और कठिनाई होती है, क्योंकि रिक्रूटर्स टियर को प्राथमिकता देते हैं। लेकिन कई सफल कहानियां हैं, जहां टियर-2 से छात्रों ने मेहनत से बड़े पद हासिल किए। यह बयान एक रिमाइंडर है कि कॉर्पोरेट दुनिया में नैतिकता जरूरी है। सीईओ को सोचना चाहिए कि उनके शब्द युवाओं के भविष्य को प्रभावित करते हैं।
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