Sambhal : विश्व दिव्यांग दिवस पर विशेष- दिव्यांगों का जज़्बा सलाम—अंतरराष्ट्रीय पंजा प्रतियोगिता में सम्भल के खिलाड़ी का चयन, लक्ष्य ओलंपिक पदक
तुर्तीपुर इल्हा निवासी अली वारिस, जिनके दोनों पैरों में 80 प्रतिशत दिव्यांगता है, सिलाई का काम करते हुए अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं। लेकिन दिव्यांगता कभी उनके
Report : उवैस दानिश, सम्भल
विश्व दिव्यांगता दिवस के अवसर पर सम्भल के दो दिव्यांग खिलाड़ियों ने अपनी उपलब्धियों से साबित कर दिया कि मजबूत हौसलों के आगे शारीरिक सीमाएं मायने नहीं रखतीं। दोनों खिलाड़ियों ने राष्ट्रीय स्तर पर स्वर्ण पदक जीतकर न सिर्फ सम्भल का नाम रोशन किया है, बल्कि अब एक दिव्यांग अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में भारत का प्रतिनिधित्व करने जा रहा हैं। इनका अगला लक्ष्य ओलंपिक में पदक जीतकर देश का मान बढ़ाना है।
- अली वारिस—80% दिव्यांगता के बाद भी लगातार स्वर्ण पदकों की बरसात
तुर्तीपुर इल्हा निवासी अली वारिस, जिनके दोनों पैरों में 80 प्रतिशत दिव्यांगता है, सिलाई का काम करते हुए अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं। लेकिन दिव्यांगता कभी उनके सपनों का रास्ता नहीं रोक सकी।
गुरु भोले सिंह त्यागी की प्रेरणा से उन्होंने खेलों की दुनिया में कदम रखा। अली वारिस ने 3 दिसंबर 2021 को सोनकपुर स्टेडियम में रेस प्रतियोगिता में तीसरा स्थान हासिल किया, जिसके बाद से खेलों में उनकी रुचि बढ़ी। उन्होंने जिला स्तरीय, यूपी स्टेट, नेशनल चैंपियनशिप पदक झटक कर सम्भल का नाम रोशन किया है।
अब अली वारिस इंटरनेशनल प्रतियोगिता की तैयारी के साथ-साथ ओलंपिक के लिए गोला फेंक (शॉटपुट) की भी तैयारी कर रहे हैं। उनका सपना है कि ओलंपिक में पदक जीतकर देश का नाम रोशन करें। वे 2019 से राष्ट्रीय दिव्यांग एवं महिला सशक्तिकरण विकास फाउंडेशन से जुड़े हैं और राष्ट्रीय मंत्री के रूप में दिव्यांगों की समस्याओं को उठाने का कार्य करते हैं।
- महेंद्र सिंह—12 मेडल जीतकर इंटरनेशनल का टिकट हासिल
खानपुर खुम्मार निवासी महेंद्र सिंह पंजा कुश्ती में अब तक 12 मेडल जीत चुके हैं, जिनमें 4 नेशनल मेडल शामिल हैं। उन्होंने महाराष्ट्र और भोपाल में राष्ट्रीय स्तर पर शानदार प्रदर्शन कर इंटरनेशनल खेलने का मौका प्राप्त किया है।
महेंद्र सिंह जनवरी 2026 में बुलबोरिया में होने वाली अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में भाग लेंगे। वे लगातार मेहनत कर रहे हैं ताकि ओलंपिक में चयनित हो सकें और पदक जीतकर देश का नाम रोशन कर सकें। संघर्ष और
- सफलता की मिसाल
दोनों दिव्यांग खिलाड़ियों की सफलता न सिर्फ सम्भल बल्कि पूरे प्रदेश के लिए प्रेरणा है। विपरीत परिस्थितियों के बावजूद उनके जज्बे और मेहनत ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय मंच तक पहुँचाया है। अब ये खिलाड़ी ओलंपिक को अपना अगला लक्ष्य बनाकर तैयारियों में जुटे हुए हैं। सम्भल के इन बेटों की कहानी यह संदेश देती है कि हौसले बुलंद हों तो कोई मंजिल मुश्किल नहीं।
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