Sitapur : नैमिषारण्य में लम्पी वायरस का खतरा, निराश्रित गोवंश पर संकट, जिम्मेदार बने मूकदर्शक
नैमिषारण्य, जो 84 कोस में फैला विश्व प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है, अपनी पवित्रता के लिए जाना जाता है। यहां देश-विदेश से श्रद्धालु आते हैं और गाय को माता का दर्जा देकर पू
रिपोर्ट- सुरेन्द्र मोठी INA न्यूज़ नीमसार
सीतापुर जिले के नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र में लम्पी स्किन डिजीज (लम्पी वायरस) ने निराश्रित गोवंश को अपनी चपेट में ले लिया है। यह संक्रामक बीमारी तेजी से फैल रही है, जिससे क्षेत्र में गाय और भैंस जैसे पशुओं की सेहत पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है। इस रोग के कारण पशुओं में बुखार, भूख न लगना, शरीर पर गांठें और घाव बनने जैसे लक्षण दिखाई दे रहे हैं। यदि समय रहते इस पर ध्यान नहीं दिया गया, तो यह बीमारी और भयावह रूप ले सकती है, जिससे पशुपालकों को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है।
नैमिषारण्य, जो 84 कोस में फैला विश्व प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है, अपनी पवित्रता के लिए जाना जाता है। यहां देश-विदेश से श्रद्धालु आते हैं और गाय को माता का दर्जा देकर पूजा जाता है। क्षेत्र में कई गोशालाएं और गोसेवा दल सक्रिय हैं, फिर भी निराश्रित गोवंश की देखभाल के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे। स्थानीय लोगों और पशुपालकों का कहना है कि इस बीमारी की अनदेखी से स्थिति और गंभीर हो सकती है। कुछ लोग गाय के नाम पर केवल चर्चा करते हैं, लेकिन इन पशुओं की सुरक्षा के लिए कोई प्रभावी उपाय नहीं किए जा रहे।
लम्पी स्किन डिजीज एक संक्रामक बीमारी है, जो पॉक्सविरिडे वायरस के कारण होती है। यह मुख्य रूप से गाय और भैंस जैसे पशुओं को प्रभावित करती है। यह वायरस मच्छर, मक्खी और अन्य कीड़ों के माध्यम से तेजी से फैलता है। इसके लक्षणों में तेज बुखार, नाक और आंखों से पानी बहना, शरीर पर गांठें और घाव बनना, भूख न लगना और कमजोरी शामिल हैं। गंभीर स्थिति में यह बीमारी पशुओं की मृत्यु का कारण भी बन सकती है। 2022 में इस वायरस के कारण देशभर में लगभग 97,000 गोवंश की मृत्यु हुई थी, जिससे यह पशुपालकों के लिए एक गंभीर समस्या बन गई थी।
पशुपालन विभाग ने कुछ क्षेत्रों में वैक्सीनेशन शुरू किया है, लेकिन नैमिषारण्य में निराश्रित गोवंश के लिए कोई विशेष प्रयास नहीं दिख रहे। विशेषज्ञों का कहना है कि इस बीमारी से बचाव के लिए नियमित टीकाकरण, प्रभावित पशुओं को अलग करना और स्वच्छता बनाए रखना जरूरी है। मच्छरों और कीड़ों को नियंत्रित करने के लिए कीटनाशकों का उपयोग भी प्रभावी हो सकता है। इसके अलावा, पशुओं को स्वच्छ पानी और पौष्टिक आहार देना चाहिए ताकि उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत हो।
स्थानीय पशुपालकों और निवासियों ने प्रशासन से मांग की है कि इस समस्या के समाधान के लिए तत्काल कदम उठाए जाएं। गोशालाओं में वैक्सीनेशन और चिकित्सा सुविधाओं को बढ़ाने की जरूरत है। साथ ही, निराश्रित गोवंश की देखभाल के लिए विशेष टीमें गठित की जानी चाहिए। यदि इस बीमारी पर समय रहते नियंत्रण नहीं किया गया, तो यह न केवल पशुओं के लिए, बल्कि क्षेत्र के पशुपालकों की आजीविका के लिए भी बड़ा खतरा बन सकता है।
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