Special Article: भारतीय (हिन्दू) नववर्ष - विक्रम-संवत् का ऐतिहासिक सन्दर्भ।
सदियों की परतन्त्रता के चलते हम अपने हिन्दू नववर्ष को लगभग भूल ही गए थे, जबकि भारतीय पंचांग, ज्योतिषीय गणनाओं या वैवाहिक...

लेखक - विवेकानन्द सिंह
सदियों की परतन्त्रता के चलते हम अपने हिन्दू नववर्ष को लगभग भूल ही गए थे, जबकि भारतीय पंचांग, ज्योतिषीय गणनाओं या वैवाहिक कार्यक्रमों, कुंडली निर्माणादि में विक्रमी-संवत् का प्रयोग होता था, लेकिन हम अंग्रेज़ी कैलेण्डर के अनुसार 31 दिसम्बर की रात्रि को या फिर अगली सुबह 'Happy New Year' बोलकर आंग्ल नववर्ष का स्वागत करते थे। लेकिन आज देश का युवावर्ग चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन 'हिन्दू नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं' कहकर अपने नववर्ष का स्वागत कर रहा है, जिसे देख-सुनकर माँ भारती मन ही अति प्रसन्न हो रही होंगी।
ज्ञातव्य है कि भारतीय उपमहाद्वीप में प्रचलित हिन्दू नववर्ष, यानी विक्रम-संवत् का शुभारम्भ, चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से होता है; इस दिन को सृष्टि का आरम्भ दिवस मानते है, आज ही अनेक महापुरूषों का जन्म दिवस भी है।
विक्रम-संवत् वर्तमान अंग्रेज़ी कैलेण्डर, यानी ग्रेगोरियन कैलेण्डर (रोमन कैथोलिक चर्च के प्रमुख, पोप ग्रेगरी 13वें द्वारा 24 फ़रवरी, 1582 को जारी; जिसे कैथोलिक यूरोप के राज्यों, यथा इटली, स्पेन, पुर्तगाल, पोलैण्ड और फ्रांस ने फ़ौरन अपना लिया था, लेकिन अब तो लगभग सम्पूर्ण विश्व ने इसे अंगीकार कर लिया है। इस कैलेण्डर के पहले रोमन राजा, जूलियस सीज़र द्वारा 45 ई. पू. में जारी जूलियन कैलेण्डर का प्रयोग होता था, जो त्रुटिपूर्ण था) से 57 वर्ष आगे चलता है। यदि आप नहीं जानते है कि यह कौन-सा संवत् है?, तो वर्तमान ईस्वी सन् में 57 जोड़ दीजिए, जो योग होगा, वही विक्रम-संवत् है। नवसंवत् जिस दिन से आरम्भ होता है, उस दिन के वार के अनुसार वर्ष के राजा का निर्धारण किया जाता है, चूंकि इस वर्ष विक्रम-संवत् 2082, 30 मार्च, 2025, दिन रविवार को हुआ है, अतः इस संवत् के राजा एवम् मन्त्री सूर्य हैं।
विक्रम-संवत् को लेकर इतिहासकारों के मध्य तमाम तरह के विवाद हैं, बावजूद आमजन के बीच मान्यता यह है कि मालवा नरेश, चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य (मूलनाम विक्रमसेन), जिनका जन्म 101 ईसापूर्व, पिता गन्धर्वसेन (गर्दभिल्ल) और माता सौम्यदर्शना (वीरमती) के घर में हुआ था, आपके पिता मालवा के राजा थे, जिनकी राजधानी थी - उज्जैन। पिता के निधनोपरान्त आप मालवा के शासक बने और 57 ईसापूर्व में बाह्य आक्रान्ताओं (शक) को हराकर इस संवत् को आरम्भ कराया था। प्रारम्भ में जिसे कृत-संवत् और फिर मालव-संवत् कहा जाता था, लेकिन कालान्तर में यह विक्रम-संवत् के नाम से ख्यात हुआ।
