सम्भल दंगों का दर्द फिर हुआ ताज़ा, 1978 के पीड़ित रस्तोगी परिवार ने स्मारक बनाने व चौराहे का नाम बदलने की उठाई मांग।
सम्भल में वर्ष 1978 के दंगों का दर्द एक बार फिर उभरकर सामने आ गया है। महमूदखां सराय में खोदे जा रहे कुएं के साथ रामसरन रस्तोगी की
उवैस दानिश, सम्भल
सम्भल में वर्ष 1978 के दंगों का दर्द एक बार फिर उभरकर सामने आ गया है। महमूदखां सराय में खोदे जा रहे कुएं के साथ रामसरन रस्तोगी की दर्दनाक मौत की कहानी फिर चर्चा में है। कहा जाता है कि इसी कुएं में चारा व्यवसाई रामसरन रस्तोगी का खून और परिवार की पीड़ा दबकर रह गई थी। दंगाइयों ने चाकुओं से गोदकर उनकी हत्या कर दी थी और तराजू समेत शव को इसी कुएं में फेंक दिया था। शुक्रवार सुबह कुएं पर आ रहे पेड़ को भी वन विभाग द्वारा काट दिया गया है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा सम्भल दंगों की दोबारा जांच के आश्वासन के बाद रस्तोगी परिवार के पुराने घाव हरे हो गए हैं। इसी कड़ी में रामसरन रस्तोगी के पौत्र डीएम कार्यालय पहुंचे। उन्होंने दादा की हत्या की नई जांच, कुएं के स्थान पर स्मारक निर्माण और चौराहे का नाम रामसरन रस्तोगी के नाम पर करने की मांग रखी।
परिवार ने बताया कि हत्या के बाद उनके पिता को मुकदमा वापस लेने के लिए लगातार जान से मारने की धमकियां मिलती रहीं। हालात इतने बिगड़े कि सुरक्षा के अभाव में पूरा परिवार सम्भल छोड़कर दिल्ली पलायन करने पर मजबूर हो गया। उन्होंने याद किया कि उस समय नेता प्रतिपक्ष इंदिरा गांधी उनके घर भी आई थीं, लेकिन आश्वासन के अलावा कांग्रेस की ओर से कोई ठोस मदद नहीं मिली। डीएम से मुलाकात के दौरान परिवार ने शासन से सुरक्षा और सहयोग मिलने पर फिर से सम्भल में बसने की इच्छा जताई। दशकों पुराना यह मामला अब दोबारा सुर्खियों में है और पीड़ित परिवार न्याय की उम्मीद लगाए बैठा है।
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