Varanasi News: नमामि गंगे के तहत वाराणसी में कछुआ संरक्षण की नई मिसाल: 2017-2025 में 3,298 कछुओं का पुनर्वास

सारनाथ कछुआ प्रजनन एवं पुनर्वास केंद्र, जो 1978 में गंगा कार्य योजना के तहत स्थापित हुआ और 1989 में कछुआ अभयारण्य घोषित किया गया, अब भारत में जलीय जैव विविधता संर...

May 22, 2025 - 22:35
May 22, 2025 - 22:58
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Varanasi News: नमामि गंगे के तहत वाराणसी में कछुआ संरक्षण की नई मिसाल: 2017-2025 में 3,298 कछुओं का पुनर्वास
Photo: Social Media

By INA News Varanasi.

वाराणसी: उत्तर प्रदेश सरकार के नमामि गंगे कार्यक्रम के तहत सारनाथ कछुआ प्रजनन एवं पुनर्वास केंद्र गंगा नदी के पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करने और प्रदूषण मुक्त रखने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बन गया है। यह केंद्र न केवल जलीय जैव विविधता के संरक्षण में अग्रणी भूमिका निभा रहा है, बल्कि कछुओं की तस्करी को रोकने में भी कारगर साबित हुआ है। वर्ष 2017 से 2025 तक इस केंद्र ने 3,298 कछुओं का पुनर्वास किया है और 3,231 अंडों की हैचिंग कर उन्हें विभिन्न नदियों में छोड़ा है, जो भारत के सबसे बड़े संरक्षण अभियानों में से एक है।

कछुआ संरक्षण में सारनाथ केंद्र की भूमिका

सारनाथ कछुआ प्रजनन एवं पुनर्वास केंद्र, जो 1978 में गंगा कार्य योजना के तहत स्थापित हुआ और 1989 में कछुआ अभयारण्य घोषित किया गया, अब भारत में जलीय जैव विविधता संरक्षण का एक मॉडल बन चुका है।2000 के दशक में इस केंद्र को कई परिचालन और बुनियादी ढांचे की समस्याओं का सामना करना पड़ा था, लेकिन 2017 में नमामि गंगे कार्यक्रम के तहत इसे पुनर्जनन मिला। उत्तर प्रदेश वन विभाग और भारतीय वन्यजीव संस्थान के संयुक्त प्रयासों से केंद्र का पुनर्विकास किया गया, जिससे यह मीठे पानी के कछुओं के संरक्षण, प्रजनन, और पुनर्वास का एक महत्वपूर्ण केंद्र बन गया।

उपलब्धियां और सुधार

  • पुनर्वास की सफलता: 2017 से 2025 तक केंद्र ने 3,298 कछुओं का पुनर्वास किया, जिसमें तस्करी से बचाए गए कछुए शामिल हैं। साथ ही, 3,231 अंडों की हैचिंग कर नवजात कछुओं को गंगा और अन्य नदियों में छोड़ा गया।
  • आधुनिक सुविधाएं: केंद्र में कछुओं के तालाबों को फिर से डिजाइन किया गया, जिसमें उन्नत जैव-फिल्टरेशन और वातन प्रणाली स्थापित की गई। लॉग, जलीय वनस्पति, हॉल-आउट मैट, और धूप सेंकने के प्लेटफॉर्म जैसे प्राकृतिक तत्व जोड़े गए।
  • आहार प्रबंधन: कछुओं की प्रजातियों के अनुसार मांसाहारी, शाकाहारी, और सर्वाहारी आहार की व्यवस्था की गई। मांसाहारी कछुओं के लिए जीवित मछली, शाकाहारी के लिए पौधे, और सर्वाहारी के लिए मिश्रित आहार उपलब्ध कराया गया।
  • चिकित्सा और मूल्यांकन: कछुओं को गंगा में छोड़ने से पहले कठोर चिकित्सा और व्यवहार संबंधी मूल्यांकन किया जाता है, ताकि उनकी दीर्घकालिक जीवित रहने की क्षमता और पारिस्थितिकी तंत्र में एकीकरण सुनिश्चित हो।
  • तस्करी में कमी: नमामि गंगे में शामिल होने के बाद कछुओं की तस्करी में उल्लेखनीय कमी आई है, जो इस केंद्र की प्रभावशीलता को दर्शाता है।

नमामि गंगे और कछुआ संरक्षण

नमामि गंगे कार्यक्रम के तहत कछुआ पुनर्वास को घटक IV-बचाव और पुनर्वास के रूप में शामिल किया गया, जिसने केंद्र की कार्यक्षमता को और बढ़ाया। मुख्य वन संरक्षक, वाराणसी मंडल, डॉ. रवि कुमार सिंह के अनुसार, यह केंद्र गंगा नदी बेसिन में संरक्षण की सफलता का प्रतीक बन गया है। कछुए नदी के पारिस्थितिकी तंत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, क्योंकि वे जलीय प्रदूषकों को नियंत्रित करने और नदी की जैव विविधता को संतुलित करने में मदद करते हैं।

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सारनाथ कछुआ प्रजनन एवं पुनर्वास केंद्र अब एक राष्ट्रीय मॉडल के रूप में उभर रहा है। इसकी सफलता से प्रेरित होकर, अन्य राज्यों में भी इसी तरह के संरक्षण मॉडल को लागू करने की संभावनाएं तलाशी जा रही हैं। केंद्र का लक्ष्य न केवल कछुओं का संरक्षण करना है, बल्कि गंगा को प्रदूषण मुक्त और पारिस्थितिकी तंत्र को संतुलित रखना भी है।

सारनाथ कछुआ प्रजनन एवं पुनर्वास केंद्र नमामि गंगे के तहत उत्तर प्रदेश सरकार की एक ऐसी पहल है, जो पर्यावरण संरक्षण और जैव विविधता को बढ़ावा देने में मील का पत्थर साबित हो रही है। 3,298 कछुओं का पुनर्वास और 3,231 अंडों की हैचिंग इस केंद्र की उपलब्धियों का प्रमाण है। यह प्रयास न केवल गंगा को स्वच्छ और जीवंत बनाए रखने में योगदान दे रहा है, बल्कि कछुओं की तस्करी को रोकने और जलीय पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

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