अब यहाँ एक प्रश्न उठता है कि यदि इस संवत् के संस्थापक सम्राट विक्रमादित्य ही थे तो इसे प्रारम्भ में विक्रम-संवत् न कहकर कृत या मालव-संवत् के नाम से क्यों सम्बोधित किया गया? इस प्रश्न का सरल उत्तर डॉ० राजबली पाण्डेय, एम. ए., डी.लिट्. की पुस्तक, 'विक्रमादित्य [संवत् - प्रवर्तक]' में देखने को मिलता है, जिसका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है -
पूर्ववर्ती काल में 'विक्रम' नाम के अभाव का कारण - विक्रमादित्य मालवा के गणप्रमुख थे, न कि कोई निरंकुश एकतान्त्रिक राजा। यद्यपि मालव-संवत् की स्थापना उन्होंने ही की थी, लेकिन उसके संस्थापन का सम्पूर्ण श्रेय वह स्वयं नहीं ले सकते थे; क्योंकि जनतान्त्रिक राज्य-व्यवस्था में गण (जनसमूह) नेता से अधिक महत्वपूर्ण है, नेता चाहे कितना भी प्रभावशाली क्यों न रहा हो।
8वीं तथा 9वीं शती के आते-आते भारत में गणतान्त्रिक राज्य-व्यवस्था का स्थान निरंकुश राजतन्त्र ने ले लिया और इस व्यवस्था से मालवा भी अछूता न रहा, लेकिन मालवा के जन-मन में सम्राट विक्रमादित्य के व्यक्तित्व का प्रभाव अबतक तारी था। अतः उक्त कृत-संवत् या मालव-संवत् को सम्राट विक्रमादित्य के नाम पर विक्रम-संवत् कहा जाने लगा।
बलिया के ग्राम चौरानिवासी, उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी सम्मान से सम्मानित, संस्कार भारती नाट्य केंद्र, आगरा के संस्थापक निदेशक और अन्नू बाबा फाउण्डेशन (पिपराकलां, बलिया) के संरक्षक, केशव प्रसाद सिंह ने कहा कि 'हिन्दू नववर्ष की परम्परा का निर्वहन जितना औचित्यपूर्ण है, उतना ही प्रांसगिक भी है। क्योंकि एक स्वस्थ समाज की रचना में सहज-मन व्यक्तियों के समूह की सृजनात्मक सोच की अपेक्षा होती है; एक सहज-मन व्यक्ति वही होगा जो संस्कार-क्षम होग और संस्कारवान होने के लिए अपनी सांस्कृतिक संरचनाओं से जुड़ना अति आवश्यक हो जाता है।
रामधारीसिंह 'दिनकर' ने अपनी एक कविता में
हिन्दू नववर्ष महत्ता पर प्रकाश डालते हुए लिखा है कि -
..प्रकृति दुल्हन का रूप धार
जब स्नेह – सुधा बरसायेगी
शस्य – श्यामला धरती माता
घर -घर खुशहाली लायेगी।
तब चैत्र शुक्ल की प्रथम तिथि
नव वर्ष मनाया जायेगा
आर्यावर्त की पुण्य भूमि पर
जय गान सुनाया जायेगा।
युक्ति – प्रमाण से स्वयंसिद्ध
नव वर्ष हमारा हो प्रसिद्ध
आर्यों की कीर्ति सदा -सदा
नव वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा।..
समस्त देशवासियों के लिए हिन्दू नववर्ष (संवत् २०८२ विक्रमी) मंगलमय हो।
स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु॥
अर्थात्; अति यशस्वी इन्द्रदेव हमारा कल्याण करें, सर्वज्ञाता पूषा (सूर्य) हमारा कल्याण करें। अप्रतिहतगति वाले गरुड़ हमारे हित कारक हो। ज्ञान के अधीश्वर बृहस्पति देव हमारा कल्याण करें। (ऋग्वेद, प्रथम मण्डल, 89वां सूक्त)
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