जीवन परिचय : शौर्य, ममत्व एवं धर्मनिष्ठा की प्रतिमूर्ति श्रीमन्त राजमाता विजयाराजे सिंधिया।

Edited By- Vijay Laxmi Singh
उत्तरप्रदेश के फिरोजाबाद जिले के जादों राजपूतों के गांगिनी ठिकाने से थीं श्रीमन्त राजमाता विजयाराजे सिंधिया ।
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जन्म व पारिवारिक पृष्ठभूमि
राजमाता विजयाराजे सिंधिया के पूर्वज बयाना के जादौन महाराजा विजयपाल के वंशज राजा तुच्छपाल के वंशज है जिन्होंने संवत 1103 में बयाना से विस्थापित होकर ब्रज क्षेत्र के इगलास तहसील में तोक्षीगढ़ किला बनाया और वहीँ पर बस गये तथा इसके बाद इनके वंशज गांगिनीपाल एटा जिले में जादों राजपूत गांगिनी ठिकाने के जमींदार हुये जो बाद में अवागढ़ रियासत के अधीन हो गयी।
राजमाताके परदादा गणेश सिंह जी कई पीढ़ियों बाद गांगिनी के जमींदार हुये तथा दादा जी ठाकुर सोवरन सिंह ब्रिटिश पुलिस सेवा में थे। राजमाता विजयाराजे सिंधिया का जन्म 12 अक्टूबर 1919 ई. सागर, मध्य प्रदेश में हुआ था। विजया राजे सिंधिया के पिता श्री ठाकुर महेन्द्र पाल सिंह जी जादौन तत्कालीन अँग्रेजी हुकूमत में जालौन ज़िला के डिप्टी कलैक्टर थे।
जिनकी प्रथम पत्नी जगमानपुर ठिकाने (इटावा ,उत्तरप्रदेश )के सेंगर राजपूत परिवार से थी जिनसे दो पुत्र ठाकुर चंद्रपाल सिंह जी (मध्यप्रदेश हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश )एवं श्री उदयपाल सिंह जी ग्वालियर सेवा में मेजर के पद पर रहे तथा एक पुत्री शांतिदेवी थी।ठाकुर महेंद्र पाल सिंह जी की द्वितीय पत्नी श्रीमती 'चूड़ा दिव्येश्वरीदेवी' थीं जो नेपाल के राणा परिवार के खड्ग शमशेर जंग बहादुर राना की पुत्री थी जिनसे राजमाता विजयाराजे पैदा हुई।
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नेपाल राजपरिवार भारत में मध्यप्रदेश के सागर जिले में आकर उस समय बस गया था ।राजमाता की माताजी का निधन उनके जन्म के कुछ ही दिनों बाद हो गया था ऐसा कहा जाता है ।वे अपनी माता की इकलौती सन्तान थी ।।ठाकुर महेंद्रपाल सिंह जी की तीसरी पत्नी जो निहौली ठिकाने (जिला जालौन )के चंदेल राजपूत परिवार से थी जिनसे 5 पुत्र एवं 2 पुत्रियां पैदा हुई जिनमे 1- सुषमा सिंह (पुत्री), 2-देवेंद्र सिंह जी ,3-सुरेंद्र सिंह जी , 4-ज्ञानेंद्र पाल सिंह जी , 5 कुसुम सिंह (पुत्री), 6-ध्यानेन्द्र पाल सिंह जी , 7-माधवेन्द्रपाल सिंह ।ध्यानेन्द्र पाल सिंह जी की पत्नी श्रीमती माया सिंह हैं जिनके पुत्र पीताम्बर सिंह है।राजमाता विजयाराजे सिंधिया का विवाह के पूर्व का नाम 'लेखा दिव्येश्वरी' था। इनका लालन -पालन राजमाता की नानी जी रानी धन कुमारी जी ने किया था।
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विवाह
राजमाता विजयाराजे सिंधिया का विवाह 22 वर्ष की उम्र में 21 फ़रवरी, 1941 ई. में ग्वालियर के महाराजा जीवाजी राव सिंधिया से हुआ था। उस समय ग्वालियर देश का सबसे बड़ा ,धनी रॉयल राजपरिवार था जिसको 21 तोपों की सलामी का अधिकार था । राजमाता विजयाराजे सिंधिया के पुत्र स्वर्गीय महाराजा माधवराव सिंधिया थे, पुत्री 1 -श्रीमती पदमावती राजे , 2- श्रीमती उषाराजे ,3-श्रीमती वसुंधरा राजे ,सम्माननीय मुख्यमंत्री राजस्थान और 4-.श्रीमती यशोधरा राजे हैं।
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राजनीति सफर
ग्वालियर भारत के विशालतम और संपन्नतम राजे - रजवाड़ों में से एक है। विजयाराजे सिंधिया अपने पति जीवाजी राव सिंधिया की मृत्यु के बाद कांग्रेस के टिकट पर संसद सदस्य बनीं थीं। अपने सैध्दांतिक मूल्यों के दिशा निर्देश के कारण विजयाराजे सिंधिया कांग्रेस छोड़कर जनसंघ (भाजपा) में शामिल हो गईं। विजयाराजे सिंधिया का रिश्ता एक राजपरिवार से होते हुए भी वे अपनी ईमानदारी, सादगी और प्रतिबद्धता के कारण पार्टी में सर्वप्रिय बन गईं। और शीघ्र ही वे पार्टी में शक्ति स्तंभ के रूप में सामने आईं।
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राजमाता विभिन्न पदों पर
1957लोकसभा (दूसरी) के लिए निर्वाचित,1962लोकसभा (तीसरी) के लिए पुन: निर्वाचित,लोकसभा (तीसरी) के लिए पुन: निर्वाचित,1967मध्य प्रदेश विधान सभा के लिए निर्वाचित,1971 लोकसभा (पाँचवी) के लिए तीसरी बार निर्वाचित,1978राज्यसभा के लिए निर्वाचित,1989लोकसभा (नौंवी) के लिए चौथी बार निर्वाचित,1990सदस्य, मानव संसाधन विकास मंत्रालय की परामर्शदात्री समिति,1991लोकसभा (दसवीं) के लिए पाँचवी बार निर्वाचित,1957 में विजयाराजे सिंधिया ने कांग्रेस से चुनाव लड़ा और उन्होंने दो कोणीय मुक़ाबले में 'हिन्दू महासभा' के देशपांडे को 60 हज़ार 57 मतों से पराजित किया। 1967 का चुनाव विजयाराजे सिंधिया ने स्वतंत्र प्रत्याशी के तौर पर लड़ा और कांग्रेस के डी. के. जाधव को एक लाख 86 हज़ार 189 मतों से पराजित किया।
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सन 1989 के आम चुनाव में विजयाराजे सिंधिया एक बार फिरगुना से भाजपा प्रत्याशी थीं। इससे पहले 22 साल पूर्व सन् 1967 में राजमाता वहाँ से जीती थीं। उनके मुक़ाबले कांग्रेस ने महेंद्रसिंह कालूखेड़ा को मैदान में उतारा। कालूखेड़ा राजमाता के हाथों 1 लाख 46 हज़ार 290 वोटों से परास्त हो गए। 1991 के चुनाव में पुन: विजयाराजे सिंधिया ने कांग्रेस के शशिभूषण वाजपेयी को 55 हज़ार 52 मतों से पराजित किया। विजयाराजे सिंधिया 1996 के चुनाव में फिर उम्मीदवार बनीं और उन्होंने भाजपा के टिकट पर अपनी जीत की हैट्रिक क़ायम करते हुए कांग्रेस के के. पी. सिंह को एक लाख 30 हज़ार 824 मतों से पराजित किया।
विजयाराजे सिंधिया1998 के चुनाव में विजयाराजे सिंधिया ने अपनी जीत का सिलसिला चौथी बार भी लगातार जारी रखा। उन्होंने तब कांग्रेस के देवेंद्र सिंह रघुवंशी को एक लाख 29 हज़ार 82 मतों से पराजित कर डाला।1999 के चुनाव में अस्वस्थ राजमाता ने अपने पुत्र माधवराव सिंधिया को यह आसंदी छोड़ दी और 1999 में माधवराव सिंधिया ने पाँच उम्मीदवारों की मौजूदगी में अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी भाजपा के देशराज सिंह को दो लाख 14 हज़ार 428 मतों से पराजित किया।
राजमाता 1975 में आपातकाल के दौरान जेल भी गयी थी ।आप अखिलभारतीय महिला कांफ्रेस ग्वालियर शाखा की 40 वर्षों तक अध्यक्ष भी रही थी ।1980 में राजमाता भारतीय जनता पार्टी में उपाध्यक्ष बनी तथा 1998 तक बीजेपी की उपाध्यक्ष रही ।हिन्दू संस्कृति की रक्षक तथा रामजन्मभूमि की रक्षा में उनकी अटूट आस्था रही ।राजमाता ने शिक्षा के क्षेत्र में ग्वालियर का नाम पूरे देश में रोशन किया ।उन्होंने शिक्षा के लिए अपने निजी भवन स्कूल और कॉलेजों के लिए दान कर दिए ।आज भी उनको ग्वालियर के लोग ही नहीं ,बल्कि संपूर्ण देशवासी ,भारतीय जनता पार्टी के अलावा दूसरी राजनैतिक पार्टियों के नेता भी पूरा सम्मान देते है ।
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निधन-
ग्वालियर के राजवंश की राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने लोगों के दिलों पर वर्षों राज किया। सन् 1998 से राजमाता का स्वास्थ्य ख़राब रहने लगा और 25 जनवरी, 2001 में राजमाता विजयाराजे सिंधिया का निधन हो गया।
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राजमाता के नाम पर ये यादगार-
- राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्व विद्यालय ,ग्वालियर ।
- विजयाराजे सिंधिया कन्या महाविद्यालय ।
- विजयाराजे सिंधिया टर्मिनल ।
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प्रेरणा स्रोत
राजमाता त्याग एवं समर्पण की प्रति मूर्ति थी। उन्होंने राजसी ठाठ-वाट का मोह त्यागकर जनसेवा को अपनाया तथा सत्ता के शिखर पर पहुँचने के बाद भी उन्होंने जनसेवा से कभी अपना मुख नहीं मोड़ा। इसलिये राजमाता को अपना प्रेरणा स्रोत मानकर हमें उनके पदचिह्नों एवं आदर्शों पर चलना चाहिये।मैं इस पावन पवित्र भारत भूमि पर जन्मी शौर्य एवं धर्मनिष्ठा की प्रतिमूर्ति एक आदर्श देशभक्त क्षत्राणी राजमाता को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुऐ सत सत नमन करता हूँ ।जय हिंद ।जय राजपुताना ।।
लेखक:- डा0 धीरेन्द्र सिंह जादौन
गांव:- लढोता ,सासनी
जिला:- हाथरस ,उत्तरप्रदेश
प्राचार्य:- राजकीय कन्या महाविद्यालय सवाईमाधोपुर
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